आज माइआ अंजालो की एक और कविता...
मर्द : माइआ अंजालो
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जब मैं छोटी थी, परदे के पीछे से
देखा करती थी मर्दों को
सड़क से आते-जाते. पियक्कड़ मर्द, बूढ़े मर्द.
जवान मर्द सरसों की तरह तेज.
उन्हें देखो. मर्द हमेशा
कहीं न कहीं जा रहे होते हैं.
उन्हें पता होता था मेरी मौजूदगी के बारे में.
पंद्रह साल की और उनके लिए तड़पती हुई.
वे ठिठकते मेरी खिड़की के पास,
ऊंचे उठे हुए उनके कंधे जैसे
किसी जवान लड़की के वक्ष,
उनकी जैकेट का पिछ्ला हिस्सा जैसे
धौल जमाता हुआ पीछे वालों को,
मर्द.
किसी दिन वे तुम्हें थामते हैं अपनी
हथेलियों में, आहिस्ता से, जैसे तुम
आखिरी कच्चा अंडा होओ इस दुनिया की. फिर
वे कड़ी करते हैं अपनी पकड़. बस थोड़ी सी. पहला
दबाव अच्छा लगता है. एक फुर्तीला आलिंगन.
तुम्हारी असहायता में बहुत कोमल. थोड़ा और.
अब तकलीफ शुरू होती है. ओढ़ लो एक मुस्कराहट
जो फिसलती है डर के आस-पास. जब हवा गायब हो जाती है,
तुम्हारा दिमाग तड़क जाता है, तेजी से फटता हुआ,
थोड़ी देर के लिए ही सही,
जैसे किसी माचिस की तीली का सिरा. चूर-चूर.
यह तुम्हारा रस है
जो बहता है उनकी टांगों से. दाग लगाता हुआ उनके जूतों पर.
जब पृथ्वी फिर से सही कर लेती है खुद को,
और जुबान पर लौटने की कोशिश करता है स्वाद,
तुम्हारी देंह जोर से बंद हो जाती है. हमेशा के लिए.
जिसकी कोई चाभी नहीं होती वजूद में.
तब खिड़की पूरी तरह खुलती है
तुम्हारे दिमाग पर. वहां, बस झूलते परदे से परे,
मर्द चल रहे हैं.
कुछ जानते हुए.
कहीं जाते हुए.
मगर इस बार, तुम बस
देखा करोगी चुपचाप खड़ी.
शायद.
Maya Angelou Poems in Hindi Translation
वाह बहुत सुन्दर अनुवाद एक बार पुनः आप का .....कोमार्य का आभूषण पहन कर जब तक कोई स्त्री आपने जीवन पथ पर चलती है तो इस तरह के पहाड़ों के रास्तें में कई बार उनको पत्थरों से टकराकर उस को रेत में भी बदलना होता है ...आपने को जीवन में छलनी करते हुए भी आपनी धारा के साथ साथ यही शायद इंसानी जीवन में उसकी अभिव्यक्ति के पलों को उकेरा है इस कविता में ...सुन्दर ....धन्यवाद मनोज जी !!!!!!!!! Nirmal Paneri
ReplyDeleteएक जवान होती लडकी का अनुभव ! सुन्दर और मनोवैज्ञानिक चित्रण !
ReplyDeleteबढ़िया अनुवाद के लिए बधाई !