Thursday, April 5, 2012

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : एक ज़ंग आलूद पिन


पाकिस्तान के मशहूर कवि अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...  

एक ज़ंग आलूद पिन : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 
 
डाक्टर पेड्रो आरा 
किसी लाश को हनूत करने का काम  
मिलने का इंतज़ार करते-करते 
हमारे मुल्क में 
फ़ाक़ाकशी से मर जाता 

हमारे किसी सदर को 
अपनी मुस्तक़िल  शरीक के 
अज़ीयत  की मौत मर जाने के बाद 
उसे गोश्त पोस्त में महफ़ूज़ करने का ख्याल नहीं आया 

मगर सारे सदर एक जैसे नहीं होते 
और न सारी खवातीने-अव्वल  प्राइमा बैलेरिना 
जिसको मिट्टी में मिल जाना 
ज़ेब नहीं देता 
अगर वह डाक्टर पेड्रो आरा की हमवतन 
और एक मुल्क के सरबराह की हमबिस्तर 
की हैसियत से दम तोड़े 

सदर की ख्वाबगाह में 
वह अपने खुले ताबूत के अन्दर 
तीन साल तक  पुरसुकून पड़ी रही 

माज़ूली के बाद 
साबिक हुक्मरां ने उसे अपनी जलावतनी में शरीक रखा 
और वह मेड्रिड के एक तहखाने तक पहुँचने के लिए 
सारा अटलांटिक पार कर गई 

तीन साल बाद 
इक्तिदार पर दोबारा काबिज होने के लिए 
जलावतन सदर ने 
दोबारा अटलांटिक  उबूर किया 
प्राइमा बैलेरिना के ताबूत के बगैर 
सिर्फ इसलिए 
कि उनकी महबूबा 
मशहूर फिल्मी अदाकारा को 
बदसूरत चीजों से नफरत थी 
जैसे 
किसी हनूत की हुई लाश में लगा 
एक ज़ंग आलूद पिन 
                    :: :: :: 

ज़ंग आलूद = जंग लगा हुआ 
अज़ीयत = यातना, तकलीफ 
गोश्त-पोस्त = मांस-त्वचा, सशरीर  
महफ़ूज़ = सुरक्षित 
खवातीने-अव्वल = प्रथम महिला  
ज़ेब = शोभा 
माज़ूली = पदच्युति 
साबिक  =  पूर्व 
इक्तिदार = सत्ता 
उबूर = पार करना 

3 comments:

  1. दिल दहलाने वाली कविता जिसमें मौत की बदसूरती और ताकतवर लोगों की सनक का मर्मस्पर्शी चित्रण है.

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  2. बढिया प्रस्तुति। आभार।

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  3. कुछ लोगों के लिए, मौत पर ही आकर सब कुछ रुक नहीं जाता. उसके परे भी हो सकती हैं कुछ महत्वाकांक्षाएं जो चाहे अंततः मूर्खतापूर्ण लगें. कविता कई तरह के भाव मन में पैदा करके अपना असर छोडती है.

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