Sunday, April 10, 2011

येहूदा आमिखाई : कितना वक़्त

आज येहूदा आमिखाई की यह कविता, 'कितना वक़्त'.  










कितना वक़्त 

मुझे याद है बारिश,
मगर भूल चुका हूँ वे चीजें 
जिन्हें बारिश ढँक लिया करती थी, सालों पहले.

मेरी निगाह ऊपर उठी हुई 
जैसे कोई हवाईजहाज, कंट्रोल टावर और 
विस्मरण व परित्यक्तता के खुले आकाश के बीच.

एक पराया मुल्क ढँक लेता है 
अपने पानी से मेरे चेहरे को.
बहते हुए पानी का उदास सेनापति हूँ मैं.

कैम्ब्रिज. एक दोस्त के घर का बंद दरवाज़ा :
कितना वक़्त गुजरना जरूरी है 
मकड़ी के ऐसे जालों को आकार लेने के लिए,
कितना वक़्त ?

(अनुवाद : मनोज पटेल)

3 comments:

  1. मनोज जी,खूबसूरत कविता ...सुन्दर अनुवाद

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया....

    ReplyDelete
  3. सुन्दर ! इस उदास सेनापति का इतिहास बड़ा लम्बा है।

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...