Friday, April 1, 2011

निज़ार कब्बानी : प्रेम पत्र


निज़ार कब्बानी के अनुवादकों लेना जयुसी और डब्लू. एस. मर्विन के सौजन्य से यह कविता-कोलाज : 'प्रेम पत्र'













प्रेम पत्र  :  निज़ार कब्बानी 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

1.
हमारे बीच 
बीस साल का अंतर 
मेरे और तुम्हारे होंठों के बीच 
जब मिलते हैं वे 
ढह जाते हैं साल 
और चकनाचूर हो जाती है ज़िंदगी की रेतघड़ी.

2.
मिला जिस दिन तुमसे, फाड़ डाले
अपने नक़्शे सब
सारी भविष्यवाणियाँ अपनी 
एक अरबी घोड़े की तरह 
सूंघ ली तुम्हारी बारिश की गंध 
अपने भीगने के पहले 
तुम्हारी आवाज़ का स्पंदन सुन लिया 
तुम्हारे बोलने के पहले 
और खोल दिया तुम्हारा जूड़ा 
तुम्हारे उसे बाँधने के पहले.

3. 
कुछ नहीं कर सकता मैं 
कर नहीं सकती कुछ तुम भी 
ज़ख्म क्या कर सकता है भला 
उस तक पहुँच रहे चाकू के खिलाफ ?

4
तुम्हारी आँखें जैसे बारिश की रात एक 
जिसमें डूब रहे हों जहाज़ तमाम 
और बिसराया जा चुका है मेरा लिखा सब 
आईनों को नहीं होती याददाश्त कोई.

5. 
हे भगवान प्यार के सामने कैसे कर देते हैं हम समर्पण,
सौंप देते हैं इसे चाभी अपने शरण स्थल की 
शमां ले जाते हैं इस तक और खुशबू जाफ़रान की 
कैसे होता है यह, कि गिर पड़ते हैं इसके पैरों पर मांगते हुए माफी  
क्यों होना चाहते हैं हम दाखिल इसके इलाके में 
हवाले करते हुए खुद को उन सब चीजों के 
जो यह करता है साथ हमारे 
सबकुछ जो यह करता है ?

6
प्रिय तुम्हारी आवाज़ में 
घुल जाती है चांदी और शराब 
बारिश में 
दिन शुरू करता है अपना सफ़र 
तुम्हारे घुटनों के आईने से 
और बुझ जाती है ज़िंदगी समुन्दर तक.

7.
जानता था कि जब कहा मैनें 
मैं प्यार करता हूँ तुमसे 
ईजाद कर रहा था मैं एक नई वर्णमाला का 
एक ऐसे शहर के लिए जहां किसी को नहीं आता था पढ़ना 
कि एक खाली थियेटर में कर रहा था अपना कविता पाठ 
कि ढाल रहा था शराब अपनी उनके लिए 
इसे चखना भी था हराम जिन्हें.

8. 
जब भगवान ने सौंपा 
तुम्हें मुझको 
लगा जैसे सबकुछ दे दिया उन्होंने मुझे 
और अनकहा कर दिया अपनी सभी पवित्र किताबों को.

9. 
कौन हो तुम, स्त्री ?
तुम जो घुसती चली आती हो एक खंजर की तरह मेरे इतिहास में 
तुम, नर्मदिल किसी खरगोश की आँख की तरह 
रोएँ की तरह मुलायम,
तुम, चमेली की माला सी खरी 
बच्चों के कुर्ते सी मासूम 
और शब्दों की तरह कठोर 
निकल जाओ बाहर मेरी नोटबुक के पन्नों से 
मेरे बिस्तर की चादर से निकल जाओ
काफी कपों और चीनी के चम्मचों से 
निकल जाओ बाहर 
निकलो मेरी कमीज के बटन से 
और मेरी रुमाल के धागों से निकल जाओ बाहर 
मेरे टूथब्रश और 
मेरे चेहरे के झाग से 
 
 
बाहर 
 
 
निकलो 
निकल जाओ मेरी सभी छोटी-छोटी चीजों से 
ताकि कर सकूं कुछ काम...........

10. 
तुम्हारा चेहरा खुदा है मेरी घड़ी के डायल पर 
और मिनट की सुई पर 
और हफ़्तों पर खुदा है......
महीनों पर....... सालों पर.......
अब कोई अपना समय नहीं बचा मेरे पास  
क्योंकि तुम ही बन बैठी हो समय अनंत.

11. 
जब चला रहा होता हूँ अपनी कार 
और तुम रख देती हो अपना सर मेरे कन्धों पर 
सितारे छोड़ देते हैं अपनी कक्षा 
और हजारों की तादाद में गिर पड़ते हैं नीचे 
शीशे की 
खिड़कियों
 पर फिसलने की खातिर......
और नीचे आ जाता है चाँद भी 
मेरे कन्धों पर बस जाने को.
तब 
    तुम्हारे साथ धुंए उड़ाना हो जाता है मजेदार  
    बातचीत करना या 
    खामोशी भी हो जाती है मजेदार.  
और रास्ता भटक जाना सर्द सड़कों पर 
     जिनका कोई नाम नहीं 
     हो जाता है मजेदार.
और आरजू 
होती 
है मेरी कि ऐसे ही बने रहें हम हमेशा 
गाती रहे बारिश यूं ही 
गाते रहें विंडशील्ड  के वाइपर 
और यह छोटा सा सर तुम्हारा 
पकड़े रहे मेरी छाती के बाल यूं ही 
जैसे इक रंगबिरंगी तितली 
उड़ने से इनकार करती हुई.

12. 
कोई शिक्षक नहीं हूँ मैं 
कि सिखलाऊँ तुम्हें कैसे किया जाता है प्यार
मछलियों को तो नहीं पड़ती जरूरत 
तैरना सीखने के लिए किसी शिक्षक की 
और उड़ना सीखने के लिए 
चिड़ियों को भी नहीं पड़ती जरूरत 
किसी शिक्षक की.
तैरो तुम खुद से. 
उड़ो खुद से ही. 
पाठ्य पुस्तकें नहीं होतीं प्यार की 
और निरक्षर थे इतिहास के महान प्रेमी
 सभी. 

13. 
गुनगुनाता रहता हूँ तुम्हारी चटक रंगीन यादों को 
जैसे गुनगुनाती रहती है चिड़िया कोई 
या गाता है जैसे अंडालूसी घरों में कोई झरना 
अपने नीले पानी को.

14. 
तुमको लिक्खे मेरे ख़त 
बढ़ कर हैं मुझसे...... और बढ़कर हैं तुमसे 
क्योंकि रोशनी ज्यादा अहम है लालटेन से,
नोटबुक से ज्यादा अहम है कविता,
और चुम्बन ज्यादा अहम है होंठों से.
तुमको लिक्खे गए मेरे ख़त 
बड़े और ज्यादा अहम हैं हमदोनों से.
वही तो हैं इकलौते दस्तावेज 
जिनसे जान पाएंगे लोगबाग 
तुम्हारी खूबसूरती 
और दीवानापन मेरा.

15. 
जब सुनता हूँ मर्दों को 
व्यग्रता से बात करते तुम्हारे बारे में 
और स्त्रियों को सुनता हूँ 
तुम्हारे बारे में चिड़चिड़ी होकर बात करते 
समझ जाता हूँ कि 
कितनी खूबसूरत हो तुम. 
Nizar Qabbani in Hindi 

19 comments:

  1. आपके अनुवाद में अर्थ हमेशा सुरक्षित रहता है ..यह आपकी विशेषता है ...आशा है आप अपने इस प्रयास से हिंदी ब्लॉग जगत को समृद्ध करते रहेंगे ..आपका तहे दिल से आभार

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  2. एक अरबी घोड़े की तरह ...तुम्हारी बारिश की गंध .......वाह ....इस तरह के प्रेम भावों और सुन्दर शब्दों की अभिव्यक्ति ...अचंभित करती हुई !!!!!!!!बहुत खूब भाव पूर्ण रचना Nirmal Paneri

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  3. apka bahut bahut ahsan. apka blog ab meri daily ki khurak ban gaya hai.

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  4. Manoj ji..bahut sunder kavitayen..aur anuvaad..

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  5. har bar ki trah laajawab !

    तुम्हारी आँखें जैसे बारिश की रात एक
    जिसमें डूब रहे हों जहाज़ तमाम
    और बिसराया जा चुका है मेरा लिखा सब
    आईनों को नहीं होती याददाश्त कोई.

    ....

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  6. ek se badhkar ek sabad ka sahi jagah sahi prayog h...lajawab h

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  7. सही बात इसे हम बार-बार पढ़ना चाहेंगे....

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  8. बेहद खूबसूरत प्रेमपत्र...

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  9. लगा कि हिन्दी मिजाज की कविता पढ रहा हूं.

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  10. beautiful and very soulful

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  11. बेहतरीन अनुवाद...
    रचनाओं का चयन भी लाजवाब...

    मन प्रसन्न हो गया...

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  12. जबरदस्त प्रेम कवितायेँ ,गज़ब का अहसास ! शानदार अनुवाद के लिए मनोज जी को बधाई !

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  13. adbhut...behad sahaj saral shaili men kahi gayi asadharan kavitayen..padhvane ke liye manoj ji aapka aabhaar.......meenaksh jijivisha

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