Tuesday, August 9, 2011

येहूदा आमिखाई : कैसे दोस्ती में बदल गया प्रेम

येहूदा आमिखाई की किताब 'वक़्त' से एक और कविता...

















येहूदा आमिखाई की कविता 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

एक गहरी चाहत पैदा हुई मेरे भीतर 
किसी पुरानी तस्वीर में दिख रहे लोगों की तरह 
जो वापस उन लोगों के बीच आना चाहते हैं 
जो देख रहे हैं उस तस्वीर को 
दिये की बेहतर रोशनी में.

यहाँ इस मकान में मैं सोच रहा हूँ 
कि कैसे हमारे जीवन के रसायन शास्त्र में
दोस्ती में बदल गया प्रेम.
मैं दोस्ती के बारे में सोचता हूँ जो हमें शांत करती है मौत के लिए 
और कैसे हमारी जिंदगियां इकहरे धागे की तरह हैं 
किसी और कपड़े में 
फिर से बुने जाने की किसी उम्मीद के बिना. 

रेगिस्तान से आ रही हैं 
घुटी हुई आवाजें, 
मिट्टी भविष्यवाणी करती है मिट्टी की, एक हवाई जहाज 
बंद करता है हमारे सिरों के ऊपर 
तकदीर के बड़े से थैले की चेन.

और एक लड़की की स्मृति जिसे मैं कभी प्यार करता था 
चलती है आज की रात घाटी में, जैसे कोई बस -- 
तमाम रोशन खिड़कियाँ गुजरती हुईं, 
गुजरते हुए उसके तमाम चेहरे. 
                    :: :: :: 

1 comment:

  1. कैसे हमारी जिंदगियाँ इकहरे धागे की तरह हैं ,किसी और कपड़े में फिर से बुने जाने की किसी उम्मीद के बिना..... बहुत बढ़िया

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