Sunday, April 15, 2012

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की कविता

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...  

 
यह कोई ग़ैर मामूली बात नहीं : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 

यह कोई ग़ैर मामूली बात नहीं 
कि मेरी तलाशी ली गई 
और मेरे दिल को छीन लिया गया 

और न यह कि 
मुझे बाहर निकालने के लिए 
मेरे घर को आग लगा दी गई 

और न यह कि 
कुत्ते पकड़ने की कैंची मेरी कमर में फंसाकर 
मुझे ट्रक में डाल दिया गया 

और न यह कि 
जलते हुए कोयले को 
अपनी मुठ्ठी में छुपाकर मैंने पूछा 
मेरे हाथ में क्या है 
और तुम कोई जवाब न दे सकीं. 
                 :: :: ::    

4 comments:

  1. किसी के लिए भी यह बता पाना शायद आसान नहीं होता कि बंद मुट्ठी में एक जलता हुआ कोयला भी हो सकता है ! वैसे सबसे बड़ी खूबी इस कविता की यह लगती है कि तमाम यंत्रणाओं को कवि "मामूली" ही मानता है. यंत्रणाओं की सघनता इससे बढ़ जाती है.

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  2. यंत्रणाओं को धुँए में उड़ाती कविता.....शानदार।

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  3. एक गैर मामूली यंत्रणाओं को झेलते हुए व्यक्ति की दारुण गाथा ! सहज अनुवाद !

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  4. एक ऐसी कविता जो मौन में परिभाषित होती है अल्फाज़ कम पड गये !!आभार !!

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