Sunday, January 22, 2012

एदुआर्दो गैल्यानो : ट्रेन के हाथ

एदुआर्दो गैल्यानो की किताब 'मिरर्स' से एक और अंश... 

 
ट्रेन के हाथ : एदुआर्दो गैल्यानो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

रोजाना साठ लाख यात्रियों को ढोने वाली मुम्बई की लोकल ट्रेनें भौतिकी के सिद्धांतों को भंग कर देती हैं : उन पर उनकी औकात से ज्यादा यात्री चढ़ते हैं. 

इन अकल्पनीय यात्राओं के अच्छे जानकार सुकेतु मेहता बताते हैं कि ठसाठस भरी ये ट्रेनें जब चलने लगती हैं तो लोग उसके पीछे दौड़ पड़ते हैं. जिसकी ट्रेन छूट जाती है उसकी नौकरी भी छूट जाती है. 

उसके बाद डिब्बों की खिड़कियों या छतों से हाथ उग आते हैं और वे पीछे छूट गए लोगों की लटक-पटक कर ऊपर चढ़ने में मदद करते हैं. और ट्रेनों के ये हाथ दौड़ते आ रहे लोगों से यह नहीं पूछते कि वह देशी है या विदेशी, या कि वह कौन सी भाषा बोलता है, या वह ब्रह्मा की पूजा करता है अथवा अल्लाह की, बुद्ध या ईसा मसीह की. न ही वे यह पूछते हैं कि वह किस जाति का है, किसी अभिशप्त जाति का या बिल्कुल जाति विहीन ही तो नहीं है. 
                                                                    :: :: :: 
Manoj Patel, Parte Parte, Parhte Parhte, Padte Padte, 09838599333 

2 comments:

  1. सच है...मुंबई की लोकल ट्रेन में एक दुनिया चलती है...
    सुन्दर रचना..
    शुक्रिया.

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  2. यह अंश कितना सत्य है... जैसे स्थिति की स्पष्ट तस्वीर खिंची गयी हो...!

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