एडीलेड क्रेप्सी (1878 - 1914) की एक कविता...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiw1Fi729aL3UZgnpmSi1U59BEkHZ-pcrlSXJCWjANptR0P1fJ1nPPD22CfZwBh7Zajf1_0IQs6a5igNfIyeQmOzjJvR2zUAAb78aJ1XxRMQrigVxmTYXs3doR4I4UQ7D5IH-vPSaokIyc/s320/Andre_Kertesz_Untitled+1979.jpg)
मौसम की मार खाए पेड़ों को देखकर : एडीलेड क्रेप्सी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
क्या इतना ही साफ़-साफ़ दिखता है हमारे जीने में
झुकाव और घुमाव से, कि किस ओर बही है हवा?
:: :: ::
नहीं नहीं ....न तो दिखता है और न ही हम देखना चाहते हैं | शानदार |
ReplyDeleteहाँ.. साफ साफ दीखता है झुकाव और उससे ही निर्धारित होता है घुमाव...जब लग जाती है किसी ग्रामीण को शहर की हवा...
ReplyDeleteबिल्कुल दिख जाएगा , और साफ साफ दिख जाएगा ; यदि आप देखना चाहेंगे । पर सवाल यह है कि आप देखना क्यों चाहते हैं ?
ReplyDelete