जापानी लेखक यासूनारी कावाबाता का परिचय और दो कहानियां आप इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कहानी...
बाल : यासूनारी कावाबाता
एक लड़की ने सोचा कि वह अपने बाल कटवा ले.
यह दूर पहाड़ियों पर बसे एक छोटे से गाँव की बात है.
जब वह बाल काटने वाली लड़की के यहाँ पहुंची तो बहुत हैरान हुई. गाँव की सभी लड़कियां वहां जुटी थीं.
उस शाम, जब लड़कियों के बेडौल केशविन्यास तराश कर सुन्दर कर दिए गए थे, गाँव में फौजियों की एक टुकड़ी पहुंची. गाँव की पंचायत ने उन्हें लोगों के घरों में ठहराया. हर घर में एक मेहमान रुका. मेहमान कभी-कभार ही आते थे और शायद यही वजह थी जो हर लड़की ने अपने बाल ठीक कराने चाहे थे.
बेशक लड़कियों और फौजियों के बीच कुछ नहीं घटा. अगली सुबह, फौजियों की टुकड़ी गाँव छोड़कर पहाड़ियों के उस पार के लिए रवाना हो गई.
खैर, थकी-मांदी बाल काटने वाली लड़की ने चार दिनों की छुट्टियां मनाने की सोचा. कड़ी मेहनत के बाद उमड़ने वाले खुशनुमा ख्यालों के साथ, उसी सुबह और उसी पहाड़ी से होते हुए जिससे फ़ौजी जा रहे थे, वह उनके आगे-पीछे एक घोड़ा गाड़ी से हिचकोले खाती हुई अपने प्रेमी से मिलने के लिए निकल पड़ी.
जब वह पहाड़ियों के उस पार बसे थोड़ा बड़े गाँव में पहुंची तो वहां की बाल काटने वाली ने उससे कहा, "तुम्हें देखकर बहुत खुशी हुई. तुम बिलकुल ठीक वक़्त पर आई हो. जरा मेरी मदद करो."
यहाँ भी आस-पास की लड़कियां अपने बाल ठीक करवाने के लिए इकट्ठा हुई थीं.
फिर से दिन भर बेडौल बालों को तराशने-संवारने के बाद वह शाम को उस छोटी सी चांदी की खदान की तरफ निकली जहां उसका प्रेमी काम करता था. उससे मिलते ही वह बोली, "अगर मैं फौजियों के पीछे-पीछे लगी रहूँ तो बहुत जल्द अमीर हो जाऊंगी."
"फौजियों के पीछे-पीछे लगे रहने से ? ऐसे घटिया मजाक मत करो. पीली-भूरी वर्दियां पहने वे ढीठ लोग ? पूरी मूर्ख हो तुम."
उसके प्रेमी ने उसे एक जोर की लगाई.
एक प्यारे से एहसास के साथ, मानो उसकी थकी देंह सुन्न हो गई हो, उसने अपने प्रेमी को तरेर कर देखा.
पहाड़ी पार कर उनकी तरफ बढ़े आ रहे फौजियों के बिगुल की साफ़ और जोशीली आवाज़ गाँव की सांझ में गूँज उठी.
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