आज सादी यूसुफ़ की दो कविताएँ, विरासत और ठंडक
विरासत
एक बूँद,
एक बूँद और फिर दूसरी.
बूंदे धार बांधकर बह रही हैं इस खिड़की से नीचे
विस्मयादिबोधक चिन्हों की तरह...
बस थोड़ी देर, और विदा हो जाएगा अप्रैल
जैसे
कोई खोजी
उत्साह और खुशबू से भरा हुआ,
विस्मयादिबोधक चिन्हों को मिट्टी में छोड़कर,
छोड़कर मुझे वजूद में.
दमिश्क, 18 /04 /1983
* * *
ठंडक
इस कमरे में
जहां आसमान
नीचे उतर आता है, बरसात की चेतावनी देते हुए...
इस कमरे में
जहां सफेदी
छिड़काव करती है मुझ पर
ढालदार छत की छीलन का,
मैं कब्र की ठंडक महसूस करता हूँ.
हड्डी का एक जोड़ कराहता है.
और गहरे धंसती है भाले की नोक.
पेरिस, 22/11/1990
* * *
(अनुवाद : मनोज पटेल)
sundar rachnaaen !
ReplyDeletebahut hi achhi rachnayen
ReplyDeleteकुछ और कवितायेँ दीजिए इनकी ...अनुवाद सघन है .
ReplyDeleteSundar rachnayen Manoj ji..
ReplyDeleteबेहतरीन....
ReplyDeletegahan aur sarthak.
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