Thursday, August 4, 2011

निज़ार कब्बानी : कैसे चूं-चूं करते हैं चूजे

'सौ प्रेम पत्र' से निज़ार कब्बानी की दो और कविताएँ...


















निज़ार कब्बानी की कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मैनें सिखाया तुम्हें पेड़ों के नाम 
और रात में झींगुरों की बातें सुनना 
और पता बताया तुम्हें दूर-दराज के तारों का. 
दाखिल कराया तुम्हें बहारों की पाठशाला में 
सिखाया चिड़ियों की भाषा 
और नदियों की वर्णमाला.   
तुम्हारा नाम लिखा 
बारिश की कापियों,   
बर्फ की चादरों, 
और चीड के पेड़ों पर.
तुम्हें बातें करना सिखाया खरगोशों और लोमड़ियों से 
और मेमने के बालों में कंघी करना.
मैनें दिखाया तुम्हें चिड़ियों की अप्रकाशित चिट्ठियों को, 
और सौंपा तुम्हें 
गरमी और सर्दी के नक़्शे 
ताकि तुम जान सको 
कि गेहूं कैसे उगता है, 
कैसे चूं-चूं करते हैं चूजे, 
कैसे शादी करती हैं मछलियाँ, 
और चाँद की छाती से कैसे निकलता है दूध. 
                    :: :: :: 

वे दो साल 
जब तुम रही मेरी महबूब 
दो सबसे अहम पन्ने हैं 
मुहब्बत की किताब के. 
कोरे हैं 
उसके पहले और बाद के सारे पन्ने. 
ये पन्ने 
भूमध्य रेखा हैं 
मेरे और तुम्हारे होंठों के बीच से गुजरती, 
ये पैमाने हैं वक़्त के 
जिनसे मिलाया जाता है 
दुनिया भर की तमाम घड़ियों को. 
                    :: :: ::  

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर ... विशेष नीचे वाली कविता..

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  2. ओह !!! अनुवाद में इतनी लयात्मकता... इतना संतुलित संवेदन !!!

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  3. very nice creation..

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  4. कितनी आत्मीयता है इन कविताओं में ,जैसे कोई अपना या अपना खुद ही कान के पास आ के कुछ कह जाये ! बहुत अच्छी कवितायेँ कब्बानी साहब की ! फिर से आभार मनोज जी !

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  5. होगा एक दिन
    जब मूल की तड़प और अनुवाद की प्यास
    के बीच की भूमध्यरेखा पर
    लिखा तुम्हारा नाम.....

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