विस्वावा शिम्बोर्स्का की एक कविता
11 सितंबर की एक तस्वीर : विस्वावा शिम्बोर्स्का
(अनुवाद : मनोज पटेल)
वे कूद पड़े जलती मंज़िलों से -
एक, दो, कुछ और,
कुछ ऊपर, कुछ नीचे.
तस्वीर ने रोक रखा है उन्हें जीवित,
और फिलहाल सहेज रखा है उन्हें
धरती के ऊपर, धरती की ओर.
अब भी साबुत है हर एक
अपने ख़ास चेहरे
और भलीभांति छिपे हुए खून के साथ.
अभी काफी वक़्त है
बालों के बिखरने में,
और जेबों से
कुंजियों और सिक्कों के गिरने में.
वे अब भी हैं हवा के फैलाव के भीतर,
उन जगहों के विस्तार में
जो अभी-अभी बनी हैं.
मैं उनके लिए सिर्फ दो काम कर सकती हूँ -
इस उड़ान का बयान करूँ
और न जोड़ूँ कोई आखिरी पंक्ति.
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मूल पोलिश से Clare Cavanagh और Stanistaw Baranczac के अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत ही सटीक ....... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। Nice article ... Thanks for sharing this !! :):)
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