महमूद दरवेश की कविताओं के क्रम में आज उनकी यह कविता, 'वह नहीं आई'
वह नहीं आई :
महमूद दरवेश
(अनुवाद : मनोज पटेल)
वह नहीं आई,
मैनें कहा, और आएगी भी नहीं.
इसलिए ऐसे बिताऊंगा अपनी शाम
जो मुफीद हो मेरी नाउम्मीदी और
उसकी नामौजूदगी के लिए.
मैंने बुझा दिया उसकी कंदीलों की लौ,
और जला दिया बत्ती को.
पी डाली उसकी शराब
और तोड़ दिया जाम को.
बंद कर दिया उन्मत्त वायलिन का संगीत और
सुनने लगा फारसी गाने.
मैनें कहा, वह नहीं आएगी.
मैं ढीली करूंगा अपनी टाई (अब ठीक है)
और नीला पाजामा पहन लूंगा.
नंगे पाँव चलूँगा अगर दिल किया तो.
चैन से पालथी मारकर बैठूंगा उसके सोफे पर
और उसे भूल जाऊंगा, और हर उस चीज को भूल जाऊंगा जो यहाँ नहीं है.
मैनें वापस दराजों में रख दिया हर वह चीज
जो निकाली थी उसके साथ जश्न मनाने के लिए.
खोल दिया सारे परदे और खिड़कियाँ.
कोई राज नहीं है मेरे बदन में, जब मैं रात का सामना कर रहा हूँ,
सिवाय उसके जो मैनें उम्मीद की थी और अब खो बैठा हूँ.
मैं मुस्कराया था रास्तों पर
और उसकी खातिर तरोताजा की थी हवा, बेवकूफों की तरह.
(मैनें गुलाबजल और लेमन स्प्रे का इस्तेमाल किया था.)
वह नहीं आएगी.
मैं दाहिने से बाएँ सरका दूंगा
उसका गमला
उसके भुलक्कड़पन की सजा के बतौर.
मैनें कोट से ढँक दिया है दीवाल पर टंगे आईने को,
ताकि उसके अक्स की चमक देखकर
पछताना न पड़े.
मैनें कहा : बेहतर है कि भूल जाऊं जो दुहराया था उसकी खातिर
एक पुरानी ग़ज़ल से, क्योंकि
वह किसी कविता के काबिल नहीं है,
चोरी की गई कविता के भी काबिल नहीं है वह तो.
मैं उसे भूल चुका हूँ,
खड़े-खड़े खाना खाया है फ़टाफ़ट,
और स्कूल की किताब से एक अध्याय पढ़ डाला है
सुदूर सितारों के बारे में.
और उसके गुनाह को भूलने के लिए
लिख डाली है
एक कविता. यह कविता !
आपका ब्लॉग पर बिला नागा आना आजकल कुछ ऐसा है जैसे कोई धर्मांध मंदिर जाए ...
ReplyDeleteवाह मनोज भाई वाह . आपका आभार . इतनी सुन्दर प्रेम कविता बहुत सालों के बाद पढ़ी .. इतने समय के बाद कि याद नहीं कि कब पढ़ी थी . इतनी सहज , मानवीय और शानदार कविताएं लिख पाना महमूद दरवेश जैसे कवि के ही बस की बात है .
ReplyDeleteकोई राज़ नहीं है मेरे बदन में जब मैं रात का सामना कर रहा हूँ ...
waah..Manoj ji..vaqai is blog par aana ek skhad ehsaas sa..
ReplyDeleteमैंने कोट से ढक दिया आईने को ...........बहुत सुन्दर अहसास , क्या बात है बहुत खूब ...
ReplyDeleteoutstanding.. Brilliant.. Shaandar se kam to kya kahun is kavita ke liye..seedha dil tak pahunchi.. Shukriya ise share krne ke liye
ReplyDeleteपढते पडते सारी रात गुजर गयी
ReplyDeleteसूरज की किरण अभी बाकी है
आपकी मेहनत रंग लाएगी
बात अभी बाकी है