Tuesday, March 13, 2012

राबर्तो हुआरोज़ : संकेतों की भाषा

राबर्तो हुआरोज़ की एक और कविता...    

 
राबर्तो हुआरोज़ की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

लिखने की कोशिश करते हुए 
हाथ का संकेत 
कभी-कभी रचना करता है विचार की, 
और रचता है बिम्ब को 
जो उसके बाद फिर चलाता है हाथ को.  

एक संकेत रचता है प्रेम को भी, 
जो बाद में रचता है दूसरे संकेतों को 
और उसके अलावा भी किसी चीज को जो छिपी होती है नीचे. 

संकेतों की स्वतंत्र भाषा 
एक सुविचारित संयोग सी जान पड़ती है 
उस सुसुप्त प्रतीक्षा को जागृत करने के लिए 
जो रहती है हर चीज की गहराई में. 

पेड़ भी एक भाषा है संकेतों की 
जहां एक होती है संयोग और पेड़ की सहापराधिता  
एक पत्ती को गिराने के लिए. 
                    :: :: :: 

7 comments:

  1. संकेत कोंचते हैं मन को ,और मन से कुछ छलक जाता है ! सौंदर्याभिरुचि संकेतों से उकस जाती है !
    बहुत अच्छी इस कविता का सुंदर अनुवाद किया मनोज जी ! आभार !

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  2. बहुत सुन्दर अनुवाद किया है मनोज जी इस सुन्दर और गहरे अर्थों वाली कविता का ! संकेत हमारी सौन्दर्याभिरुचि को उकसा देते हैं और वह अपने निकष में मन से कुछ ढरका लेती है !

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  3. कमाल के बिंब उपस्थित करती कविता। नए पत्तों के आने के लिए पुरानों का पेड़ों से उतरना जरूरी होता है। लेकिन किसी एक को हुई तकलीफ भी नगण्य नहीं है। उसका संज्ञान जरूरी है।

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