Sunday, January 8, 2012

लैंग्स्टन ह्यूज : भूखे बच्चे से ईश्वर

लैंग्स्टन ह्यूज की एक और कविता...

 
भूखे बच्चे से ईश्वर : लैंग्स्टन ह्यूज 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

भूखे बच्चे, 
मैनें यह दुनिया तुम्हारे लिए नहीं बनाई. 
तुमने मेरी रेलवे में पूंजी तो लगाई नहीं.
मेरे निगमों में पैसा नहीं लगाया.
कहाँ हैं स्टैण्डर्ड आयल के शेयर तुम्हारे? 
मैनें अमीरों के लिए बनाई है यह दुनिया 
और उनके लिए जो अमीर होने वाले हैं 
और उनके लिए जो हमेशा से रहे हैं अमीर.
तुम्हारे लिए नहीं, 
भूखे बच्चे. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel, Tamsa Marg, Akbarpur, Ambedkarnagar, (U.P.), 09838599333  

13 comments:

  1. कितनी कड़वी है ईश्वर की यह स्वीकारोक्ति ! बेहद मार्मिक ! आभार मनोज जी ,इस कविता और उसके अनुवाद के लिए !

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  2. ईश्वर सत्य कैसे बोल गया ?

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  3. ईश्वर पर लोगों के बढ़ते अविश्वास ने ईश्वर को मजबूर कर दिया कि वह सच बोले, और सच के सिवा कुछ न बोले. बच्चे से झूठ आसानी से बोला जा सकता था, पर यह ईश्वर की हताशा है जिसने उसे एक बार तो सच बोलने को विवश कर ही दिया.

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  4. इस जनतंत्र में ईश्वर ही अधिनायक है...उसका मूड किया बोल गया.

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  5. कवि की संवेदना ऐसा भी सोच सकती है।

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  6. मार्मिक रचना !

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  7. Bitter truth . Mythology and contemporary time's human lust for money and nexus are exposed!

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  8. बहुत अच्छी कविता

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  9. जिसे ग़रीबों का कहिये ख़ुदा ख़ुदा भी नहीं

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  10. जिसे ग़रीबों का कहिये ख़ुदा ख़ुदा भी नहीं

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  11. अच्छी कविता, सुन्दर अनुवाद…

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  12. ईश्वर बड़ा दयालु है !

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