Thursday, January 5, 2012

पाब्लो नेरुदा : कुछ सवाल

पाब्लो नेरुदा की 'सवालों की किताब' से कुछ सवाल...

 

कुछ सवाल : पाब्लो नेरुदा 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

जब मैंने एक बार फिर से देखा समुद्र को 
समुद्र ने मुझे देखा होगा या नहीं?
लहरें क्यों मुझसे पूछती हैं वही सवाल 
जो मैं पूछता हूँ उनसे?
और वे क्यों टकराती हैं चट्टानों से 
इतने निरर्थक जुनून के साथ? 
क्या वे थक नहीं जातीं दुहराते हुए 
रेत के प्रति अपनी घोषणा? 
                    :: :: ::

क्या तुम्हें भरोसा नहीं कि ऊँट 
चांदनी रखे होते हैं अपने कूबड़ में? 
क्या वे इसे बोते नहीं रहते रेगिस्तान में 
रहस्यमय जिद के साथ?
और क्या समुद्र भाड़े पर नहीं दिया गया है 
पृथ्वी को थोड़े से समय के लिए? 
और क्या हमें उसे लौटा नहीं देना होगा 
उसकी लहरों समेत चंद्रमा को? 
                    :: :: ::
Manoj Patel, Akbarpur, Ambedkarnagar (U.P.)

5 comments:

  1. बेहद खूबसूरत ख्याल!

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  2. इन सवालों के बीच खोये हुए सोचते रहे बड़ी देर तक... और इसी बीच पढ़ते पढ़ते के कई पन्ने पुनः पलटे!
    आभार!

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  3. सुन्दर अनुवादमौलिक सा स्वाद .

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  4. ऊँट चाँदनी रखे रहते हैं अपने कूबड़ में.... गज़ब की सोच है ये....

    कवि को नमन!

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