Friday, December 24, 2010

वेरा पावलोवा की कविताएँ

( 1963 में मास्को में जन्मी वेरा पावलोवा समकालीन रूसी कविता की महत्वपूर्ण हस्ती हैं. संगीत की शिक्षा प्राप्त वेरा ने बीस वर्ष की उम्र में पहली पुत्री को जन्म देने के बाद से कविताएँ लिखना शुरू किया. अब तक उनके पंद्रह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और दुनिया की कई भाषाओं में उनकी कविताओं का अनुवाद हो चुका है. इसके पहले आप नई बात पर वेरा की आठ कविताओं से रू-ब-रू हो चुके हैं. आज उनकी पांच कविताएँ - Padhte Padhte ) 
                         1
एक लड़की सोती है 
गोया हो वह किसी के ख्वाबों में ;
एक औरत सोती है ऐसे 
गोया कल ही छिड़ने वाली हो कोई जंग ; 
और उम्रदराज औरत तो सोती है यूं 
मानो काफी हो पड़े रहना मौत का बहाना बनाए 
कि मौत गुजर जाए शायद 
उसकी नींद की सरहदों को छूते हुए. 
                         * *
                         2
खुदा की नज़रों में 
बढ़िया था यह 
और आदम की निगाहों में 
यह था बहुत शानदार 
हौआ की नज़रों में 
था यह कामचलाऊ. 
                         * *
                         3
आँखें मेरी,
इतनी उदास क्यों ?
क्या हंसमुख नहीं मैं ?
शब्द मेरे,
इतने रूखे क्यों ?
क्या विनम्र नहीं मैं ?
काम मेरे, 
इतने अहमक क्यों ?
क्या अक्लमंद नहीं मैं ?
दोस्त मेरे,
इतने बेजान क्यों ?
क्या मजबूत नहीं मैं ?
                         * *
                         4
नींद में ही हो जाना प्यार,
और जागना डबडबाई आँखें लिए : 
कभी नहीं किया किसी को इतना प्यार, 
कभी किसी ने नहीं किया इतना प्यार मुझे भी. 
वक़्त नहीं मिला एक चुम्बन का भी,
न ही पूछने का उसका नाम.
अब उसके ख्वाबों में 
आँखों ही आँखों में 
गुजरती है रातें मेरी. 
                         * *
                         5
दिल तोड़कर तुम्हारा 
नंगे पाँव चल रही हूँ 
किरचों पर. 
                         * *
(अनुवाद : Manoj Patel) 
Vera Pavlova 

7 comments:

  1. बहुत उम्दा अनुवाद।

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  2. प्रथम कविता दिल को छू लेती है और अंतिम तक आते आते लगता है अरे, रशियन भी ऐसा ही सोचते हैं !

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  3. आपकी सभी कविताँए दिल को छू लेती है।

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  4. मेरी बेहद प्रिय कवियत्री...ऐसा उदात्त रूमान...अद्भुत!

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  5. Ati sundar Kavitaayein aur utna hi sundar anuvaad. Kam shabdon meinapni baat keh kar dil mein utar jaane wali hain vera kee kavitaayein. udaharan ke liye -"dil todkar tumhara nange paavn chal rahi hoon kirchon par." Adbhut.

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  6. अनुभूति के सबके अपने धरातल होते हैं,किन्तु सब में समानता इतनी है की वे अंत:करण में उतरते ही एक रंग में रंगे दिखाई दते हैं.वेरा पाव्लोवा की कविताएँ भी कुछ इसी तरह की हैं शायद

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