Saturday, December 10, 2011

नाजिम हिकमत : तुम्हें प्यार करता हूँ मैं

आज फिर से नाजिम हिकमत की एक कविता...



तुम्हें प्यार करता हूँ मैं : नाजिम हिकमत 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

नीचे झुकता हूँ मैं : देखता हूँ धरती 
घास, 
कीड़े मकोड़े, 
नीले फूलों वाले नन्हे पौधे. 
तुम बसंत ऋतु की धरती की तरह हो, मेरी प्रिय,
                              तुम्हें देख रहा हूँ मैं. 

पीठ के बल लेटता हूँ : देखता हूँ आकाश, 
एक पेड़ की डालियाँ, 
उड़ते हुए सारस, 
खुली आँखों से एक स्वप्न. 
तुम बसंत ऋतु के आकाश की तरह हो, मेरी प्रिय, 
                              तुम्हें ही देखता हूँ मैं. 

रात में जला देता हूँ एक अलाव : स्पर्श करता हूँ आग,
पानी, 
वस्त्र, 
रजत.
तुम सितारों के तले जलती एक आग की तरह हो, मेरी प्रिय,
                              तुम्हें स्पर्श करता हूँ मैं. 

जाता हूँ जनता के बीच : प्यार करता हूँ जनता को, 
काम,
विचार, 
संघर्ष. 
तुम एक शख्स हो मेरे संघर्ष में शामिल,
                              तुम्हें प्यार करता हूँ मैं. 
                    :: :: :: 
Manoj Patel 

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर कविता ! अपने प्रिय को हर जगह हर रूप में पाना ही प्रेम है ! सुन्दर अनुवाद ! बधाई मनोज जी !

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  2. 'जाता हूं जनता के बीच : प्यार करता हूं जनता को/ काम/विचार/ संघर्ष/ तुम एक शख्स हो मेरे संघर्ष में शामिल/ तुम्हें प्यार करता हूं मैं.'ऐसे लोगों को ही तो प्यार किया जा सकता है जो दुःख में और सपनों को पूरा करने के संघर्ष में साथ हों.

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  3. अद्भुत...मनोज पटेल मैं तुम्हें प्यार करता हूँ...कसम से!

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  4. तुम एक शख्स हो मेरे संघर्ष में शामिल .....तुम्हें प्यार करता हूँ मैं...इतनी सुंदर कविता और बेहतरीन अनुबाद के लिए सलाम करता हूँ मैं ......!!

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  5. बेहतरीन रचना फिर से पढूंगा पहले कमेन्ट डालने दे रहा हु, धन्यवाद् From Great talent

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  6. bahut sundar....tum ek shakhsh ho mere sangharsh mein shaamil! prem ko apne astitva ki sabhi tahon mein paana.....

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  7. जब हमारे संघर्षों में कोई शामिल हो जाता है इस तरह अपनी सम्पूर्णता के साथ... तब बनती है ऐसी कविता और जब आत्मसात हो जाते हैं भाव... तब होता है इतना सुन्दर अनुवाद!
    'पढ़ते पढ़ते' को पढ़ते रहना सुन्दर अनुभव है...!

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  8. चाहिए देश को /जनता से प्यार करने वाले/कम ही हैं/इन्हें सम्हालो/सेल्यूट करो/मरो इन पर /क्योंकि ये जनता को प्यार करते हैं.

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  9. मनोज भाई आपको फिर से बधाई! बेहतर चुनाव और सार्थक अनुवाद।

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  10. prem ki atyant sunder abhivyakti... jab prem apne utkarsh per hota hai to tab aisi rachna ki srishti hoti hai ... ek dusre ke sangharsh ko apna banana hi pyar ko sahi mayno me nibhana hai :) behatreen kavita aur samvedanao ka behatreen anuvaad .. bahut bahut badhai ..

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  11. जाता हूँ जनता के बीच : प्यार करता हूँ जनता को ....

    ________________


    नाजिम हिकमत की कविताएँ जितनी भी बार पढी जाएँ कम ही होंगी।

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  12. ye kavita pyar ko aur ek bada phalak deti hai.Thankyou Manoj ji.

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