तुर्की के महान आधुनिक कवि नाजिम हिकमत (1902 - 1963) की कविताएँ खुद उनके ही देश में तकरीबन तीस सालों तक प्रतिबंधित रहीं. वे बीसवीं सदी के सबसे प्रमुख कवियों में से एक हैं. उनकी कविताओं का दुनिया की पचास से भी अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. उन्होंने अपनी ज़िंदगी के तेरह साल राजनीतिक बंदी के रूप में जेलों में बिताए और अपने आखिरी तेरह साल निर्वासन में. जेल में उन्होंने अद्भुत कविताएँ लिखीं. कविता के कुछ बेनामी से पुर्जे जेल से बाहर आते और किसी को कवि का नाम बताने की जरूरत ही न पड़ती. उनकी कविताएँ लोगों को मुंहजुबानी याद हुआ करती थीं. यहाँ उनकी ऎसी ही कुछ कविताएँ पेश हैं.
रात 9 से 10 बजे के बीच लिखी गई कविताएँ : नाजिम हिकमत
(अनुवाद : मनोज पटेल)
(पत्नी पिराए के लिए)
21 सितम्बर 1945
हमारा बच्चा बीमार है.
उसके पिता जेल में हैं.
तुम्हारे थके हाथों में तुम्हारा सर बहुत भारी हो चला है.
हमारी तकदीर अक्स है दुनिया की तकदीर की.
इंसान बेहतर दिन लेकर आएगा इंसान तक.
हमारा बच्चा ठीक हो जाएगा.
उसके पिता जेल से बाहर आ जाएंगे.
तुम्हारी सुनहली आँखों की गहराइयां मुस्कराएंगी.
हमारी तकदीर अक्स है दुनिया की तकदीर की.
* * *
22 सितम्बर 1945
मैं एक किताब पढ़ता हूँ :
तुम उसमें हो.
एक गीत सुनता हूँ :
तुम उसमें हो.
अपनी रोटी खाने बैठता हूँ :
तुम मेरे सामने बैठी हो.
मैं काम करता हूँ :
तुम मेरे सामने हो.
तुम जो हमेशा तैयार और इच्छुक रहा करती हो :
हम बात नहीं कर सकते एक-दूसरे से,
नहीं सुन सकते एक-दूसरे की आवाज़ :
तुम मेरी विधवा हो आठ बरस से.
* * *
24 सितम्बर 1945
सबसे अच्छे समुद्र को अभी पार किया जाना बाक़ी है.
सबसे अच्छे बच्चे को अभी जन्म लेना है.
हमारे सबसे अच्छे दिनों को अभी जिया जाना है ;
और वह सबसे अच्छा शब्द जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ
अभी तक कहा नहीं है मैनें.
* * *
कितनी सारगर्भित रचनाएँ हैं ये ! दर्द और पीड़ा जैसे घनीभूत होकर ठोस हो गयी हो !
ReplyDelete२४ सितम्बर १९४५ तो बहुत ही अच्छी लगी ! प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !
जबर्दस्त मनोज भाई.सचमुच मजा आ गया.नाजिम को जितनी बार भी पढ़ो संतुष्टि नहीं होती.हर बार कुछ न कुछ नया हाथ लग ही जाता है.आप बहुत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं.पुनः बधाई.
ReplyDeleteऔर सबसे अच्छा है वो शब्द जो मै तुमसे कहना चाहता हूँ,
ReplyDeleteअभी तक कहा नहीं है मैंने...
अब क्या कहा जाये...ख़ामोशी भली.