Tuesday, April 26, 2011

इतालो काल्विनो की कहानी


इतालो काल्विनो की कहानियों के क्रम में आज उनकी कहानी 'द मैन हू शाऊटेड टेरेसा' का हिन्दी अनुवाद...












टेरेसा को आवाज़ देने वाला आदमी : इतालो काल्विनो 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मैं फुटपाथ से नीचे उतर आया, ऊपर देखते हुए कुछ कदम पीछे की ओर चला, और अपने हाथों को मुंह के पास ला, भोंपू सा बनाकर, सड़क के बीचोबीच से इमारत की सबसे ऊपरी मंजिलों की तरफ चिल्लाया : 'टेरेसा !'  

मेरी परछाईं चंद्रमा से डरकर मेरे पैरों के बीच सिमट गई. 

कोई पास से गुजरा. मैं फिर चिल्लाया : 'टेरेसा !' वह आदमी मेरे पास आया और बोला : 'अगर तुम और तेज नहीं चिल्लाए तो वह तुम्हारी आवाज़ नहीं सुन पाएगी. चलो हम दोनों मिलकर कोशिश करते हैं. तीन तक गिनो, तीन आने पर हम एक साथ चिलाएंगे.' और फिर उसने गिना : 'एक, दो, तीन.' और हम दोनों ने गुहार लगाई. 'टेरेसाssss !' 

उधर से गुजरती कुछ दोस्तों की एक छोटी सी टोली ने, जो शायद थियेटर से या फिर काफीघर से लौट रही थी, हमें आवाज़ लगाते देखा. वे बोल पड़े : 'चलो, हम भी आवाज़ लगाने में तुम्हारी मदद करते हैं.' और वे सड़क के बीचोबीच हमारे साथ आ खड़े हुए और पहले आदमी ने एक दो तीन गिना जिसपर सारे लोग मिलकर चिल्लाए, 'टे-रेsss-साsss !'   

कोई और भी आया और हमारे साथ हो लिया ; लगभग पंद्रह मिनटों में हमारी अच्छी खासी संख्या हो गई, बीस के आस पास. थोड़े-थोड़े अंतराल पर कोई न कोई नया आदमी आता ही जा रहा था. 

एक ही समय पर बढ़िया ढंग से आवाज़ देने के लिए खुद को संगठित करना आसान न था. तीन के पहले ही कोई न कोई  हमेशा शुरू हो जाता था या कोई देर तक आवाज़ देता रह जाता था, लेकिन आखिरकार हम कुछ ठीक-ठाक ही निपटा ले जा रहे थे. हम इस बात पर राजी हुए थे कि 'टे' को धीमे और देर तक बोलना है, 'रे' को जोर से और देर तक, जबकि 'सा' को धीमे और थोड़े समय के लिए. यह बढ़िया लग रहा था. बस यदा कदा कुछ शोरगुल  मच जाता, जब कोई बाहर निकल आता था.   

हम इस काम को ठीक-ठीक करना शुरू ही कर रहे थे जब किसी ने, जिसकी आवाज़ से अंदाजा मिल रहा था कि जरूर वह चित्ते पड़े हुए चेहरे वाला होगा, पूछा : 'मगर क्या तुम पक्का जानते हो कि वह घर पर होगी ?' 
'नहीं,' मैनें कहा.
'यह तो बहुत बुरा हुआ,' कोई और बोला. 'तुम जरूर अपनी चाभी भूल गए होगे, है ना ?'
'दरअसल,' मैं बोला, 'मेरे पास अपनी चाभी है.'
'तो फिर' उन्होंने कहा, 'तुम सीधे ऊपर ही क्यों नहीं चले जाते ?'
'अरे लेकिन मैं यहाँ नहीं रहता,' मैनें जवाब दिया. 'मैं शहर के उस तरफ रहता हूँ.'
'ठीक है, मेरी जिज्ञासा के लिए मुझे माफ़ करिएगा, फिर यहाँ कौन रहता है ?' उसी चित्तीदार आवाज़ वाले ने सावधान स्वर में पूछा.
'मुझे कैसे पता हो सकता है,' मैनें कहा.

लोग इस बात को लेकर थोड़ा परेशान हो गए.

'तो क्या आप मेहेरबानी करके बताएंगे,' किसी ने पूछा, ' कि आप यहाँ टेरेसा-टेरेसा पुकारते हुए क्यों खड़े हैं ?'
'जहां तक मेरी बात है,' मैनें कहा, 'हम कोई और नाम पुकार सकते हैं, या किसी और जगह ऎसी कोशिश कर सकते हैं. यह कोई ख़ास बात नहीं है.'

दूसरे लोग भी कुछ नाराज होने लगे. 
'मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम हमारे साथ कोई चाल नहीं चल रहे होगे ? उसी चित्तेदार चेहरे वाले ने सन्देहपूर्वक पूछा. 
'क्या ?' मैनें नाराजगी जताते हुए कहा, और अपनी सच्चाई की पुष्टि के लिए बाक़ी लोगों की तरफ मुड़ा. यह दिखाते हुए कि वे इशारे को नहीं समझ पाए थे, उन लोगों ने कुछ भी नहीं कहा.     

एक पल के लिए उलझन छाई रही.

'देखो' किसी ने भलमनसाहत से कहा, 'क्यों न हम एक आखिरी बार टेरेसा आवाज़ लगाएं, फिर अपने घर चले जाएं.'

तो हम लोगों ने एक बार फिर वैसा ही किया. 'एक दो तीन टेरेसा !' मगर इसबार आवाज़ कुछ ख़ास ठीक से नहीं निकली. फिर लोग अपने घरों की तरफ चल पड़े, कुछ एक रास्ते, और कुछ दूसरे. 

मैं चौराहे की तरफ मुड़ चुका था, जब मुझे लगा कि मैनें एक आवाज़ सुनी जो अब भी पुकार रही थी : 'टेssरेssसाss!'    

जरूर कोई चिल्लाते रहने के लिए रुक गया था. कोई जिद्दी शख्स. 
Italo Calvino Stories Translated in Hindi, Manoj Patel Anuvaadak, Padhte Padhte 

5 comments:

  1. वाह! और पढ़वाइए काल्विनो की ये छोटी छोटी कहानियाँ।

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  2. विश्व साहित्य आपके माध्यम से पढ़ने को मिलेगा....बहुत बहुत धन्यवाद

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