Tuesday, April 12, 2011

माइआ अंजालो : कफस के पंछी का गीत


पढ़ते-पढ़ते पर आप माइआ अंजालो की कविताएँ पढ़ते रहे हैं. आज मनीषा कुलश्रेष्ठ के सौजन्य से उनके गद्य की एक बानगी  -  कफस के पंछी का गीत  












कफस के पंछी का गीत : माइआ अंजालो 
(अनुवाद : मनीषा कुलश्रेष्ठ) 

मेरी मां के प्रेमी मि. फ्रीमैन हमारे साथ रहा करते थे या हम उनके साथ रहा करते थेतब मैं इस बारे में ठीक से नहीं जानती थी. वे भी दक्षिणी थेविशालकाय और कुछ थुलथुल. जब भी वे बनियान में घूमा करतेमुझे उनका सीना देख कर शर्मिन्दगी होतीवह औरतों की सपाट छातियों जैसा था.
यदि मेरी मां इतनी सुंदर स्त्री न भी होती - गोरीसीधे बालों वाली. तब भी वह उन्हें पाकर भाग्यशाली होते यह वह खूब जानते थे. वे शिक्षित थीं और एक प्रतिष्ठित परिवार से सम्बध्द थींआखिरकार वह सेन्ट लुईस की पैदाईश नहीं थीं क्या! फिर वे खुशमिजाज थीं. वे हरदम हंसती रहतीं और चुटकुले सुनातीं. वे आभारी थे. मेरे ख्याल से वे मां से उम्र में काफी बडे रहे होंगे. अन्यथा उन्हें सुस्त किस्म की हीन भावना क्यों होती जो कि एक अधेड़  दमी को अपने से जवान औरत से विवाह करके होती है. वे उनकी हर हरकतहर गति पर निगाह गाड़े रखतेजब वे कमरे से चली जातीं तो उनकी आंखें उन्हें बेमन से जाते देखतीं.

मैं ने तय कर लिया था कि सेंट लुईस मेरा अपना देश नहीं है. मैं टॉयलेट में तेज ग़ति में फ्लश चलने की आवाज या डब्बाबन्द खानों की और दरवाजों की घंटियोंकारोंरेलों - बसों के शोर की आदी नहीं हो सकी थी,जो कि दीवारों को फोड़ता हुआ या दरवाजों से रेंगता हुआ अन्दर आता था. मेरे दिमाग के हिसाब सेमैं केवल कुछ ही सप्ताह सेंट लुईस में रही होऊंगी. जैसे ही मुझे अहसास हो गया कि मैं अपने घर पर नहीं या ये सब मेरे नहीं है मैं कायरों की तरह रॉबिन हुड के जंगलों और ऐली ओप की वादियों में जा उतरती थीजहां वास्तविकता अवास्तविकता में बदल जाती थी और यहां तक कि वह हर दिन बदलती रहती थी. मैं यह सुरक्षा कवच हमेशा साथ रखती थीबल्कि इसे स्टांप की तरह इस्तेमाल करती थी कि - मैं यहां रहने नहीं आई हूँ.

मेरी मां हमें सर्व सुख - सुविधाएं देने में सक्षम थी. इसका मतलब यह भी लगा सकते हैं कि अगर किसी को पटा कर हमें सब कुछ मुहैय्या करवाना ही क्यों न हो. हालांकि वह नर्स थीलेकिन जब तक हम उसके साथ रहे उसने अपने पेशे से सम्बध्द तो कोई काम नहीं किया. मि. फ्रीमैन जरूरतों की पूर्ति के लिए लाए गए थे और हमारी मां ने जुआघरों में पोकर खेलकर अतिरिक्त पैसा बना लिया था. सीधी - सादी आठ से पांच की दुनिया उनको आकर्षित करने के लिए नाकाफी थी. यह उसके बीस साल बाद की बात है जब मैं ने उन्हें पहली बार नर्स की पोशाक में देखा था.

मि. फ्रीमैन दक्षिण पैसिफिक यार्ड में फोरमैन थे और कभी कभी देर से घर लौटा करते थे. मां के चले जाने के बाद. वे स्टोव से अपना रात का खाना उठातेजिसे मां ने ध्यान से ढककर रखा होता थाहमारे लिए इस अपरोक्ष चेतावनी के साथ कि तुम्हें इस सब की परवाह करने की जरूरत नहीं है. वे चुपचाप रसोई में खाना खाते जबकि मैं और बैली अलग - अलग और एकदम लालचियों की तरह अपनी - अपनी 'स्ट्रीट एंड स्मिथनामक घटिया किस्म की किताबें पढा करते. अब जबकि हम अपना पैसा खर्चते ही थे,तो हम ऐसी सचित्र पेपरबैक किताबें खरीदते जिनमें भडक़ीली तस्वीरें होतीं. जब मां घर पर नहीं होतीं तो हमें एक सुविधाजनक व्यवस्था बनानी होती थी. हमें होमवर्क खत्म करकेखाना खाकरप्लेटें धोनी होती थीं ताकि हम द लोन रेंजर', 'क्राईम बस्टर्सया 'द शेडो' पढ़ या सुन सकें.

मि. फ्रीमैन सौजन्यता के साथ ऐसे अन्दर आते जैसे एक बडा भूरा भालू और कभी - कभार ही हमसे बात करते. वे बस मम्मी का इंतजार करते और खुद को समूचा उनके इंतजार में झौंक देते. वे कभी अखबार नहीं पढते थे और न ही रेडियो के संगीत पर अपने पैर थिरकाते थे. वे प्रतीक्षा करते थे. बस सिर्फ यही.

अगर वे हमारे बिस्तरों में घुसने से पहले घर लौट आतीं तो हम उस व्यक्ति को जीवंत पाते. वे बडी क़ुर्सी से ऐसे उठते जैसे कोई आदमी नींद से उठता हैमुस्कुराते. तब मुझे याद आता कि कुछ ही सैकेण्ड पहले मुझे कार के दरवाजे बन्द होने की आवाज सुनाई दी थीफिर मम्मी के कदमों की आहट का संकेत. जब मम्मी की चाबी दरवाजे में घूमती मि. फ्रीमैन आदतन वही अपना प्रश्न पहले ही पूछ चुके होते थे - 'हेबिब्बीसमय अच्छा बीता?'
उनका यह सवाल हवा में अटका रह जातातब तक मां लपक कर उनके होंठों का चुंबन ले रही होती थीं. फिर वे बैली और मेरी तरफ अपने लिप्स्टिक लगे चुम्बनों के साथ मुड्तीं , '' तुमने अभी तक होमवर्क नहीं किया?'' अगर हम पढ़ रहे होते तो कहतीं - '' अच्छा अपनी प्रार्थनाएं बोलो और सोने चलो.'' अगर हम पढ़ नहीं रहे होते तो कहतीं - '' चलो अपने कमरे में जाओअपना काम पूरा अपनी प्रार्थनाएं बोलो और सो जाओ.''

मि. फ्रीमैन की मुस्कान में कभी घटा - बढ़ी नहीं हुईवह लगभग उतनी ही सघन बनी रही. कभी - कभी मम्मी उनकी गोद में चढ़ क़र बैठ जाती तो उनके चेहरे की मुस्कान ऐसे लगती कि जैसे वह उनके चेहरे पर सदा के लिए चिपक गयी है.

हम अपने कमरों से ग्लासों के टकराने की और रेडियो चलाए जाने की आवाज सुन पाते थे. मैं सोचती थी कि वे जरूर सोने से पहले उनके लिए नाचती थींक्योंकि उन्हें नाचना नहीं आता था. लेकिन अकसर नींद में डूबने से पहले मुझे नृत्य की ताल पर पैरों की थिरकन सुनाई देती.

मुझे मि. फ्रीमैन पर तरस आता. मुझे मि फ्रीमैन पर वैसा ही तरस आता जैसा कि आर्केनसास में अपने घर के पिछवाड़े बने सुअरबाड़े में जन्मे सुअर के नन्हें बच्चों पर आता था. हम उन सुअरों को पूरे साल खिला - पिला कर सर्दियों की पहली बर्फबारी में काटे जाने के लिए मोटा करतेहालांकि उन प्यारे नन्हें कुलबुलाते जीवों के लिए मैं ही थी जो दुखी होती थीऔर मैं यह भी जानती थी कि ताजा सॉसेजेज और सुअरों के भेजे का मजा भी मैं ही लेने वाली हूँजो कि उनके मरे बिना मुझे नहीं मिलने वाला है.

हमारी पढ़ी हुई उन सनसनीखेज क़हानियों और हमारी प्रबल कल्पनाओं या शायद हमारी संक्षिप्त मगर बहुत तेज रफ्तार जिन्दगी की यादों की वजह से बैली और मुझ पर बुरा असर पडा था - उस पर शारीरिक तौर परमुझ पर मानसिक तौर पर. वह हकलाने लगा था और मैं भयानक सपनों से पसीने - पसीने हो जाया करती थी. उसे लगातार समझाया जाता कि - धीरे - धीरे बोलो और फिर से बोलना शुरु करो. मेरी उन विशेष बुरी रातों में मम्मी मुझे अपने अपने साथउस विशाल बिस्तर पर मि. फ्रीमैन के साथ सोने के लिए ले जाती. स्थायित्व की आवश्यकता के लिए बच्चे जल्दी ही आदतों के आदी जीव बन जाते हैं. तीन बार मां के बिस्तर पर सोने के बाद मुझे लगने लगा था कि वहां सोने में कुछ भी अजीब नहीं है.

एक सुबहएक शीघ्र बुलावे पर वे बिस्तर से जल्दी उठ गयीं और मैं दुबारा सो गयी थी. लेकिन एक दबाव और अपने दांए पैर पर एक अजीब से स्पर्श से मैं जाग गयी. वह हाथ से कहीं मुलायम थाऔर वह कपडे क़ा स्पर्श बिलकुल नहीं था. वह जो भी था वैसे उद्दीपन का अनुभव मुझे मां के साथ इतने वर्षों सोते हुए कभी महसूस नहीं हुआ था. वह हिल नहीं रहा था और मैं दम साधे हुए थी. मैंने मि. फ्रीमैन को देखने के लिए अपना सिर जरा सा बायीं तरफ घुमाया कि वे उठ कर चले गए कि नहीं,लेकिन उनकी आंखें खुली थीं और दोनें हाथ चादर के ऊपर थे. मुझे पता थाजैसे कि मैं हमेशा से जानती होऊंकि यह उनकी वह 'चीजथी जो मेरे पैर पर सटी थी.
उन्होंने कहा, '' ऐसे ही लेटी रहोरिटीमैं तुम्हें चोट नहीं पहुंचाऊंगा.''
मैं डर नहीं रही थीशायद कुछ आशंकित सी थी मगर डरी तो नहीं थी. हाँबेशक जानती थीबहुत से लोग 'येकिया करते थे और वे अपना काम पूरा करने के लिएअपनी इस चीजक़ो इस्तेमाल करते थेलेकिनमैं कभी ऐसे किसी को नहीं जानती थी जिसने इसे किसी और के साथ किया हो. मि. फ्रीमैन ने मुझे अपने पास खींच लिया और अपना हाथ मेरे पैरों के बीच डाल दिया. उन्होंने चोट नहीं पहुंचाईमगर मम्मी ने मेरे दिमाग में यह बात अच्छी तरह से डाल रखी थी कि, '' अपनी टांगे हमेशा भींच कर रखनी हैं और किसी को भी अपनी 'पॉकेट बुकदेखने नहीं देनी है.''
'' देखोमैंने तुम्हें अभी चोट नहीं पहुंचाई नाडरो मत.'' उन्होंने कम्बल पीछे को पटक दिया और उनकी वह 'चीजभूरे भुट्टे की तरह सीधी खड़ी थी. उन्होंने मेरा हाथ पकडा और कहा, '' इसे महसूस करो.'' वह ताजे कटे हुए मुर्गे की अन्दरूनी हिस्से की तरह लिजलिजी और गिलगिली थी.
फिर उन्होने मुझे अपने सीने के ऊपर अपनी बांई बांह से खींच लियाउनका सीधा हाथ इतना तेज चल रहा था और उनका दिल इतना तेज धड़क रहा था कि मुझे डर लगा कि वे मरने वाले हैं. भूतों की कहानियों में होता है कि किस तरह मरने वाले लोगअपने मरते वक्त जिस किसी चीज क़ो पकड़े होते हैं उसे जकड़ लेते हैं. मैं आतंकित थी कि अगर मि. फ्रीमैन मुझे जकड़े - जकड़े ही मर गया तो मैं कैसे मुक्त हो पाऊंगीक्या मुझे छुड़ाने के लिए लोग उनकी बांह तोड़ डालेंगे ?

अंतत: वे शांत हो गएफिर एक अच्छी बात हुईउन्होंने मुझे बहुत नर्म तरीके से आलिंगित किया कि मेरा मन करने लगा कि वे मुझे कभी न छोड़ें. मुझे अपना - सा महसूस हुआ. जिस तरह उन्होंने मुझे सहेजा हुआ थामैं जानती थी कि वे मुझे कभी नहीं जाने देंगे या कभी मेरे साथ कुछ बुरा नहीं होने देंगे. हो सकता है कि यही मेरे पिता हों और आखिरकार हमने एक दूसरे को पा लिया हो. लेकिन फिर वे पलटे और मुझे गीले स्थान पर छोड क़र उठ गए.

'' मुझे तुमसे बात करनी है रिटी.'' उन्होंने अपने शॉर्ट्स को ऊपर खींचा जो कि उनकी एड़ियों में जा गिरा था और बाथरूम में जा घुसे. ये सच था कि बिस्तर गीला थालेकिन मुझे पता था कि मैं 'बिस्तर गीला करनेजैसा कुछ भी नहीं किया है. हो सकता है मि फ्रीमैन के साथ ऐसा हो गया हो जब वे मुझे जकड़े हुए थे. वे एक ग्लास पानी के साथ वापस लौटे और मुझसे खीजी हुई आवाज में कहा , '' उठो तुमने बिस्तर में सूसू कर दिया है.''
उन्होंने गीले हिस्से पर पानी डालाऔर मेरे वाले गद्दे पर वह निशान कई सुबहों तक वैसा ही दिखता रहा.

दक्षिणी अनुशासन में रहने के कारण मैं जानती थी कि कब बड़ों के सामने चुप रहना हैलेकिन मैं उनसे पूछना चाहती थी कि उन्होंने ये क्यों कहा कि मैं ने बिस्तर गीला किया हैजबकि मुझे पक्का पता था कि उन्हें खुद भी इस बात का यकीन नहीं था. मगर उन्होंने यह सोच लिया कि मैं बदतमीज हूँ तोइसका मतलबक्या वे मुझे फिर कभी उस प्यार से गले नहीं लगाएंगे?  या कभी यह नहीं जताएंगे कि वे ही मेरे पिता है. मैं ने उन्हें अपने बारे में शर्मिन्दा कर दिया है.

''रिटीक्या तुम बैली से प्यार करती हो?'' वे बिस्तर पर बैठ गए और मैं उछलती - कूदती हुई उनके पास आई  - '' हाँ.''
वे झुक कर अपने मोजे पहन रहे थेउनकी पीठ इतनी विशाल और दोस्ताना - सी थी कि मेरा मन चाहा कि मैं उस पर अपना सिर टिका दूं.
''अगर तुमने किसी से भी कहा कि हमने क्या किया हैतो मुझे बिली को मार डालना पडेग़ा.''
हमने क्या कियाहमने! जाहिर है उनका मतलब मेरे बिस्तर पर सूसु कर देने से तो नहीं है. मैं समझी नहींन ही मेरी हिम्मत हुई उनसे पूछने की. जरूर इसका मतलब मुझे गले लगाने से होगा. लेकिन मैं बैली से भी पूछ नहीं सकती थीक्योंकि उसे वह सब बताना पड़ता जो हमने किया था. वह बैली को मार सकता हैयह विचार ही मुझे सहमा गया था. उनके कमरे से जाने के बाद मैं ने मम्मी को यह बताने की सोची कि मैं ने बिस्तर गीला नहीं किया थालेकिन अगर उन्होंने पूछा कि हुआ क्या था तो मुझे उन्हें मि. फ्रीमैन के सीने से लगाने की बात बतानी पडेग़ीऔर उससे बात नहीं बनेगी.

अब यह वही पुराना असमंजस थाजिसे मैं ने हमेशा जिया था. यहां बड़ों की फौज थीजिनके इरादे और हरकतें मैं समझ ही नहीं पाती थी और जिन्होंने मेरी बातें समझने की कोई जहमत तक नहीं उठाई. मेरे मि. फ्रीमैन को नापसंद करने का कोई प्रश्न नहीं थाशायद मैं बस उन्हें समझने में नाकाम रही.

कई हफ्तों बाद तक उन्होंने कुछ नहीं कहाकेवल उन उजड्ड से नमस्ते के जवाबों के सिवा जो उन्होंने मेरी तरफ देखे बिना दिए थे.

यह पहला ही राज था जिसे मैंने बैली से छिपाया था और कभी कभी मैंनें सोचा कि वह इसे मेरे चेहरे पर पढ़ लेगा लेकिन उसे कुछ पता नहीं चला.

मैं मि. फ्रीमैन और उनकी बड़ी - बड़ी बांहों के घेरे के बिना अकेला महसूस करने लगी थी. इसके पहले बैलीखानामम्मीदुकानकिताबें पढ़ना और अकंल विली ही मेरा संसार हुआ करते थे. अब पहली बार मैंने इसमें शारीरिक स्पर्श को शामिल किया था.

मैंने मि. फ्रीमैन के यार्ड से लौट कर आने का इंतजार करना शुरु कर दिया थालेकिन जब वे आते तो मेरी तरफ ध्यान ही नहीं देते थेहालांकि मैं ढेर सा अपनत्व भर कर उन्हें '' गुडईवनिंगमि फ्रीमैन.'' जरूर कहती.

एक शामजब मैं अपना मन कहीं नहीं लगा पा रही थी तो मैं उनके पास जाकर उनकी गोद में चढ़ क़र बैठ गई.वे पहले की तरह मम्मी का इंतजार कर रहे थे. बैली 'द शैडोसुन रहा था और उसे मेरी जरूरत नहीं थी. पहले तो मि. फ्रीमैन स्थिर बैठे रहेमुझे बिना जकड़े या बिना कुछ किएतभी मुझे अपनी जांघों के नीचे एक मुलायम मांसल पिण्ड के हिलने का अहसास हुआ. वह मुझसे हल्के - हल्के टकरा रहा था और कड़ा होता जा रहा था. तब उन्होंने मुझे अपने सीने पर खींच लिया. उनमें से कोयले के बुरादे और ग्रीस की महक आ रही थीऔर इतना करीब थे कि मैंने अपना सिर उनकी कमीज में धंसा लिया था और उनके दिल की धड़कन सुन रही थीवह सिर्फ मेरे लिए धड़क रहा था. केवल मैं उस धमक को सुन पा रही थीमैं उसकी उछाल को अपने चेहरे पर महसूस कर पा रही थी.उन्होंने कहा, '' टिक कर बैठोकुलबुलाओ मत.'' लेकिब पूरे वक्तवे ही तो मुझे अपनी गोदी में धक्का देते रहे थेफिर अचानक वे खड़े हो गए और मैं फर्श पर फिसल गई. वे बाथरूम की तरफ भागे.

महीनों के लिए उन्होंने फिर से मुझसे बात करना बन्द कर दिया था. मैं आहत थी और एक समय के लिए तो मैं पहले से कहीं ज्यादा अकेला महसूस करने लगी थी. लेकिन फिर में उनके बारे में भूल चुकी थीयहां तक कि उनके मुझे गले लगाने का वह प्रिय अहसास भी बचपन की आंखों पर बंधे पट्टे के पीछे के उन सहज अंधेरों में पिघल कर खो गया था.

मैं पहले से ज्यादा पढ़ने लगीऔर अपनी आत्मा में यह प्रार्थना करती कि काश मैं लड़का बनकर पैदा हुई होती. होरेशियो एल्गर विश्व के महान लेखक थे. उनके नायक हमेशा अच्छे होते थेहमेशा जीता करते थे और हमेशा लड़के ही होते. मैं स्वयं में पहले दो गुण तो विकसित कर सकती थीलेकिन लड़का बनना असंभव नहीं तो निश्चित तौर पर आसान तो नहीं था.

द सण्डे फनीजमुझे प्रभावित करते थेहालांकि मुझे शक्तिशाली नायक पसंद थे जो हमेशा अंत में विजय पाया करते थे. मैं स्वयं को 'टाइनी टिमसे जोड़ा करती. बाथरूम में जहां मैं अखबार ले जाया करती थीवहां उसके गैरजरूरी पन्ने हटाना और देखना यंत्रणादायी होता था कि मैं जान सकूं कि अंतत: कैसे वह अपने नए विरोधी से जीत सका. मैं हर इतवार इस राहत से रोया करती कि वह दुष्ट आदमियों के चंगुल से बच निकला और अपनी संभावित हार की सीमाओं से फिर बाहर आ खड़ा हुआहमेशा की तरह प्यारा और सौम्य. द कैटजेनजेमर किड्समजेदार थे क्योंकि वे वयस्क लोगों को मूर्ख साबित कर दिया करते थे. लेकिन मेरी रुचि के विपरीत वे कुछ ज्यादा ही चतुर - चालाक थे.

जब सेंट लुईस में बसंत आयातो मैं ने अपना पहला लाईब्रेरी कार्ड बनवायाऔर जब से मैं और बैली अलग - अलग बड़े होने लगे थेमैं ने अपने ज्यादातर शनिवार लाईब्रेरी में ( बिना व्यवधान के ) निर्धनबूट पॉलिश करने वाले लड़कों की दुनिया में सांस लेते हुए बिताए थेजो कि अपनी नेकी और लगातार मेहनत के साथ अमीरबेहद अमीर बनते हैं और छुट्टी के दिन डलिया भर - भर कर सामान गरीबों में बांटते हैं. एक छोटी राजकुमारी जिसे गलतफहमी में नौकरानी समझ लिया गया थाखोए हुए बच्चे जिन्हें लावारिस समझ लिया गया था मेरे लिए अपने घरअपनी मम्मीस्कूल और मि. फ्रीमैन से ज्यादा वास्तविक हो चले थे.

उन महीनों के दौरानहम अपने नाना - नानी और मामाओं से मिले. ( हमारी एकमात्र मौसी कैलीफोर्निया में अपना भविष्य बनाने चली गई थीं.) लेकिन वे ज्यादातर एक ही प्रश्न पूछते - '' तुम अच्छे बच्चे बने रहे न?'' जिसके लिए हमारे पास एक ही उत्तर था. यहां तक कि बैली भी कभी 'नाकहने का दु:साहस न कर सका.


मनीषा कुलश्रेष्ठ

जन्म : 26 अगस्त 1967, जोधपुर
शिक्षा – बी.एससी., एम. ए. (हिन्दी साहित्य), एम. फिल., विशारद ( कथक)
प्रकाशित कृतियाँ –
कहानी संग्रह - कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, बौनी होती परछांई
केयर ऑफ स्वात घाटी (संग्रह शीघ्र प्रकाश्य)
उपन्यास-  शिगाफ़ ( कश्मीर पर), ‘शालभंजिका’
नया ज्ञानोदय में इंटरनेट और हिन्दी पर लिखी लेखमाला की पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य.
अनुवाद – माया एँजलू की आत्मकथा ‘ वाय केज्ड बर्ड सिंग’ के अंश, लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास ‘हाउस मेड ऑफ डॉन’ के अंश, बोर्हेस की कहानियों का अनुवाद
अन्य : हिन्दीनेस्ट के अलावा, वर्धा विश्वविद्यालय की वेबसाईट ‘हिन्दी समय. कॉम’ का निर्माण, संगमन की वेबसाईट ‘संगमन डॉट कॉम’ का निर्माण व देखरेख.
पुरस्कार व सम्मान :  चन्द्रदेव शर्मा नवोदित प्रतिभा           पुरस्कार – वर्ष 1989 ( रा. साहित्य अकादमी)
कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप – 2007
डॉ. घासीराम वर्मा सम्मान – वर्ष 2009
रांगेय राघव पुरस्कार वर्ष 2010 ( राजस्थान साहित्य अकादमी)
संप्रति – स्वतंत्र लेखन और इंटरनेट की पहली हिन्दी वेबपत्रिका ‘हिन्दीनेस्ट’ का दस वर्षों से संपादन.
ई – पता – 
manisha@hindinest.com
 

2 comments:

  1. शुभागमन...!
    कामना है कि आप ब्लागलेखन के इस क्षेत्र में अधिकतम उंचाईयां हासिल कर सकें । अपने इस प्रयास में सफलता के लिये आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या उसी अनुपात में बढ सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको 'नजरिया' ब्लाग की लिंक नीचे दे रहा हूँ, किसी भी नये हिन्दीभाषी ब्लागर्स के लिये इस ब्लाग पर आपको जितनी अधिक व प्रमाणिक जानकारी इसके अब तक के लेखों में एक ही स्थान पर मिल सकती है उतनी अन्यत्र शायद नहीं । प्रमाण के लिये आप नीचे की लिंक पर मौजूद इस ब्लाग के दि. 18-2-2011 को प्रकाशित आलेख "नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव" का माउस क्लिक द्वारा चटका लगाकर अवलोकन अवश्य करें, इसपर अपनी टिप्पणीरुपी राय भी दें और आगे भी स्वयं के ब्लाग के लिये उपयोगी अन्य जानकारियों के लिये इसे फालो भी करें । आपको निश्चय ही अच्छे परिणाम मिलेंगे । पुनः शुभकामनाओं सहित...

    नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव.

    युवावय की चिंता - बालों का झडना ( धीमा गंजापन )

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  2. परिवार नामक संस्था के पाखंड और अमानवीयता के परदे गिराती एक साहसिक मासूम कहानी। पढ़ते हुए बांग्लादेश के अभी जुलाई में गुजरे लेखक हुमांयू अहमद का उपन्यास 'नंदित नरक में'याद आता रहा जिसकी समीक्षा बया के पिछले अंक में छपी है। सोचता हूं हमारे यहां हिन्दी में ऐसी कहानियां क्यों नहीं है जबकि हमारे महान परिवार ऐसी गलाजत से एक जमाने से बजबजा रहे हैं। पाखंड...वही हमारा प्रिय पाखंड...अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है यहां एक भी टिप्पणी क्यों नहीं है। मनीषा को यह कहानी चुनने के लिए बधाई।

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