Sunday, April 17, 2011

केवल स्त्रियाँ और लिखना ही बचाए रखता है हमें मौत से

आज निज़ार कब्बानी की कविता, "मैं लिखता हूँ" 










मैं लिखता हूँ : निज़ार कब्बानी 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मैं लिखता हूँ 
चीजों को उड़ा देने के लिए भक से ; लेखन पूरा है विस्फोट ही 
मैं लिखता हूँ 
ताकि रोशनी की जीत हो अंधेरों पर 
और विजयी हो कविता 
लिखता हूँ मैं 
ताकि पढ़ सकें मुझे गेहूं की बालियाँ 
और पढ़ सकें पेड़ मुझे 
मैं लिखता हूँ 
ताकि गुलाब समझ सके मुझे,
और सितारे और परिंदे,
और बिल्ली, मछली, 
घोंघे और सीपियाँ समझ सकें मुझे. 

मैं लिखता हूँ  
बचाने की खातिर इस दुनिया को हलाकू के जबड़ों से 
और मिलीशिया की हुकूमत 
और गिरोह के सरदार की सनक से. 
लिखता हूँ मैं 
तानाशाहों की कैद से स्त्रियों को बचाने की खातिर 
उन्हें मुर्दों की बस्तियों, बहुविवाह की प्रथा 
और ज़िंदगी की नीरसता, 
औपचारिकता और दुहराव से बचाने की खातिर.
मैं लिखता हूँ 
शब्दों को पूछताछ से बचाने के लिए 
उन्हें जासूसी कुत्तों की सूंघ और 
सेंसर के फांसी के तख्ते से बचाने के लिए. 

मैं लिखता हूँ 
स्त्रियों को बचाने के लिए जिनसे प्यार है मुझे    
उन्हें कविता और प्यार से रहित कुंठा और उदासी की बस्तियों से 
बचाने के लिए लिखता हूँ मैं 
मैं लिखता हूँ उन्हें एक धुंध भरा बादल बना देने के लिए.

केवल स्त्रियाँ और लिखना ही 
बचाए रखता है हमें मौत से.   

8 comments:

  1. बेहतरीन !!!!!!
    अनुवाद भी..

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  2. आज देनिक भास्कर में आपकी अनुदित कहानी पढ़ी . पूर्व में आपके ब्लॉग पर भी पढ़ चूका हु . अच्छा लगता है एक बड़े संसार से रु -बरु होने में . निरंतरता बनाये रखे . शुभकामनाये .

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  3. बहुत खूब! आप हैं तो इतनी अच्छी कविताएँ हमें अपनी भाषा में पढ़ने को मिल जाती हैं.

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  4. kya baat hai!! bahut hee sunder! badhai aapko

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  5. इसलिए भी लिखना ताकि खुद को भी जान सकूं..

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  6. बहुत सुन्दर कविता ! अर्थपूर्ण !
    कविता मनुष्य के लिए ,न कि मनुष्य कविता के लिए !
    सुन्दर अनुवाद और प्रस्तुतीकरण के लिए बधाई !

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  7. आभार ...इतनी सुन्दर कविताओं के लिए !

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  8. सुन्दर और शानदार काम है आपका मनोज जी.

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