आज महमूद दरवेश की किताब घेराबंदी की हालत (State of Siege, 2002) से कुछ कविताएँ.
घेराबंदी की हालत : महमूद दरवेश
(अनुवाद : मनोज पटेल)
नापते हैं फ़ौजी
एक टैंक की गुंजाइश से...
* * * *
हम अपनी देंह और तोप के गोलों के बीच की दूरी
नापते हैं... छठी इन्द्रिय से
* * * *
जब कभी बीता हुआ कल आता है , मैं उससे कहता हूँ :
आज के लिए नहीं तय थी हमारी मुलाक़ात, इसलिए चले जाओ
और कल फिर आना वापस !
* * * *
एक व्यंग्यकार ने बोला मुझसे :
यदि शुरूआत से ही जानता होता, अंत के बारे में,
कोई काम बाक़ी न छोड़ा होता मैनें भाषा में
* * * *
हर मौत,
कितनी भी प्रत्याशित रही हो,
होती है पहली मौत ही
तो मैं कैसे देख सकता हूँ
एक चंद्रमा
हर पत्थर के नीचे सोया हुआ ?
* * * *
(एक आलोचक से :) मत करो मेरे शब्दों की व्याख्या
एक चम्मच या चिड़िया पकड़ने के किसी जाल से !
मेरी बात घेर लेती है मुझे नींद में,
वह बात जो अभी तक मैनें नहीं कही,
वह लिखती है मुझे और फिर मुझे तलाशता छोड़ जाती है
अपनी बाक़ी की नींद...
* * * *
मैं चीखूंगा अपने अकेलेपन में,
सोते हुओं को जगाने के लिए नहीं.
बल्कि इसलिए कि मेरी चीख जगा दे मुझे
अपनी बंदी कल्पना से !
* * * *
मैं उन कवियों में से आखिरी हूँ जो
उस वजह से अपनी नींद खो देते हैं, जिससे उनके दुश्मनों की नींद उड़ी हुई है :
यह धरती बहुत तंग है शायद
लोगों, और
देवताओं के लिए
* * * *
हमारे नुकसान : दो से लेकर आठ शहीद
हर दिन,
और दस घायल
और बीस घर
और पचास जैतून के पेड़,
उन ढांचागत कमियों के अलावा
जो सताएंगी कविता और नाटक और अधूरी पेंटिंग को
* * * *
हम अपने मर्तबानों में रखते हैं अपने दुखों को, ताकि
इन्हें देखकर घेरेबंदी का जश्न मना सकें फ़ौजी...
हम रखते हैं उन्हें दूसरे मौसमों के लिए,
याददाश्त के लिए,
किसी ऎसी चीज की खातिर जो चौंका सके हमें सरे राह.
मगर जब सामान्य हो जाएगी ज़िंदगी
हम दूसरों की तरह रंज करेंगे निजी मुद्दों पर
कि छुपाकर रखी गई थीं बड़ी सुर्खियाँ,
जब हमने गौर नहीं किया था अपने छोटे-छोटे जख्मों से बहते खून पर.
कल जब घाव भर जाएंगे इस जगह के
हमें एहसास होगा इसके पार्श्व प्रभावों का
* * * *
एक स्त्री ने कहा एक बादल से : ढँक लो मेरे महबूब को
क्योंकि उसके खून से भीग गए हैं कपड़े मेरे !
* * * *
अगर तुम बारिश नहीं हो मेरे प्रिय
हो जाओ कोई पेड़
उर्वरता से भीगा हुआ... कोई पेड़ हो जाओ
और अगर तुम कोई पेड़ नहीं हो मेरे प्रिय
हो जाओ कोई पत्थर
नमी से भीगा हुआ.. कोई पत्थर हो जाओ
और अगर तुम कोई पत्थर नहीं हो मेरे प्रिय
हो जाओ एक चाँद
आशिक की नींद में... एक चाँद हो जाओ
(वह बात जो एक स्त्री ने अपने बेटे से, उसे
दफ़न करते समय कही)
* * * *
(रात से :) भले ही तुम कितना भी दावा करो बराबरी का
"तुम्हारा सबकुछ सबके लिए"... सपने देखने वालों और उनके
सपनों के चौकीदारों के लिए, अब भी हमारे पास है एक गुमशुदा चाँद, और खून
जो तुम्हारी कमीज का रंग नहीं बदलता, ऐ रात...
* * * *
(मौत से :) हमें पता है कि तुम किस टैंक से आई हो.
हमें पता है कि तुम क्या चाहती हो... इसलिए वापस जाओ
एक गायब अंगूठी के साथ. और माफी मांगो फौजियों और उनके साहबों से,
और बोलो : नवविवाहित जोड़े ने मुझे देख लिया था अपनी तरफ ताकते हुए,
इसलिए मैं हिचकिचाई और फिर आंसुओं में डूबी दुल्हन को वापस कर दिया
उसके रिश्तेदार को... अकेले
* * * *
यह घेरेबंदी तब तक चलेगी जब तक
घिरे हुए लोगों की ही तरह, घेरेबंदी करने वालों को भी यह एहसास न हो जाए
कि ऊब
एक इंसानी खासियत है
* * * *
मैनें बीस पंक्तियाँ लिखीं प्रेम के बारे में
और कल्पना किया कि
यह घेरेबंदी
बीस मीटर पीछे हट गई है.
* * * *
उसे ताना मारने का मौक़ा मिल ही जाता है :
मेरा फोन नहीं बजा
और न ही दरवाजे की घंटी
फिर कैसे तुम्हें यकीन था कि
मैं यहाँ नहीं था ?
* * * *
जब मैं तुम्हारा इंतज़ार करता होता हूँ, मुझसे तुम्हारा इंतज़ार नहीं होता
नहीं पढ़ पाता दोस्तोवस्की को
या ओम कल्थौम या मारिया कैलेस या किसी और के
गीत नहीं सुन पाता. जब मैं इंतज़ार करता होता हूँ तुम्हारा
बाईं तरफ घूमती हैं मेरी घड़ी की सूइयां, एक ऐसे वक़्त की तरफ
जिसकी कोई जगह नहीं है, जब मैं इंतज़ार कर रहा था तुम्हारा
तुम्हारा नहीं, अनंतकाल का इंतज़ार कर रहा था मैं
* * * *
"मैं या वह"
इस तरह से शुरू होती है कोई जंग. मगर
ख़त्म होती है यह एक बेढंगी मुद्रा पर :
"मैं और वह"
* * * *
एक लड़का खेलेगा
चार रंगों वाली पतंग के साथ
(लाल, काली, सफ़ेद, हरी)
फिर दाखिल हो जाएगा वह एक भगोड़े सितारे में
* * * *
(एक चौकीदार से :) मैं तुम्हें इंतज़ार करना सिखाऊंगा
अपनी स्थगित मौत के दरवाजे पर
सब्र करो, सब्र करो
शायद तुम ऊब जाओ मुझसे
और उठा लो मेरे ऊपर से अपनी परछाईं
और दाखिल हो जाओ अपनी रात में, आज़ाद
मेरे प्रेत के बिना !
* * * *
(दूसरे चौकीदार से :) मैं तुम्हें इंतज़ार करना सिखाऊंगा
एक काफीघर के दरवाजे पर
तुम्हारी खातिर, अपने दिल की धड़कन धीमी और तेज होते सुनने के लिए
शायद तुम भी जान जाओ थरथराहट को, जैसे कि मैं जानता हूँ
सब्र करो,
शायद तुम भी मेरी तरह सीटी में बजाने लगो कोई प्रवासी धुन
दुख में अंडालूसी, दायरे में फारसी
फिर चमेली तुम्हें तकलीफ पहुंचाए, और तुम चले जाओ
* * * *
(तीसरे चौकीदार से :) मैं तुम्हें इंतज़ार करना सिखाऊंगा
पत्थर की एक बेंच पर, शायद
हम एक-दूसरे को बताएं अपने नाम. शायद तुम गौर कर सको
हमारे बीच एक जरूरी समानता पर :
तुम्हारे पास एक माँ है
और मेरे पास भी एक माँ है
और एक ही बारिश है हमारे पास
और एक ही चन्द्रमा
और खाने की मेज से एक संक्षिप्त गैरहाजिरी
* * * *
काल, देश बन जाता है घेरेबंदी में
अपनी शाश्वतता में जड़वत.
देश, काल बन जाता है घेरेबंदी में
जिसे देर हो गयी है तयशुदा मुलाक़ात के लिए.
* * * *
स्थान एक गंध है.
जब मुझे याद आती है जमीन
तो सूंघता हूँ गंध का लहू
और ललकता हूँ अपने बेदखल वजूद के लिए
* * * *
अभी और मजबूत होगी यह घेराबंदी
हमें राजी करने के लिए
एक निरापद गुलामी हेतु,
लेकिन चयन की पूर्ण स्वतन्त्रता के साथ
* * * *
जब बीमार पड़ती है मुहब्बत, मैं उसका इलाज़ करता हूँ
खेलकूद और कटाक्ष से
और गायक को अलगाकर... गीत से
* * * *
घेराबंदी मुझे बदल देती है, एक गायक से...
वायलिन के छठे तार में
* * * *
Mahmoud Darwish State of Siege ka Hindi Anuvad
great job
ReplyDeleteअभी तक पढ़ी गई चुनिन्दा बेहतरीन कविताओं में से एक...निस्संदेह लाज़वाब अनुवाद की बदौलत !धन्यवाद मनोज जी
ReplyDeleteबेहद अच्छी कवितायें |
ReplyDeleteबूंद बूंद से सागर भरना किसे कहते है ...रोजाना आपके ब्लॉग पर आकर समझ आता है .
ReplyDeleteमैं चीखूंगा अपने अकेलेपन में
ReplyDeleteसोते हुओं को जगाने के लिए नहीं
बल्कि इसलिए कि मेरी चीख जगा दे मुझे
अपनी बंदी कल्पनाओं से!
बहुत ही गहरी संवेदना का आवेग
अनुवाद में मौलिकता भी है.. कुछ संदर्भ तो वस्तुतः रोमांचित कर देत हैं. आभार.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविताएँ.
ReplyDeleteयुद्ध की भयानक पीडाओं से भरी ज्यादातर कविताएँ .. अपने में खास अलग तरह की ... कल आपके ब्लॉग को चर्चामंच पर रखूंगी ... आपका आभार ,
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
अच्छी रचनाओं का प्रस्तुत किया है ...
ReplyDelete