Tuesday, March 6, 2012

करीम राधी की कविताएँ

हाल ही में बहरीन के कवि करीम राधी की कुछ अद्भुत युद्ध-विरोधी कविताएँ पढ़ने को मिलीं. उनका जन्म १९६० में बहरीन के तुबली गाँव में हुआ था. कविताएँ लिखने की शुरूआत उन्होंने १९८० से कर दी थी मगर पहला संग्रह २००३ में प्रकाशित हुआ. बहरीन एवं अन्य अरब देशों के तमाम अखबारों और पत्रिकाओं में उनके लेख तथा कविताएँ प्रकाशित होती रही हैं. 

 
करीम राधी की कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

बहाना 

कभी आजादी के नाम पर 
कभी मातृभूमि के नाम पर 
कभी राष्ट्रवाद के नाम पर 
कभी धर्म के नाम पर 
कोई नाम नहीं है इस युद्ध का 
हमेशा उधार के नाम से चलाता रहा है अपना काम 
                    :: :: :: 

युद्ध के सौदागर 

कितने ढीठ हैं वे 
उन्होंने न्योता हमारे दोस्त पिकासो को 
गुएर्निका के संशोधन के लिए एक समारोह में. 
                    :: :: :: 

फ़ौजी 

उस दौड़ते हुए जूते को देखो तो 
जो पहने हुए है एक आदमी को 
                    :: :: :: 

5 comments:

  1. Very true, when the destructive mentality works, it just needs an excuse to eliminate whatever comes in the way.

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  2. मा"कितने ढीठ हैं वे
    उन्होंने न्योता हरे दोस्त पिकासो को
    गुएर्निका के संशोधन के लिए एक समारोह में." ग़ज़ब!

    "कोई नाम नहीं है इस युद्ध का
    हमेशा उधार के नाम से चलाता रहा है अपना काम." युद्ध पर अब तक पढ़ी श्रष्ट कविताओं में गिनी जा सकती हैं ये, इतनी छोटी होने के बावजूद. बधाई, मनोज.

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  3. क्या बात है ................कमाल की कवितायेँ ! गंभीर और अर्थपूर्ण !

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  4. सुंदर कविताएँ.हमेशा की तरह.शुक्रिया.

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