फदील अल-अज्ज़वी की यह कविता पढ़ें...
सुप्रभात ईश्वर : फदील अल-अज्ज़वी
(अनुवाद : मनोज पटेल)
सुप्रभात ईश्वर !
मुझे यकीन है कि आप मुझे जानते होंगे,
भले ही हम मिले नहीं कभी,
क्योंकि आप तो सभी को उनके नाम से जानते हैं,
एक-एक को,
भले और बुरे लोगों को.
मैं सचमुच आपसे मिलना चाहता था
अपना सच्चा विश्वास जताने के लिए,
मगर नहीं जानता था आसमान में आपका पता
जहां सितारों और आकाश गंगाओं की पूरी भूल-भुलैया है.
आप तो जानते ही हैं कि मैं कोई अन्तरिक्ष यात्री नहीं हूँ
और कोई यान नहीं मेरे पास आप तक पहुँचने के लिए.
मुझे पता है कि आप बहुत व्यस्त रहते हैं.
दरअसल, हम सभी बहुत व्यस्त हैं इन दिनों
भले ही बेरोजगार हूँ मैं शुरू से ही.
फिर भी मैं चाहूंगा कि आप मेरी बात सुनें
जब हर चीज पर आपको अपने विचार बता रहा होऊँ मैं.
आखिरकार, आपने ही बनाया मुझे और फेंक दिया
इस कमबख्त धरती पर.
कितना कुछ सुना था मैनें आपके बारे में
अपने पैदा होने से भी पहले.
वे आपके बारे में इज्जत से जरूर बात करते हैं
मगर बुरी नीयत से.
मुझे भरोसा है कि वे आपको नुकसान पहुंचाना चाहते हैं.
उन्हें डर है बंद गाड़ी से ले जाकर
नरक में ठेल दिए जाने का,
या लालच है उन्हें स्वर्ग में शानदार महलों का.
आपको तो मुझसे बेहतर ही पता होगी यह बात.
यह बहुत कष्टप्रद होगा, है कि नहीं ?
मगर मैं क्यूं परवाह करूँ इस सब की
क्योंकि मैं तो सिर्फ एक दोस्त की हैसियत से आपसे बात करना चाहता था
जिसे फायदे या नुकसान से कोई मतलब नहीं है
और क्योंकि मैं आपसे बात करना चाहता था
दिल से दिल की बात
जैसे कि वे कहते हैं ?
मैनें आपको फोन मिलाना चाहा,
मगर आपका नाम न पा सका
टेलीफोन निर्देशिका में,
और इसलिए मुझे बहुत खुशी होगी
यदि आप मुझे फोन कर लें
और थोड़ा हिम्मत बढ़ाएं मेरी,
मजाकिया लहजे में मुझसे पूछते हुए,
"और क्या हाल-चाल है फदील,
कैसा चल रहा है इस फानी दुनिया में ?"
आप तो मेरा फोन नंबर जानते ही हैं.
जब भी दिल करे मुझे फोन मिलाएं
दिन हो या रात.
मैं ज्यादातर वक़्त घर पर ही बिताता हूँ
पढ़ते-लिखते या टेलीविजन देखते,
और कभी-कभार एकाध झपकी मार लेता हूँ
दुनिया के भविष्य के बारे में सोचते हुए.
सचमुच, कम से कम एक बार तो मिल ही लिया जाय.
आपको भी तो थोड़ा छुट्टी की जरूरत है.
मुझे आपसे बहुत कुछ बताना है,
ढेर सारी बातें जिन्हें मैनें किसी से नहीं बताया है,
ऎसी बातें जिन्हें मैं सिर्फ आप से ही बता सकता हूँ.
और अगर आप चाहेंगे तो मैं आपको अपनी ताज़ा कविताएँ सुनाऊंगा
ताकि आप ईमानदारी से अपनी राय मुझे बता सकें.
हो सकता है हम इंसानियत के भविष्य के बारे में बात करें
या ब्रम्हांड के भविष्य के बारे में
काफी के एक प्याले के साथ.
मेरे पास बहुत सी योजनाएं और विचार हैं.
मुझे लगता है कि वे आपको पसंद आएंगी.
मैं अपने घर पर ही मिलना पसंद करूंगा,
और हर हाल में, आप पता तो जानते ही हैं.
दरवाज़े पर मेरा नाम लिखा है.
बस एक बार घंटी बजा दीजिएगा
और आप भीतर से मेरी आवाज़ सुनेंगे,
"दरवाज़ा खुला है. स्वागत है ईश्वर. अन्दर आ जाइए.
मुझे आपका इंतज़ार था जाने कब से."
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बाद मुद्दत...
ReplyDeleteमज़ा आ गया।
ReplyDeleteउत्तम कथ्य ....यह कविता नहीं लेखिका के एकांत का प्रवेश द्वार है /
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