अन्ना स्विर की एक और कविता... 
समुद्र और इंसान : अन्ना स्विर 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 
तुम साध नहीं पाओगे इस समुद्र को 
विनम्रता या हर्षोन्माद से. 
मगर हँस सकते हो 
इसके मुंह पर. 
उन लोगों ने ईजाद की थी 
हँसी  
जो जीते हैं मुख़्तसर 
हँसी की एक बौछार की तरह. 
यह अंतहीन समुद्र 
कभी नहीं सीख पाएगा हँसना 
            :: :: :: 
 
 
समुद्र पर नहीं एक डबरे पर हँसा जा सकता है ...गहरी बात कही । बढ़िया अनुवाद ।
ReplyDelete