Wednesday, October 12, 2011

टॉमस ट्रांसट्रोमर की कविताएँ


स्वीडिश कवि टॉमस ट्रांसट्रोमर को इस वर्ष का नोबेल साहित्य पुरस्कार मिला है. उनका जन्म स्टाकहोम में १९३१ में हुआ था. 'सेवेंटीन पोयम्स' नाम का उनका पहला कविता-संग्रह १९५४ में प्रकाशित हुआ. अब तक उनकी पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं और उनकी कविताओं का अनुवाद ६० से भी अधिक भाषाओं में हो चुका है. १९९० में पक्षाघात से पीड़ित होने के बाद उनकी बोलने की शक्ति और दाहिने हाथ से काम करने की क्षमता जाती रही. वे एक ही हाथ से पियानो बजाते हैं और खबर है कि वे नोबेल सम्मान समारोह में पियानो के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त करेंगे. 













टॉमस ट्रांसट्रोमर की कविताएँ
(अनुवाद : मनोज पटेल)

अक्टूबर में रेखाचित्र 

जंग के कारण चकत्ते पड़ गए हैं नाव में. यह क्या कर रही है यहाँ 
समुद्र से इतनी दूर जमीन पर ?
और यह ठंडक में बुझा हुआ एक भारी लैम्प है.
मगर पेड़ों पर हैं चटकीले रंग : दूसरे किनारे के लिए संकेतों की तरह 
मानो लोग आना चाहते हों इस किनारे पर.

घर आते हुए मैं देखता हूँ 
पूरे लान में मशरूम उगे हुए.
वे सहायता के लिए फैली हुई उंगलियाँ हैं किसी ऐसे इंसान की 
जो वहां नीचे के अँधेरे में 
जाने कब से सिसकता रहा है अपने आप में ही.
हम पृथ्वी के रहने वाले हैं. 
                    :: :: ::  

बिखरी हुई सभा 

हम तैयार हुए और अपना घर दिखाया.
आगंतुक ने सोचा : तुम शान से रहते हो.
झोपड़पट्टी जरूर तुम्हारे भीतर होगी. 

चर्च के भीतर, खम्भे और मेहराब 
प्लास्टर की तरह सफ़ेद, जैसे श्रद्धा की 
टूटी बांह पर चढ़ा हुआ पलस्तर.

चर्च के भीतर है एक भिक्षा-पात्र 
जो धीरे-धीरे उठता है फर्श से 
और तैरने लगता है भक्तों के बीच.

मगर भूमिगत हो गईं हैं चर्च की घंटियाँ. 
वे लटक रही हैं नाली के पाइपों में.
जब भी हम बढ़ाते हैं कदम, वे बजती हैं.

नींद में चलने वाला निकोडमस चल पड़ा है 
गंतव्य की ओर. पता किसके पास है ?
नहीं मालुम. मगर हम वहीं जा रहे हैं. 
                    :: :: :: 

जोड़ा 

वे बत्ती बंद कर देते हैं और उसकी सफ़ेद परछाईं 
टिमटिमाती है एक पल के लिए विलीन होने के पहले 
जैसे अँधेरे के गिलास में कोई टिकिया. और फिर समाप्त.
होटल की दीवारें उठते हुए जा पहुंची हैं काले आकाश के भीतर.
स्थिर हो चुकी हैं प्रेम की गतिविधियाँ, और वे सो गए हैं 
मगर उनके सबसे गोपनीय विचार मिलते हैं 
जैसे मिलते हैं दो रंग बहकर एक-दूसरे में 
किसी स्कूली बच्चे की पेंटिंग के गीले कागज़ पर. 
यहाँ अँधेरा है और चुप्पी. मगर शहर नजदीक आ गया है 
आज की रात. समीप आ गए हैं अंधेरी खिड़कियों वाले मकान.
वे भीड़ लगाए खड़े हैं प्रतीक्षा करते हुए,
एक ऎसी भीड़ जिसके चेहरों पर कोई भाव नहीं.
                    :: :: :: 

पेड़ और बारिश 

एक पेड़ चहलकदमी करता हुआ बारिश में 
धूसर बारिश में भागता है हमारे बगल से.
एक काम है उसके पास. वह जीवन एकत्र करता है 
बारिश में से जैसे बाग़ में कोई श्यामा चिड़िया. 

पेड़ भी रुक जाता है बारिश रुकने पर.
शांत खड़ा रहता है बिना बारिश वाली रातों में 
और प्रतीक्षा करता रहता है जैसे हम करते रहते हैं 
प्रतीक्षा, उस पल की 
जब हिमकण खिलेंगे आकाश में.  
                    :: :: :: 
Manoj Patel Translations, Manoj Patel's Blog 

11 comments:

  1. जैसा कि मैं उम्मीद भी कर रहा था, टॉमस की कविताएं आपके ब्लॉग पर जल्द ही आयेगी... इन्हें पढ़ना अच्छा लगा... एक नए अनुभव संसार की कविताएं - प्रदीप जिलवाने

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  2. जब से इन्हें साहित्य के नोबेल पुरूस्कार मिलने की खबर आई है तब से ही इनकी कविताए पढने की इच्छा मन में थी . आपका आभार .

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  3. 'बिखरी हुई सभा' काफ़ी अच्छी लगी. 'अक्टूबर में रेखाचित्र भी'. आभार.

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  4. बहुत सुंदर कवितायें....आभार इन्हें पढवाने के लिये...

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  5. बहुत अच्छी पोस्ट. उम्मीद है कि कुछ और कविताएँ पढ़ने को मिलेंगी.

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  6. Jhopadpatti zaroor tumhaare bheetar hogee - waah

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  7. टॉमस ट्रांसट्रोमर के शब्‍द गजब गतिवान हैं। कुछ यों जैसे सारे के सारे स्‍वतंत्र और स्‍वयंभू इकाई हों। उनकी इन कविताओं से गुजरते हुए जाना जा सकता है अनुभव का पि‍घलना और लकीर बनकर बहते-बहते क्रमश्‍ा: शब्‍द, वाक्‍य, पद और कविता में तब्‍दील होना। आपने भरपूर रचनाएं उपलब्‍ध करायी, आभार... लेकिन मन अभी भरा नहीं... आशा है, एक भरपूर खेप जल्‍द ही फिर... शुभकामनाएं मनोज जी...

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  8. अच्छी प्रस्तुति |
    आशा

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  9. बहुत अच्छी कवितायेँ विशेषकर 'बिखरी हुई सभा'! प्रस्तुति के लिए आभार !

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  10. Bahut dhanyawaad. Translation is excellent.

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  11. मनोज जी आपका अनुवाद जैसे कविता की रूह तक पहुँच जाता है,लगता है जैसे कवि ने हिंदी में ही मूल कविता लिखी होगी बहुत बहुत धन्यवाद...एक आग्रह है बर्तोल्ड ब्रेख्त और पाब्लो नेरुदा की और कविताओ का अनुवाद करे तो आपका बहुत आभार होगा

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