डेनमार्क की कवि-कथाकार इन्गे पेडरसन के चार कविता-संग्रह, दो कहानी-संग्रह और दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. उन्हें कई पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं.
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चंचल बेटी के नाम एक चिट्ठी : इन्गे पेडरसन
(अनुवाद : मनोज पटेल)
मत सुनना मेरी
जब कहूं
मानो मेरी बात
अनदेखा कर जाना
जब कहूँ
ख़त्म हो चुकी है इंसानियत
नजरअंदाज कर देना
जब रोजाना जताने लगूँ
अपनी यंत्रवत ज़िंदगी के बारे में
इस्तेमाल तो करना
मेरा सुरक्षा जाल
मगर निकल जाना उससे
जब वह बन जाए एक कपटी फंदा
मदद लेना मेरे हाथों की
मगर तोड़ देना उन्हें
यदि वे बन जाएं तुम्हें घेरे रहने
और कुरूप करने वाले घिनौने शिकंजे
मत देखना
मत सुनना मुझे
कसूरवार मत समझना खुद को
उड़ना !
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manoj patel
बेटी को ज़रूरी चीज़ों की समझ उपलब्ध कराके 'मुक्त' करना इसी को कहते हैं. मुक्त करना अपना रास्ता खुद चुनने के लिए. यहां मां की सीख 'बुद्धत्व' की सीख का रूप धारण कर लेती है. बुद्ध भी तो कहते हैं, "मत मान लेना किसी भी बात को, सिर्फ़ इसलिए कि मैं कह रहा हूं. परखना उसे अपने अनुभव की कसौटी पर..." अक्सर मां-बेटी की कविताओं में मांएं बेटियों को अपनी अनुकृति बना देने का प्रयत्न करती दिखती हैं.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है. अनुवाद तो है ही आभार.
आह ! बहुत प्यारी रचना .. उड़ना ..
ReplyDeleteबेहतरीन...मनोज भाई, आप डेनिश भी जानते हैं शायद! नयी पीढी के लिए है यह कविता!
ReplyDeleteनहीं चन्दन भाई, मैंने यह अनुवाद अंग्रेजी से ही किया है.
ReplyDeleteसुंदर !!!!!!!
ReplyDeleteमनोज जी, एक माँ होने के नाते कह सकती हूँ कि कविता दिल को छू गयी.......बहुत सुंदर अनुवाद किया है आपने.....
ReplyDeleteनिकल जाना मेरे सुरछा जाल से,जब लग जाय एक कपटी फंदा .........बहुत सुंदर कविता एवं अनुवाद .......आज के परिपेछ्य में .....!!
ReplyDeleteबढ़िया कविता, सुंदर अनुवाद।
ReplyDeleteउड़ना ... अहा !!!!
ReplyDeleteयानी अनुवादका अनुवाद!
ReplyDeleteइस कविता का अंतिम शब्द 'उड़ना' की गूँज बड़ी देर तक सुनाई देती है।
ReplyDeleteइस कविता का अंतिम शब्द 'उड़ना' की गूँज बड़ी देर तक सुनाई देती है।
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