एडीलेड क्रेप्सी (1878 - 1914) की एक कविता...   

मौसम की मार खाए पेड़ों को देखकर  : एडीलेड क्रेप्सी   
(अनुवाद : मनोज पटेल) 
क्या इतना ही साफ़-साफ़ दिखता है हमारे जीने में 
झुकाव और घुमाव से, कि किस ओर बही है हवा?  
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नहीं नहीं ....न तो दिखता है और न ही हम देखना चाहते हैं | शानदार |
ReplyDeleteहाँ.. साफ साफ दीखता है झुकाव और उससे ही निर्धारित होता है घुमाव...जब लग जाती है किसी ग्रामीण को शहर की हवा...
ReplyDeleteबिल्कुल दिख जाएगा , और साफ साफ दिख जाएगा ; यदि आप देखना चाहेंगे । पर सवाल यह है कि आप देखना क्यों चाहते हैं ?
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