आज बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर निकानोर पार्रा की वापसी हो रही है.
पुलिस को गुमराह करने के लिए कुछ मजाक : निकानोर पार्रा
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पुलिस को गुमराह करने के लिए कुछ मजाक : निकानोर पार्रा
(अनुवाद : मनोज पटेल)
शानदार ! अब कौन
आज़ाद कराएगा हमें आज़ाद कराने वालों से !
हमारे बचने का कोई रास्ता नहीं रहा अब
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चिली प्रथमतः व्याकरणशास्त्रियों और
इतिहासकारों का देश था
देश था यह कवियों का
अब यह देश है... डाट डाट डाट का
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पढ़ने वाले लोगों का मैं 100% विशवास करता हूँ
मुझे भरोसा है कि ...
नागरिक
असली आशय समझ सकते हैं
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यातना का रक्तरंजित होना
जरूरी नहीं
मसलन
एक बुद्धिजीवी
बस उसका चश्मा छुपाना ही काफी है
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चिड़िया,
मुर्गियां नहीं होतीं फादर
घूमने-फिरने की पूरी आजादी
दड़बे की सीमाओं के भीतर
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कल
खाली बर्तनों की कदमताल
और आज
भरे हुए मलपात्रों की परेड
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मैं बहुत निराश हूँ
मुझे लगता था कि पार्रा हमारी तरफ है.
-- आपको ऐसा क्यों लगता था महामहिम ?
तख्तापलट में ही पता चलता है
कि कौन किस तरफ है.
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