Friday, December 10, 2010

नाओमी शिहाब न्ये की कविता

( नाओमी शिहाब न्ये की कविताएँ आप पहले भी पढ़ चुके हैं. 1952 में जन्मीं नाओमी शिहाब न्ये फिलीस्तीनी पिता और अमेरिकी माँ की संतान हैं. खुद को घुमंतू कवि मानने वाली नाओमी जार्डन, येरुशलम से होते हुए अब टेक्सास में रह रही हैं. वे Organica पत्रिका की नियमित स्तंभकार और Texas Observer की कविता संपादक भी हैं. इनके कई कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें प्रमुख हैं : 19 Varieties of Gazelle: Poems of the Middle East, A Maze Me: Poems for Girls, Red Suitcase, Words Under the Words, Fuel, and You & Yours...- Padhte Padhte ) 

एक लड़के ने बताया मुझे 
मेरे पैरों में बसता है संगीत 
झरता है यह जब बात करता हूँ मैं.

भेजने जा रहा हूँ अपने वैलेंटाईन प्रस्ताव 
उन लोगों को जिन्हें जानते भी नहीं तुम. 

जई के बिस्किट सरपट निगलता है मेरा गला.

जमीन पर रहते हैं बड़ों के पाँव 
मुझे नफरत है गर इन्हें हिलाते हैं वे.

बीचो-बीच टकराते हुए इन दोनों O को देखो 
हिज्जे बनाते हैं जो good bye के.

फिर नाम न लेना कभी "उद्देश्य" का 
चलो इस शब्द को फेंक दें बाहर.

बड़ी-बड़ी बातें मत करो मुझसे.
अपने चेहरों का बक्सा लिए चल रहा हूँ साथ.
बदल लूंगा चेहरा गर चाहूंगा ऐसा.

फीका पड़ गया है बीता हुआ कल 
गाढ़े अक्षरों में है आने वाला कल मगर.

जब बड़ा हो जाऊंगा मैं तो 
उस घर में रहेंगे मेरे पुराने नाम 
जहां रह रहे हैं हम अभी.
आया करूंगा उनसे मिलने तब.

केवल एक आँख ही थकी हुई है मेरी 
दूसरी आँख और बाक़ी बदन नहीं.

क्या सच में तरल थीं सभी धातुएं पहले ?
तो क्या गर खरीदी होती कार हमने कुछ पहले 
दिया होता उन्होंने इसे एक कप में हमें ?

एक अवरोधक लगा है मेरे हाथों में 
बड़ा नहीं होने देगा यह कभी मुझे 
रहूँगा छोटा यूं ही हमेशा. 

और गहरा पानी भी होऊंगा मैं 
इंतज़ार करो, बस इंतज़ार करो.
कितनी गहरी है नदी ?
क्या यह डुबा लेगी अपने हाथ उठाए हुए एक लम्बे आदमी को ?

एक स्मारक है तुम्हारा सिर.

जब न्यूयार्क में थे तुम मैं देख सकता था तुम्हें 
जीता-जागता, चलता-फिरता अपने दिमाग में.

एक मधुमक्खी को न्यौतूंगा तुम्हारे जूतों में बसने के लिए 
कैसा रहेगा गर अपने जूतों को पाओ तुम शहद से भरा ?

कैसा रहेगा गर घड़ी बजाए 6:92 
6:30 की बजाय ? क्या डर जाओगे तुम ?

कार की धुलाई है मेरी जीभ 
चम्मच की खातिर.

क्या तैर सकते हैं नूडल ?

शब्दकोष हैं मेरे पाँव के अंगूठे 
क्या कोई शब्द चाहिए तुम्हें ?

आगे से सिर्फ 26 जनवरी को 
पिया करूंगा दूध सफ़ेद.

ये घटाव का क्या मतलब होता है ?
मैं कभी नहीं घटाऊंगा तुम्हें.

ज़रा सोचो, इससे पहले किसी ने नहीं देखा 
इस मूंगफली के भीतर !

बहुत मुश्किल है होना एक इंसान.

करता हूँ और नहीं करता हूँ तुम्हें प्यार -
क्या यही नहीं है खुशी ?  

(अनुवाद : Manoj Patel) 
Naomi Shihab Nye 

6 comments:

  1. सुंदर कविता और भावपूर्ण अनुवाद. आपके अनुवाद के मिशन के प्रति मन मे गहरी कृतज्ञता है. यह कविता छोटी छोटी सुंदर
    कविताओं से मिलकर बनी मालूम होती है और समग्रता में भी थोड़ा शॉकिंग प्रभाव छोड़ती है.
    ना जाने क्यूँ लग रहा है कि यदि यह कविता एक स्त्री की ओर से होती तो और प्रभावी मालूम पड़ती .

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  2. इस बेहतरीन कविता का सुन्दर अनुवाद ..आज १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया

    ReplyDelete
  3. बहुत ही खुब लिखा है आपने......आभार....मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित नई रचना है "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद

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