इस ब्लॉग की 100वीं पोस्ट के रूप में आज अफजाल अहमद सैयद (افضال احمد سيد) की कविताएँ. पाकिस्तान के अजीम शायर अफजाल अहमद सैयद की कविताओं के मेरे लिप्यंतरण आप इस ब्लॉग पर यहाँ और यहाँ तथा नई बात पर देख सकते हैं.
लेनिन फहमीदा रियाज के हुजूर में
लेनिन फहमीदा रियाज के पास
इस तरह आया
जैसे मकतूल बादशाह की रूह
हैमलेट के सामने नमूदार हुई
वह दौड़ी हुई उसके लिए
रस्पुतिन वोदका की आधी बची हुई बोतल उठा लाई
जो उसके शौहर ने छुपा रखी थी
कोई बात शुरू करने से पहले
उसने तेजी से वह सब कुछ याद करना चाहा
जो उसने लेनिन के मुतल्लिक पढ़ा या सुना था
उसे सिर्फ इतना याद आया
उसकी तरह लेनिन ने भी बहुत से दिन
जलावतनी में बसर किए थे
उसे बहुत अफ़सोस हुआ
उसने लेनिन की किसी किताब का तर्जुमा क्यों नहीं किया
या उससे बढ़कर
लेनिन पर कोई किताब क्यों नहीं लिखी
क्या वह उससे रूसी ज़बान में गुफ्तगू करेगा
यह सोचकर वह लरज गई
उसने रूसी नहीं सीखी थी
सुकूते ढाका के बाद
एवाने दोस्ती में
उसने "दानाई का आफताब लेनिन" नामी एक किताब पर कुछ कहा था
कहाँ होगी इस वक़्त वह किताब ?
उसकी आलमारी में तो बिलकुल भी नहीं
बरामदे से गुजरते हुए
उसके बच्चों ने अजनबी को महज हैरत से देखा
यह बिलकुल मुमकिन था
उसने सोचा
लेनिन की तस्वीर और मुजस्समे मुल्क में हर जगह मौजूद होते
अगर इंक़लाब आ जाता
और हमारे दारुल हुकूमत का नाम लेनिनाबाद होता
वह उसकी तरफ
अदम दिलचस्पी से देख रहा था
उसने सोचा
शायद वह उससे उतना भी मुतास्सिर नहीं हुआ
जितना स्टालिन
अशरफ पहलवी से हुआ था
(मगर वह शाहजादी नहीं शायर थी)
वह उससे रूस के टूटने के बारे में
(अगर उसकी दिल आजारी न हो)
पूछना चाहती थी
और उन सारे मज़ालिम के बारे में भी
जो इंक़लाब के नाम पर किए गए
और जिन पर कुछ अर्सा पहले उसे बिलकुल यकीन नहीं था
उसे अचानक ख्याल आया
उसके पागल दोस्त
काफीशाप के एक कोने में उसका इंतज़ार कर रहे होंगे
और आज जीशान ताजा नज्में सुनाएगा
वह उठ खड़ी हुई
और उसने लेनिन को खुदाहाफिज कहा
जिस तरह मकतूल बादशाह की रूह ने
हैमलेट को अलविदा कहा था
जलावतन = देश निकाला
मुजस्समे = मूर्तियाँ
दारुल हुकूमत = राजधानी
मुतास्सिर = प्रभावित
दिल आजारी = दिल दुखना
मजालिम = अत्याचार
* * *
अमीना जिलानी क्यों नहीं लिखती
अमीना जिलानी क्यों नहीं लिखती
उस अखबार में
जिसके सोलह फीसद पढ़ने वाले
हमारी पर कैपिटा इनकम से बीस गुना ज्यादा
जूतों और लिबास पर सर्फ़ करते हैं
अमीना जिलानी क्यों नहीं लिखती
टूटे फूटे ऐनिकडोट्स की बजाए
स्विट्जरलैंड के बैंकों के एकाउंट नंबर
जहां हमसे लूटी हुई दौलत जमा है
अमीना जिलानी क्यों नहीं लिखती
कि टेसिटस ने लिखा
नीरो को चार घोड़ों के रथ में चढ़ने की पुरानी ख्वाहिश थी
वह चार घोड़ों के रथ को
स्याह मर्सडीज में तब्दील क्यों नहीं करती
अमीना जिलानी सनसनी फैलाने के लिए क्यों नहीं लिखती
एक मशहूर एयरलाइन में
मुसाफिरों को कुत्ते का गोश्त खिलाया जाता है
अमीना जिलानी
पामाल मौजूआत
मावराए अदालत क़त्ल या पानी के कहत को क्यों नहीं छूती
ऐसा नहीं है कि अमीना जिलानी
नोक दे पोम या पोलिंटा पकाने की तरकीबें लिखा करती है
अमीना जिलानी जानती है
क्लिफ्टन का पुल बहुत मजबूत है
और उसका यह साल एक हादसे से शुरू हुआ है
अमीना जिलानी जानती है
डाकुओं से मुकाबले के दौरान
जीप से कुचला जाने वाला दंदासाज
अभी तक कोमा में है
सर्फ़ = व्यय
ऐनिकडोट्स = चुटकुले, anecdotes
पामाल मौजूआत = पद-दलित विषयों
मावराए अदालत क़त्ल = हत्याएं जो न्यायालय से परे हैं
कहत = अकाल, किल्लत
दंदासाज = दंतचिकित्सक
* * *
एक दिन और ज़िंदा रह जाना
बहुत दूर एक साहिल पर
स्क्रैप से बने हुए एक जहाज का
ब्वायलर फट जाता है
सेकेण्ड इंजीनियर उसी दिन मर जाता है
थर्ड इंजीनियर
दूसरे दिन
और मैं
फोर्थ इंजीनियर
तीसरे दिन मर जाता हूँ
सेकेण्ड हैण्ड जहाज़ों पर
फर्स्ट इंजीनियर नहीं होते
वरना
मैं एक दिन और ज़िंदा रह जाता
* * *
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल)
Afzal Ahmad Syed Poems in Hindi
कमाल का लेखन ! शब्द-शब्द आक्रोश और व्यंग टपकता हुआ !
ReplyDeleteसुन्दर लिप्यन्तरण , बहुमूल्य कवितायेँ !
सौवीं पोस्ट के सबसे उपयुक्त और बहुत अच्छी कविताएं.
ReplyDeleteमनोज भाई सौवीं पोस्ट इतनी जानदार कि मत पूछिए! आपको बधाई क्या दूं...सलाम पेश करता हूँ!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया... दिल आ गया दोस्त। 100वीं पोस्ट की बधाई...
ReplyDeleteमनोज आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं. आज विदेशी कविओं को पाने और पढ़ने का यह ख़ास ठीहा है. हिंदी की इतनी सेवा तो कई अकादमियां भी मिल कर नहीं कर सकतीं. आपकी दृष्टी और मेहनत का बहुत सम्मान.
ReplyDeleteसौवीं पोस्ट की बधाई. एक मजबूत मील का पत्थर गाड़ा आपने अपने ब्लॉग पर. बेहतरीन नज़राना- आभार.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया|100वीं पोस्ट की बधाई|
ReplyDeletemanoj aapki 100th post ke liye badhai.aapke anvart prayas aur nit nayi judati post hindi jagat ke liye asset hai ..
ReplyDeleteaapki lagan aur sachchi seva ko naman!
with best wishes and congratulations!
manoj ji bahut -bahut badhai .bhav se ot -prot anuwad ,behtareen kavi aur kavitayen ,sundar aalekh afzal saheb ka ,slam apki karmathta wa soch ko .anurodh hai ki ise pustak ke rup mein bhi lane ka kasht karen.
ReplyDeleteदर्द की चाशनी में डुबो कर लिखी गयीं कवितायें !
ReplyDeleteउसे सिर्फ इतना याद आया कि
ReplyDeleteउसकी तरह लेनिन ने भी बहुत से दिन
जलावतनी में बसर किये थे..
इन कविताओं को गांठ बांध लिया है. मनोज जी बधाई!
MAI EK DIN AUR ZINDA RAH JATA
ReplyDelete"सेकण्ड हैण्ड जहाजों पर
ReplyDeleteफर्स्ट हैण्ड इंजिनियर नहीं होते
वरना
मैं एक दिन और जिंदा रह जाता"
इस पंक्ति में व्यवस्था पर शानदार प्रहार
सुन्दर रचना