Tuesday, August 30, 2011

ईमान मर्सल : और अधिक झुक गई है मेरी पीठ

ईमान मर्सल की लम्बी कविता 'थक्का' से कुछ अंश...


थक्का : ईमान मर्सल 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

अपने पिता के लिए 

बस सोते रहना 

वे गुस्से में काटते हैं अपने होंठ 
उन वजहों से जिन्हें वे भूल चुके हैं. 
बहुत गहरी नींद में हैं वे,
सर के नीचे दबी हुई हथेलियों के कारण 
वे उन फौजियों की तरह दिखते हैं 
जो ऊंघ रहे हैं रात को ट्रकों में 
और बंद करते हैं अपनी पलकें 
निगरानी की तस्वीरों के ढेर पर 
अपनी आत्मा को चक्कर खाते रहने के लिए छोड़कर 
जब तक कि अचानक वे फरिश्तों में न बदल जाएं. 
                    * * *

ई सी जी 

मुझे डाक्टर बनना चाहिए था 
ताकि पढ़ती रह सकती उनका ई सी जी 
अपनी आँखों से,
और पक्का कर सकती कि थक्का 
महज एक बादल था 
जिसे टूट जाना था मामूली आंसुओं में 
जरूरत भर की गर्माहट पाकर. 
मगर मैं किसी काम की नहीं हूँ, 
और मेरे पिता जो सो नहीं सकते अपने बिस्तर पर 
सोए पड़े हैं 
एक बड़े से कमरे में मेज पर. 
                    * * *

चीत्कार 

खामोश औरतों ने 
भर रखा है सामने वाले बरामदे को 
वे एक रस्म की तैयारी में हैं 
जो छुड़ा देगी 
उनके गले में लगी हुई जंग को 
और जो सिर्फ उनकी सीमा ही जांच सकती है 
सामूहिक चीत्कार में. 
                    * * * 

बेहतर 

बगल के मरीज को 
स्वयंसेवकों के कंधे 
ढो ले गए सार्वजनिक कब्रिस्तान तक.
तुम्हारे लिए बेहतर है यह.
मौत दुहरा नहीं सकती अपना कुकृत्य 
उसी शाम को 
उसी कमरे में.
                    * * * 

तस्वीर 

उनके दिल की लय मिली हुई थी मेरे क़दमों से 
मगर अब उनकी याद रह जाएगी 
सिर्फ एक पुरानी, सीली गंध की तरह. 
क्या पता उन्हें नफरत रही हो मेरे निकरों और,
संगीत से रिक्त मेरी कविताओं से.
मगर कई बार मैनें देखा था उन्हें 
अपनी दोस्तों के गुल-गपाड़े से परेशान,
और चुपके-चुपके  एकाध कश मारते 
उनकी छोड़ी गई सिगरेटों से. 
                    * * * 

समरूपता 

सिर्फ इसलिए कि मैं खरीद सकूं अनूदित कविताओं की किताबें 
गहरी नींद सो रहे इस शख्स ने मुझे भरोसा दिलाया 
कि उसकी शादी की अंगूठी से जलन होती है उसकी उँगलियों में.
मुस्कराए ही जा रहे थे वे सुनार के यहाँ से लौटते हुए,
जब कहा था मैनें उनसे 
कि उनकी नाक एकदम मेरे जैसी नहीं लगती. 
                    * * *  

तुम्हारी मौत की ख़बर

अपने प्रति किए गए तुम्हारे आखिरी गुनाह की तरह 
स्वीकार करूंगी तुम्हारी मौत को.
राहत नहीं महसूस करूंगी जैसी कि तुमने उम्मीद की थी.  
और मजबूती से विश्वास करूंगी 
कि तुमने इन्कार कर दिया मुझे 
उन ट्यूमरों के निदान का मौक़ा देने से 
जो सुप्त पड़े हुआ करते थे हमारे बीच. 
सुबह 
मैं हैरान हो सकती हूँ अपनी सूजी हुई पलकों से 
और यह जानकर
कि और अधिक झुक गई है मेरी पीठ. 
                     * * *  

3 comments:

  1. Main hairaan ho saktee hoon apnee soojee huyee palkon par
    Aur yeh soch kar keh aur adhik jhuk gayee hai meree peeth..
    Bahut khoob..

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  2. मौत ,मौत,मौत,.................बड़ी शिद्दत से मौत को महसूस किया है ईमान मार्सल ने ! ये कवितायेँ इसकी गवाह हैं ! आभार मनोज जी !

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  3. ओह....
    गहरी उथल पुथल ..
    मुझे अपने पापा की याद आ गयी...

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