Friday, November 26, 2010

निज़ार कब्बानी की कविताएँ


ज्यादा खूबसूरत 
औरतें भी होती हैं खूबसूरत 
मगर उनसे भी खूबसूरत होती है 
हमारे कागजात पर उनके पैरों की छाप.  

मुहब्बत का हलफनामा 
तुम मुहब्बत  का हलफनामा चाहती हो मुझसे 
दस्तखतशुदा बड़े-बड़े अक्षरों में ? 
कहता हूँ यह सरेआम 
कि तुम हो मेरे लिए आखिरी स्त्री. 
लेकिन यह हलफनामा क्यों ? बताओ मुझे, 
क्या समुन्दर हो सकता है जामिन 
किसी टापू की सरहदों का 
हमेशा के लिए ?

डरता हूँ 
डरता हूँ अपनी महबूबा से यह कहने में 
कि प्यार करता हूँ उससे ;
बोतलबंद शराब खो ही देती है 
कुछ न कुछ 
जब ढाली जाती है पैमाने में.

लफ़्ज़ों से चित्रकारी 
बीस साल मुहब्बत की राहों में 
मगर अभी तक राहें अनजान.
कभी हुआ विजेता,
पर ज्यादातर मिली हार ही. 
बीस साल, ऐ किताबे मुहब्बत 
पर अभी तक पहले सफ़े पर.

(अनुवाद : Manoj Patel)
Nizar Qabbani, Padhte Padhte 

2 comments:

  1. प्यार को देखने का एक अलग नजरिया... बहुत खुबसूरत अनुवाद...बधाई... और आभार,..

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  2. एक अच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद.

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