Wednesday, January 18, 2012

राबर्टो जुअर्रोज़ : इस तरह जन्म होता है एकांत का

राबर्टो जुअर्रोज़ की 'फिफ्थ वर्टिकल पोएट्री' से एक कविता...

 
राबर्टो जुअर्रोज़ की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

दिन की रिक्तता  
एक बिंदु में घनीभूत होकर 
चू पड़ती है नदी में 
एक बूँद की तरह. 

दिन की परिपूर्णता 
एक सूक्ष्म विवर में घनीभूत होकर 
खींच लेती है उस बूँद को 
नदी से बाहर. 

किस परिपूर्णता से किस रिक्तता की ओर 
या किस रिक्तता से किस परिपूर्णता की ओर 
बह रही है नदी?

सफ़ेद छत पर 
एक छोटी सी लकीर खींचती है आँख. 
छत स्वीकार कर लेती है आँख के इस भ्रम को 
और काली पड़ जाती है. 
उसके बाद लकीर मिटा लेती है खुद को 
और आँख बंद हो जाती है. 

इस तरह जन्म होता है एकांत का. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte 

2 comments:

  1. trying to understand...will comment later!!!!
    :-)

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  2. बहुत सुंदर ! ध्यान के सूत्र बताती हुई अद्भुत कविता...

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