Sunday, October 16, 2011

टॉमस ट्रांसट्रोमर : हाइकू


टॉमस ट्रांसट्रोमर के कुछ हाइकू... 

 

बीस हाइकू : टॉमस ट्रांसट्रोमर
(अनुवाद : मनोज पटेल)

रात - बारह पहियों वाली गाड़ी 
गुजरती है लोगों के स्वप्नों को 
कंपकंपाते हुए. 
* * * 

कुहरे में गुनगुनाहट.
स्थल से दूर मछली पकड़ने की एक नाव 
-- लहरों पर ट्राफी.
* * *

बाल्कनी पर 
खड़ा हुआ हूँ सूर्यकिरणों के एक पिंजरे में 
इन्द्रधनुष की तरह.
* * * 

सूर्य उतर आया है नीचे 
हमारी परछाईयाँ गोलियथ हैं 
शीघ्र ही सब कुछ परछाईं होगा.
* * *

अन्धकार से जन्मा.
मैं मिला एक बहुत बड़ी परछाईं से 
एक जोड़ी आँखों में.
* * * 

जाओ, वर्षा की तरह शांत  
मिलो सरसराती हुई पत्तियों से 
सुनो क्रेम्लिन की घंटियों को !
* * * 

जगमगाते शहर :
गीत, गल्प, गणित --
मगर अलग तरह से.
* * * 

जड़वत विचार, मानो 
रंगीन पत्थरों की पच्चीकारी 
राजमहल के प्रांगण में.
* * * 

निराशा की दीवार...
इधर-उधर मंडराते कबूतर 
बिना चेहरों वाले.
* * * 

झूलते बगीचों वाला 
एक लामा मठ.
युद्ध-दृश्यों के कुछ चित्र.
* * *

नवम्बर का सूरज --
तैरती हुई मेरी विशाल छाया 
मरीचिका बनती हुई.
* * *

वे मील के पत्थर, हमेशा 
कहीं जाते हुए. सुनो 
-- एक कबूतर की पुकार. 
* * *

मृत्यु झपट्टा मारती है मुझपर.
मैं एक समस्या हूँ शतरंज में. 
उसके पास समाधान है.
* * *

मूर्खों के पुस्तकालय की
आलमारी में पड़े हुए
अनछुए धर्मोपदेश. 
* * *

देखो मैं कैसे बैठा हुआ 
जैसे जमीन पर खींच लाई गई डोंगी.
मैं प्रसन्न हूँ यहाँ. 
* * *

वीथियाँ चलती हुईं दुलकी चाल 
सूर्यकिरणों की लगाम से 
किसी ने पुकारा क्या ?
* * *

कुछ घटित हुआ.
चंद्रमा ने प्रकाश से भर दिया कमरा.
ईश्वर जानता था इस बारे में.
* * *

छत टूट गई 
और मृत लोग देख सकते हैं मुझे 
देख सकते हैं मुझे. वह चेहरा.
* * *

वर्षा की सनसनाहट सुनो.
ठीक उसके भीतर पहुँचने के लिए 
मैं बुदबुदाता हूँ एक राज.
* * *

स्टेशन के प्लेटफार्म का दृश्य.
कितनी अप्रत्याशित शान्ति -- 
यह भीतर की आवाज है. 
                    :: :: :: 
तामस त्रांसत्रोमर, विश्व कविता के हिन्दी अनुवाद  

5 comments:

  1. मनोज जी,
    दुनिया के बेहतरीन साहित्य से परिचित कराने के लिये आपका आभार, हिन्दी को समृद्ध करने में आप मह्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं

    ReplyDelete
  2. मनोज जी,
    दुनिया के बेहतरीन साहित्य से परिचित कराने के लिये आपका आभार, हिन्दी को समृद्ध करने में आप मह्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं

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  3. क्षणिकायें मर्मस्पर्शी हैं आभार ..

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  4. पढ़ना भी अनुवाद ही है, उसी भाषा से उसी भाषा में.
    -ज़ोर्जे लुईस बोर्जेस

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