Thursday, December 8, 2011

दून्या मिखाइल : मेढक और बादशाह


दून्या मिखाइल की डायरी के अंश आप इस ब्लॉग पर पढ़ते रहे हैं. दो हिस्सों में बंटी इस डायरी का पहला हिस्सा बग़दाद में १९९५ में प्रकाशित हुआ था. उस समय ईराक में सद्दाम हुसैन का शासन था और इस डायरी के प्रकाशन से उत्पन्न परिस्थितियों की वजह से उन्हें अपना देश छोड़ने का कठोर फैसला लेना पड़ा. आज उनकी डायरी का वह अंश प्रस्तुत है जिसमें उन्होंने कुछ 'कहानियों' का जिक्र किया है. सोशल मीडिया पर सेंसरशिप की चर्चा के बीच इन कहानियों को पढ़ना मौजूं है... 


समुद्र से बिछड़ी एक लहर की डायरी - 3 : दून्या मिखाइल 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मेरे माउस क्लिक करते ही ये कहानियां सामने आ जाती हैं. 

मेढक और बादशाह 
एक बार की बात है एक मेढक था जो बादशाह के दिमाग में 
कूदता रहता था. उसकी हर कूद के साथ 
एक जंग छिड़ जाती थी. लोग हैरान थे. 
उन्हें कोई उपाय न सूझ रहा था कि कैसे मेढक को कूदने से रोका जाए. 
जब विधवाओं और अनाथों की संख्या काबू के बाहर होने लगी 
तो मेढक को इस बात पर राजी करने के लिए एक बैठक बुलाई गई  
कि वह कूदना बंद कर दे या कम से कम बादशाह के दिमाग के अलावा कहीं और जाकर कूदे.
"बेचारा बादशाह," वे बोले, "इसमें उसकी कोई गलती नहीं है..." 

चाँद की बात 
आसमान के चाँद ने 
नदी के चाँद से बात की. 
आसमान का चाँद तनहा था 
और उसने नदी के चाँद से 
ऊपर आसमान में आने के लिए कहा. 
"मेरे पास ऐसा कोई नहीं जिससे मैं अपनी सारी बातें कह सकूं," वह बोला.
"पूरी कायनात इतनी मसरूफ़ है 
मैं ऊपर से सब कुछ देखा करता हूँ 
बिना उनमें शामिल हुए.
मुझे एक दोस्त की जरूरत है."
नदी के चाँद ने कोई जवाब नहीं दिया. 
आखिरकार आसमान के चाँद ने कहा, "ठीक है, तुम ऊपर नहीं आ सकते 
तो मैं ही नीचे आ जाता हूँ. 
वैसे भी चढ़ने की बजाए 
गिरना हमेशा आसान होता है." 
लिहाजा चाँद कूद पड़ा नदी में 
और उसे नदी की धारा बहा ले गई.
अँधेरा होने के बाद ही उसे सच्चाई का पता चल पाया.  

वालीबाल 
खिलाड़ियों के हाथों के बीच उछलती रहती थी वालीबाल. 
वे उसे उछालते, पकड़ते, या फिर जोर से मारा करते.
वालीबाल को हाथों से डर लगने लगा था, 
मगर वह लाचार उछला करती इधर से उधर 
जमीन पर गिरने का उसी तरह इंतज़ार करते हुए 
जैसे इंतज़ार रहता है आशिक की बाहों में समाने का. 
एक छोटे बच्चे ने बाल को पकड़कर 
चहारदीवारी के भीतर रख दिया.
उसने कोई शिकायत नहीं की;
वह ख्वाब देखती रही 
दीवार के उस तरफ की दुनिया का. 
                         :: :: :: 
Manoj Patel 

9 comments:

  1. muze ek dost ki jarurat hai......!

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  2. बढ़िया लघुकथाएं। अनुवाद पढ़वाने के लिए धन्यवाद

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  3. जीवंत कथा-काव्‍य हैं तीनों रचनाएं। 'मेढ़क और बादशाह' की व्‍यंजना अधिक तीव्र है। 'चांद की बात' का अंत अपेक्षया मद्धिम लगा। 'बालीबाल' का अंतिम हिस्‍सा भी ऐसा ही लगा। कुल मिलाकर रचनाएं जीवंत। आभार...

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  4. दून्या की कविताओं में ताज़गी है ,अनुवाद सुन्दर ! मेंढक और बादशाह जबरदस्त कविता है ! सराहनीय प्रस्तुति !

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  5. बेहतरीन रचनाये

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  6. बहुत सुन्दर....
    चाँद की बात लाजवाब..........

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