येहूदा आमिखाई के 'जियान के गीतों' से कुछ कविताएँ...
येहूदा आमिखाई की कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)
युद्ध के बारे में कहने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है, कुछ भी
नया नहीं. मैं शर्मिन्दा हूँ.
मैं अब त्याग दे रहा हूँ अपनी ज़िंदगी में हासिल
सारी जानकारी, जैसे कोई रेगिस्तान
जिसने त्याग दिया हो पानी को.
मैं अब भूल रहा हूँ उन नामों को भी
जिन्हें कभी नहीं सोचा था कि भूलूंगा.
और युद्ध की वजह से
मैं दुहराता हूँ, आखिरी सौजन्यपूर्ण मिठास के लिए :
सूरज चक्कर लगाता है पृथ्वी का, हाँ.
पृथ्वी चपटी है किसी गुमशुदा बहते हुए तख्ते की तरह, हाँ.
वहां स्वर्ग में कोई भगवान है. हाँ.
:: :: ::
मैनें खुद को बंद कर लिया है, अब मैं
किसी नीरस भारी दलदल की तरह हो गया हूँ.
घर में चुपचाप सोते हुए बिता रहा हूँ युद्ध.
उन्होंने मुझे मृतकों का सेनापति बना दिया है
जैतून के पहाड़ों पर.
मैं हमेशा हार जाता हूँ, यहाँ तक कि
जीत में भी.
:: :: ::
ज़िंदा जल मरे इंसान ने हमसे
क्या चाहा था ?
जो पानी ने हमसे करवाना चाहा होता :
शोर न मचाना, गंदगी न फैलाना,
खामोश खड़े रहना उसके बगल,
उसे बहते देने के लिए.
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Manoj Patel Translations, Manoj Patel Blog

bahut achchha anuvad..
ReplyDeleteमैनें खुद को बंद कर लिया है, अब मैं
किसी नीरस भारी दलदल की तरह हो गया हूँ.
घर में चुपचाप सोते हुए बिता रहा हूँ युद्ध.
उन्होंने मुझे मृतकों का सेनापति बना दिया है
जैतून के पहाड़ों पर.
मैं हमेशा हार जाता हूँ, यहाँ तक कि
जीत में भी.
आप बधाई के पात्र हैं
ReplyDeleteमैं हमेशा हार जाता हूँ, यहाँ तक कि
ReplyDeleteजीत में भी.
बेहतर...