पढ़ते-पढ़ते पर आज अर्जेंटीनी कवि-कथाकार-निबंधका र होर्हे लुईस बोर्हेस (Jorge Luis Borjes, 1899-1986) की कहानी बुक आफ सैंड का मनीषा कुलश्रेष्ठ द्वारा किया गया अनुवाद - रेत की किताब
रेत की किताब : होर्हे लुईस बोर्हेस
(अनुवाद : मनीषा कुलश्रेष्ठ)
रेखा का निर्माण अनन्त बिन्दुओं से होता है; अनंत रेखाओं से एक तल; अनंत तलों से मिलकर एक आयतन बनता है, अनंत आयतनों से एक परा - आयतन बनता है. ना, बिला शक यह कोई रेखागणितीय मामला नहीं है - यह मेरी कहानी आरंभ करने का एक बेहतरीन तरीका है. यह दावा करना कि यह हकीकत है, किसी भी बनायी गयी कहानी को आरंभ करने की परंपरा सी बन गई है. लेकिन मेरी, फिर भी सच्ची है.
मैं ब्यूनस आयरस में बेलग्रानो स्ट्रीट में चौथी मंजिल पर स्थित अपार्टमेन्ट में अकेला रहता हूँ. कुछ महीने पहले, एक दिन देर शाम को मैंने अपने दरवाजे पर एक थपथपाहट सुनी. मैं ने दरवाजा खोला तो एक अजनबी वहां खडा था. वह एक लम्बा व्यक्ति था, जिसके नाक नक्शे का कोई खास वर्णन नहीं किया जा सकता - या हो सकता है कि वह मेरा निकट दृष्टि दोष रहा हो जिससे मुझे ऐसा लगा. उसने सलेटी कपडे पहने थे और सलेटी ही सूटकेस अपने हाथों में थाम रखा था, उसके चेहरे से उसकी थाह पाना कठिन था. उसे देखते ही मैंने जान लिया कि वह एक विदेशी था. पहले वह मुझे बूढ़े ज़ैसा लगा, केवल बाद में ही मुझे पता चला कि उसके पतले, हल्के भूरे बालों की वजह से यह गलतफहमी हुई थी, वे कुछ कुछ स्कैण्डनेविया के निवासियों के से थे, एकदम सफेद. हमारी बातचीत के दौरान, जो कि एक घण्टे भी नहीं चली थी, मुझे पता चल गया था कि वह ऑर्कनीज से आया था. मैं ने उसे अन्दर आमंत्रित किया, एक कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए. वह बोलने से पहला थोड़ा रुका. उसकी तरफ से एक उदासीनता विसर्जित हुई - जैसी कि अभी मुझसे हो रही है.
'' मैं बाइबिल बेचता हूँ.'' उसने कहा.
कुछ - कुछ पाण्डित्य का दिखावा सा करते हुए, मैंने उत्तर दिया, '' इस घर में कई अंग्रेजी बाइबिल हैं, सबसे पहली - जॉन विक्लिफ वाली के समेत. मेरे पास किप्रियानो डी वेलेरा की भी है. लूथर की भी है - जो कि साहित्यिक नजरिये से सबसे बेकार है - और वल्गेट की लातिनी प्रति भी है. जैसा कि तुम देख रहे हो, मुझे बाइबिल की कोई जरूरत नहीं है.''
खामोशी के कुछ पलों के बाद, वह बोला, '' मैं केवल बाइबिल ही नहीं बेचता. मैं आपको एक पवित्र पुस्तक दिखा सकता हूँ जो मुझे बीकानेर के बाहरी इलाकों से मिली है. यह शायद आपको रुचिकर लगे.''
उसने सूटकेस खोला और एक किताब निकाल कर मेज पर रखी. यह एक अष्टांगीय ग्रंथ था, कपडे क़ी जिल्द बंधा. इसमें कोई शक नहीं था कि यह कई हाथों से गुजर कर आया था. उसे परखते हुए, मैं उसके असामान्य वजन से चकित था. उसकी पीछे की ओर पर ' होली रिट ' लिखा था, और उसके नीचे, '' बॉम्बे ''.
'' संभवतया उन्नीसवीं शताब्दी की, '' मैं ने टिप्पणी जड़ी.
'' मुझे नहीं पता,'' वह बोला, ''मैं ने कभी पता नहीं किया.''
'' संभवतया उन्नीसवीं शताब्दी की, '' मैं ने टिप्पणी जड़ी.
'' मुझे नहीं पता,'' वह बोला, ''मैं ने कभी पता नहीं किया.''
मैं ने पुस्तक एकाएक खोली. उसकी लिपि मेरे लिये अनजानी थी. उसके पृष्ठ घिसे-पिटे, मुद्रण के हिसाब से बहुत ही खराब से थे , वे दो कॉलमों में बाइबिल की तरह बंटे थे. उसका मूलपाठ बहत पास पास छपा हुआ था और श्लोकों की तरह क्रमबध्द था. पृष्ठों के ऊपरी कोने में अरबी अंक पड़े हुए थे. मैं ने ध्यान दिया कि एक बांयी तरफ का पृष्ठ (मान लो कि) 40,514 और दांयी तरफ का पृष्ठ 999 संख्या वाला था. मैं ने पन्ना पलटा; उस पर आठ अंकों की संख्या अंकित थी. इस पर संक्षिप्त विवरण भी था, जैसे कि शब्दकोशों में हुआ करता है - कलम और स्याही से एक लंगर बना हुआ था, जो कि किसी स्कूली छोकरे के बेतरतीब हाथों का बना लगता था.
उस क्षण वह अजनबी बोला, '' चित्र की बारीकियों को ध्यान से देखो, इसे तुम दुबारा नहीं देख सकोगे.''
मैं ने वह जगह ध्यान से देखी और किताब बन्द कर दी. उसी वक्त, मैं ने किताब दुबारा खोली. पन्ना दर पन्ना, मैं ने वह लंगर का चित्र ढूंढना चाहा था, मगर सब व्यर्थ. ''यह किसी भारतीय भाषा का धर्मग्रन्थ संस्करण मालूम होता है. है ना!'' मैंने अपनी हताशा छिपाने के लिये कहा.
'' नहीं.'' उसने जवाब दिया. जैसे कि वह फिर कोई रहस्य छिपाना चाह रहा हो उसने अपनी आवाज धीमी कर ली, '' मैं ने यह पुस्तक मैदानी इलाके के एक शहर से महज मुट्ठी भर रूपयों और एक बाइबिल के बदले में प्राप्त की है. इसका मालिक पढ़ना ही नहीं जानता था. मुझे शक था कि वह इस विलक्षण किताब को एक रक्षा कवच की तरह देखता था. वह सबसे नीची जाति का था; उसके जैसे दूसरी नीची जाति के लोगों के अलावा अन्य कोई भी उसकी परछांई से भी संक्रमित हुए बिना नहीं रह सकता था. उसने मुझे बताया कि उसकी यह किताब ' रेत की किताब' के नाम से जानी जाती थी, क्योंकि न तो रेत का और न ही इस किताब का कोई आदि और कोई अन्त नहीं होता.
उस अजनबी ने मुझसे उस पुस्तक का पहला पृष्ठ निकालने को कहा.
मैं ने अपना बायां हाथ उस पुस्तक के आवरण पर रखा और अपना अंगूठा पुस्तक के पहले पन्ने पर रखा, मैं ने किताब खोली. यह व्यर्थ रहा. मैं ने कोशिश की पर हर बार बहुत सारे पन्ने मेरे अंगूठे और आवरण के बीच आ गये. ऐसा लग रहा था मानो कि ये किताब में से उगते ही चले आ रहे हों.
मैं ने अपना बायां हाथ उस पुस्तक के आवरण पर रखा और अपना अंगूठा पुस्तक के पहले पन्ने पर रखा, मैं ने किताब खोली. यह व्यर्थ रहा. मैं ने कोशिश की पर हर बार बहुत सारे पन्ने मेरे अंगूठे और आवरण के बीच आ गये. ऐसा लग रहा था मानो कि ये किताब में से उगते ही चले आ रहे हों.
''अच्छा अब अंतिम पन्ना निकालो.''मैं फिर असफल रहा. ऐसी आवाज में जो कि मेरी सी नहीं थी, मैं बमुश्किल हकलाया, '' यह नहीं हो सकता.''
अब भी धीमी आवाज रखते हुए वह अजनबी बोला, '' यह नहीं हो सकता, मगर है. इस पुस्तक के पन्ने अनंत से न तो ज्यादा है न ही कम . कोई भी पहला पन्ना नहीं और कोई भी आखिरी नहीं. मुझे नहीं पता कि क्यों उन्होंने इस ऊटपटांग तरीके से इन पर क्रम संख्या डाली है. शायद यह सुझाने के लिये कि अनंत संख्या - श्रेणियों में भी पदों की कोई भी संख्या हो सकती है.
फिर, जैसे कि वह गंभीर सोच में हो, वह बोला, ''अगर अन्तरिक्ष अनन्त है, तो हम इसमें किसी भी बिन्दु पर हो सकते हैं, अगर समय अनन्त है, तो हम समय के किसी भी छोर पर हो सकते हैं.''
'' हां, मैं एक प्रधान पादरी द्वारा शासित संघ से हूँ. मेरी अन्तर्रात्मा साफ है. मैं तकरीबन निश्चिंत हूँ कि मैंने उस नागरिक को धोखा नहीं दिया है, जब मैंने उसे उसकी शैतानी किताब के बदले में
'ईश्वर के पवित्र शब्द' दिये.''
'ईश्वर के पवित्र शब्द' दिये.''
मैंने उसे आश्वस्त किया कि उसे स्वयं को धिक्कारने की आवश्यकता नहीं है, और फिर मैंने पूछा कि वह यहां से होकर गुजर रहा था क्या? उसने बताया कि वह कुछ ही दिनों में अपने देश लौटने की सोच रहा है. तब मुझे समझ आया कि वह ऑर्केनी आयलैण्ड एक स्कॉटलैण्डवासी था. मैंने उसे बताया कि मुझे स्कॉटलैण्ड के प्रति एक खास निजी आकर्षण रहा है, मेरे स्टीवेन्सन और ह्यूम के प्रति प्रेम के चलते.
'' तुम्हारा मतलब स्टीवेन्सन और रॉवी बर्न्स,'' उसने सुधारा.
जब हम बतिया रहे थे, मैं उस अनंत पुस्तक का अन्वेषण करता रहा, एक बनावटी उदासीनता के साथ. मैं ने उससे पूछा, '' क्या तुम इस जिज्ञासा भरी चीज क़ो ब्रिटिश म्यूजियम में देने का इरादा रखते हो?
'' नहीं, मैं इसे तुम्हें पेश कर रहा हूँ.'' उसने कहा और उसने अपेक्षाकृत एक बड़ी राशि का अनुबंध रखा.
मैं ने अपनी पूर्ण सत्यता के साथ उसे उत्तर दिया कि इतना पैसा देना मेरी औकात से बाहर की बात है, और मैंने सोचना शुरु कर दिया. एक या दो मिनट के बाद मुझे एक योजना सूझी.
'' मैं एक अदला - बदली का सौदा सुझाता हूँ.'' मैं ने कहा, '' तुम्हें यह किताब मुट्ठीभर रूपयों और बाइबिल की एक प्रति के बदले मिली. मैं अपनी पेन्शन के चैक की राशि जो मैंने अभी निकलवाई है और मेरी काले अक्षरों वाली विक्लिफ बाइबल तुम्हें देता हूँ. यह मुझे अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है.''
मैं ने अपनी पूर्ण सत्यता के साथ उसे उत्तर दिया कि इतना पैसा देना मेरी औकात से बाहर की बात है, और मैंने सोचना शुरु कर दिया. एक या दो मिनट के बाद मुझे एक योजना सूझी.
'' मैं एक अदला - बदली का सौदा सुझाता हूँ.'' मैं ने कहा, '' तुम्हें यह किताब मुट्ठीभर रूपयों और बाइबिल की एक प्रति के बदले मिली. मैं अपनी पेन्शन के चैक की राशि जो मैंने अभी निकलवाई है और मेरी काले अक्षरों वाली विक्लिफ बाइबल तुम्हें देता हूँ. यह मुझे अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है.''
''काले अक्षरों वाली विक्लिफ बाइबल!'' वह बुदबुदाया.
मैं अपने शयनकक्ष में गया और उसके लिये पैसा और किताब लेकर आया. उसने पन्ने पलटे और एक सच्चे पुस्तक प्रेमी की उत्सुकता के साथ मुखपृष्ठ का अध्ययन किया.
'' तो यह सौदा पूरा हुआ.'' उसने कहा.
इस बात ने मुझे विस्मित किया कि उसने कोई मोल - भाव नहीं किया. केवल बाद में मुझे यह अहसास हुआ कि वह मेरे घर में यह तय करके घुसा था कि वह किताब बेच कर ही रहेगा. रूपयो को बिना गिने उसने अन्दर रख लिया.
हमने भारत के बारे में बातें की, ऑर्केनी के बारे में, और नार्वेजियन जार्ल्स के बारे में भी, जिन्होंने उस पर कभी शासन किया था. जब वह आदमी गया तब रात हो चुकी थी. मैं ने उसे फिर कभी नहीं देखा,न ही मैं उसका नाम जानता था.
मैंने अपनी किताबों की अलमारी में विक्लिफ के हटने से खाली हुई जगह पर ' रेत की किताब' को रखने की सोचा, फिर अन्त में निश्चय किया कि मैं इसे 'थाउजेण्ड एण्ड वन नाइट' के खण्डों के अधूरे सेट के पीछे छिपा कर रखूं. मैं बिस्तर पर जा लेटा मगर सोया नहीं. सुबह के तीन या चार बजे, मैंने बत्ती जला दी. उस असंभव सी किताब को उतारा और उसके पन्ने पलटने लगा. उनमें से एक पर मैंने एक मुखौटा उकेरा हुआ देखा. उस पृष्ठ के ऊपरी कोने पर एक संख्या डली हुई थी, मुझे वह संख्या तो अब याद नहीं, पर वह दस की नवीं घात के गुणज में थी.
मैंने अपना यह खजाना किसी को नहीं दिखाया. इसके मालिक होने के सौभाग्य में उसके चुराये जाने का डर भी शामिल हो गया था, और फिर यह आशंका कि हो सकता है कि यह वास्तव में अनन्त न निकले. इन जुड़वां पूर्वधारणाओं ने मेरे पुराने मानवद्वेषी स्वभाव को घनीभूत कर दिया. मेरे कुछ ही दोस्त बचे रह गये थे; अब मैंने उनसे भी मिलना बन्द कर दिया था. मैं किताब का कैदी बन कर रह गया था, तब मैं लगभग कभी बाहर निकला ही नहीं. किताब की घिसी पिटी रीढ़ और आवरण को मैग्नीफाइंग ग्लास से पढ़ने के बाद, मैंने किसी किस्म के कपट भरे सौदे की संभावनाओं को नकार दिया था. मैंने तस्दीक किया कि संक्षिप्त विवरण दो हजार पृष्ठों में फैले थे. मैं उन्हें वर्णक्रम के अनुसार पुस्तिका में सूचीबध्द करने के लिये बैठा, मैं जानता था पुस्तिका पूरी भरने में ज्यादा देर नही लगेगी. किसी भी एक विवरण को एक बार भी दोहराया नहीं गया था. रात के लघु अंतरालों में मेरे अनिद्रा रोग ने मुझे बख्श दिया, और मैं किताब के सपनों में खो गया.
गर्मियां आईं और चली गईं, और मैंने महसूस किया कि किताब विराट थी. इससे मेरे साथ अच्छा तो यह हुआ कि मैं, जिसने कि इस खण्ड को अपनी आंखों से देखा, और सोचा, कि वह जिसने इसे मेरे हाथ सौंपा, वो क्या कम विराट था? मैं ने महसूस किया कि यह पुस्तक भयावने सपनों की कोई वस्तु थी, एक अश्लील चीज ज़िसने कि वास्तविकता को ही खुलेआम कलंकित कर दिया था.
मैं ने इसे आग में झौंकने की सोचा, लेकिन मुझे डर था कि इस अनन्त पुस्तक का जलना भी इसकी तरह अनन्त सिध्द न हो जाये और पूरे ग्रह का धुंए से दम न घोट दे. तभी मुझे याद आया कि कहीं पर मैं ने पढा था कि एक पत्ती को छिपाने के लिये सबसे अच्छी जगह जंगल होती है.
अपनी सेवानिवृत्ति से पहले मैं मैक्सिको स्ट्रीट पर स्थित अर्जेन्टाइन राष्ट्रीय पुस्तकालय में काम करता था, जिसमें नौ सौ हजार पुस्तकें थीं. मैं जानता था कि प्रवेशद्वार के बिलकुल दायीं ओर कुछ घुमावदार सीढ़ियाँ थीं जो नीचे तलघर की ओर जाती थीं, जहां पर पुस्तकें, नक्शे और पत्रिकाएं आदि रखी रहती थीं. एक दिन मैं वहां गया, और वहां के एक कर्मचारी से बचता - बचाता हुआ, बिना यह ध्यान दिये कि दरवाजे से कितनी दूर और कितनी ऊंचाई पर और तलघर की किस सीलन भरी शेल्फ में, मैं उस किताब को छोड आया.
मनीषा कुलश्रेष्ठ
जन्म : 26 अगस्त 1967, जोधपुर
शिक्षा – बी.एससी., एम. ए. (हिन्दी साहित्य), एम. फिल., विशारद ( कथक)
प्रकाशित कृतियाँ –
कहानी संग्रह - कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, बौनी होती परछांई
केयर ऑफ स्वात घाटी (संग्रह शीघ्र प्रकाश्य)
उपन्यास- शिगाफ़ ( कश्मीर पर), ‘शालभंजिका’
नया ज्ञानोदय में इंटरनेट और हिन्दी पर लिखी लेखमाला की पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य.
प्रकाशित कृतियाँ –
कहानी संग्रह - कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, बौनी होती परछांई
केयर ऑफ स्वात घाटी (संग्रह शीघ्र प्रकाश्य)
उपन्यास- शिगाफ़ ( कश्मीर पर), ‘शालभंजिका’
नया ज्ञानोदय में इंटरनेट और हिन्दी पर लिखी लेखमाला की पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य.
अनुवाद – माया एँजलू की आत्मकथा ‘ वाय केज्ड बर्ड सिंग’ के अंश, लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास ‘हाउस मेड ऑफ डॉन’ के अंश, बोर्हेस की कहानियों का अनुवाद
अन्य : हिन्दीनेस्ट के अलावा, वर्धा विश्वविद्यालय की वेबसाईट ‘हिन्दी समय. कॉम’ का निर्माण, संगमन की वेबसाईट ‘संगमन डॉट कॉम’ का निर्माण व देखरेख.
पुरस्कार व सम्मान : चन्द्रदेव शर्मा नवोदित प्रतिभा पुरस्कार – वर्ष 1989 ( रा. साहित्य अकादमी)
कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप – 2007
डॉ. घासीराम वर्मा सम्मान – वर्ष 2009
रांगेय राघव पुरस्कार वर्ष 2010 ( राजस्थान साहित्य अकादमी)
कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप – 2007
डॉ. घासीराम वर्मा सम्मान – वर्ष 2009
रांगेय राघव पुरस्कार वर्ष 2010 ( राजस्थान साहित्य अकादमी)
संप्रति – स्वतंत्र लेखन और इंटरनेट की पहली हिन्दी वेबपत्रिका ‘हिन्दीनेस्ट’ का दस वर्षों से संपादन.
ई – पता – manisha@hindinest.com
ई – पता – manisha@hindinest.com
सुंदर प्रयास!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
होर्हे लुईस बोर्हेस के बारे पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्त |
thanks Manisha Good translation
ReplyDeletethanks Manisha ! good translation
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