अरुंधती राय का यह महत्वपूर्ण आलेख आज 22 अगस्त के हिन्दू में प्रकाशित हुआ है...
मैं अन्ना नहीं होना चाहूंगी : अरुंधती राय
(अनुवाद : मनोज पटेल)
उनके तौर-तरीके भले ही गांधीवादी हों मगर उनकी मांगें निश्चित रूप से गांधीवादी नहीं हैं.
जो कुछ भी हम टी. वी. पर देख रहे हैं अगर वह सचमुच क्रान्ति है तो हाल फिलहाल यह सबसे शर्मनाक और समझ में न आने वाली क्रान्ति होगी. इस समय जन लोकपाल बिल के बारे में आपके जो भी सवाल हों उम्मीद है कि आपको ये जवाब मिलेंगे : किसी एक पर निशान लगा लीजिए - (अ) वन्दे मातरम, (ब) भारत माता की जय, (स) इंडिया इज अन्ना, अन्ना इज इंडिया, (द) जय हिंद.
आप यह कह सकते हैं कि, बिलकुल अलग वजहों से और बिलकुल अलग तरीके से, माओवादियों और जन लोकपाल बिल में एक बात सामान्य है. वे दोनों ही भारतीय राज्य को उखाड़ फेंकना चाहते हैं. एक नीचे से ऊपर की ओर काम करते हुए, मुख्यतया सबसे गरीब लोगों से गठित आदिवासी सेना द्वारा छेड़े गए सशस्त्र संघर्ष के जरिए, तो दूसरा ऊपर से नीचे की तरफ काम करते हुए ताजा-ताजा गढ़े गए एक संत के नेतृत्व में, अहिंसक गांधीवादी तरीके से जिसकी सेना में मुख्यतया शहरी और निश्चित रूप से बेहतर ज़िंदगी जी रहे लोग शामिल हैं. (इस दूसरे वाले में सरकार भी खुद को उखाड़ फेंके जाने के लिए हर संभव सहयोग करती है.)
अप्रैल 2011 में, अन्ना हजारे के पहले "आमरण अनशन" के कुछ दिनों बाद भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े घोटालों से, जिसने सरकार की साख को चूर-चूर कर दिया था, जनता का ध्यान हटाने के लिए सरकार ने टीम अन्ना को ("सिविल सोसायटी" ग्रुप ने यही ब्रांड नाम चुना है) नए भ्रष्टाचार विरोधी क़ानून की ड्राफ्टिंग कमेटी में शामिल होने का न्योता दिया. कुछ महीनों बाद ही इस कोशिश को धता बताते हुए उसने अपना खुद का विधेयक संसद में पेश कर दिया जिसमें इतनी कमियाँ थीं कि उसे गंभीरता से लिया ही नहीं जा सकता था.
फिर अपने दूसरे "आमरण अनशन" के लिए तय तारीख 16 अगस्त की सुबह, अनशन शुरू करने या किसी भी तरह का अपराध करने के पहले ही अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. जन लोकपाल बिल के लिए किया जाने वाला संघर्ष अब विरोध करने के अधिकार के लिए संघर्ष और खुद लोकतंत्र के लिए संघर्ष से जुड़ गया. इस 'आजादी की दूसरी लड़ाई' के कुछ ही घंटों के भीतर अन्ना को रिहा कर दिया गया. उन्होंने होशियारी से जेल छोड़ने से इन्कार कर दिया, बतौर एक सम्मानित मेहमान तिहाड़ जेल में बने रहे और किसी सार्वजनिक स्थान पर अनशन करने के अधिकार की मांग करते हुए वहीं पर अपना अनशन शुरू कर दिया. तीन दिनों तक जबकि तमाम लोग और टी.वी. चैनलों की वैन बाहर जमी हुई थीं, टीम अन्ना के सदस्य उच्च सुरक्षा वाली इस जेल में अन्दर-बाहर डोलते रहे और देश भर के टी.वी. चैनलों पर दिखाए जाने के लिए उनके वीडियो सन्देश लेकर आते रहे. (यह सुविधा क्या किसी और को मिल सकती है?) इस बीच दिल्ली नगर निगम के 250 कर्मचारी, 15 ट्रक और 6 जे सी बी मशीनें कीचड़ युक्त रामलीला मैदान को सप्ताहांत के बड़े तमाशे के लिए तैयार करने में दिन रात लगे रहे. अब कीर्तन करती भीड़ और क्रेन पर लगे कैमरों के सामने, भारत के सबसे महंगे डाक्टरों की देख रेख में, बहुप्रतीक्षित अन्ना के आमरण अनशन का तीसरा दौर शुरू हो चुका है. टी.वी. उद्घोषकों ने हमें बताया कि "कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है."
उनके तौर-तरीके गांधीवादी हो सकते हैं मगर अन्ना हजारे की मांगें कतई गांधीवादी नहीं हैं. सत्ता के विकेंद्रीकरण के गांधी जी के विचारों के विपरीत जन लोकपाल बिल एक कठोर भ्रष्टाचार निरोधी क़ानून है जिसमें सावधानीपूर्वक चुने गए लोगों का एक दल हजारों कर्मचारियों वाली एक बहुत बड़ी नौकरशाही के माध्यम से प्रधानमंत्री, न्यायपालिका, संसद सदस्य, और सबसे निचले सरकारी अधिकारी तक यानी पूरी नौकरशाही पर नियंत्रण रखेगा. लोकपाल को जांच करने, निगरानी करने और अभियोजन की शक्तियां प्राप्त होंगी. इस तथ्य के अतिरिक्त कि उसके पास खुद की जेलें नहीं होंगी यह एक स्वतंत्र निजाम की तरह कार्य करेगा, उस मुटाए, गैरजिम्मेदार और भ्रष्ट निजाम के जवाब में जो हमारे पास पहले से ही है. एक की बजाए, बहुत थोड़े से लोगों द्वारा शासित दो व्यवस्थाएं.
यह काम करेगी या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि भ्रष्टाचार के प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या है? क्या भ्रष्टाचार सिर्फ एक कानूनी सवाल, वित्तीय अनियमितता या घूसखोरी का मामला है या एक बेहद असमान समाज में सामाजिक लेन-देन की व्यापकता है जिसमें सत्ता थोड़े से लोगों के हाथों में संकेंद्रित रहती है? मसलन शापिंग मालों के एक शहर की कल्पना करिए जिसकी सड़कों पर फेरी लगाकर सामान बेचना प्रतिबंधित हो. एक फेरी वाली, हल्के के गश्ती सिपाही और नगर पालिका वाले को एक छोटी सी रकम घूस में देती है ताकि वह क़ानून के खिलाफ उन लोगों को अपने सामान बेंच सके जिनकी हैसियत शापिंग मालों में खरीददारी करने की नहीं है. क्या यह बहुत बड़ी बात होगी? क्या भविष्य में उसे लोकपाल के प्रतिनिधियों को भी कुछ देना पड़ेगा? आम लोगों की समस्याओं के समाधान का रास्ता ढांचागत असमानता को दूर करने में है या एक और सत्ता केंद्र खड़ा कर देने में जिसके सामने लोगों को झुकना पड़े.
अन्ना की क्रान्ति का मंच और नाच, आक्रामक राष्ट्रवाद और झंडे लहराना सबकुछ आरक्षण विरोधी प्रदर्शनों, विश्व कप जीत के जुलूसों और परमाणु परीक्षण के जश्नों से उधार लिया हुआ है. वे हमें इशारा करते हैं कि अगर हमने अनशन का समर्थन नहीं किया तो हम 'सच्चे भारतीय' नहीं हैं. चौबीसों घंटे चलने वाले चैनलों ने तय कर लिया है कि देश भर में और कोई खबर दिखाए जाने लायक नहीं है.
यहाँ अनशन का मतलब मणिपुर की सेना को केवल शक की बिना पर हत्या करने का अधिकार देने वाले क़ानून AFSPA के खिलाफ इरोम शर्मिला के अनशन से नहीं है जो दस साल तक चलता रहा (उन्हें अब जबरन भोजन दिया जा रहा है). अनशन का मतलब कोडनकुलम के दस हजार ग्रामीणों द्वारा परमाणु बिजली घर के खिलाफ किए जा रहे क्रमिक अनशन से भी नहीं है जो इस समय भी जारी है. 'जनता' का मतलब मणिपुर की जनता से नहीं है जो इरोम के अनशन का समर्थन करती है. वे हजारों लोग भी इसमें शामिल नहीं हैं जो जगतसिंहपुर या कलिंगनगर या नियमगिरि या बस्तर या जैतपुर में हथियारबंद पुलिसवालों और खनन माफियाओं से मुकाबला कर रहे हैं. 'जनता' से हमारा मतलब भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों और नर्मदा घाटी के बांधों के विस्थापितों से भी नहीं होता. अपनी जमीन के अधिग्रहण का प्रतिरोध कर रहे नोयडा या पुणे या हरियाणा या देश में कहीं के भी किसान 'जनता' नहीं हैं.
'जनता' का मतलब सिर्फ उन दर्शकों से है जो 74 साल के उस बुजुर्गवार का तमाशा देखने जुटी हुई है जो धमकी दे रहे हैं कि वे भूखे मर जाएंगे यदि उनका जन लोकपाल बिल संसद में पेश करके पास नहीं किया जाता. वे दसियों हजार लोग 'जनता' हैं जिन्हें हमारे टी.वी. चैनलों ने करिश्माई ढंग से लाखों में गुणित कर दिया है, ठीक वैसे ही जैसे ईसा मसीह ने भूखों को भोजन कराने के लिए मछलियों और रोटी को कई गुना कर दिया था. "एक अरब लोगों की आवाज़" हमें बताया गया. "इंडिया इज अन्ना."
वह सचमुच कौन हैं, यह नए संत, जनता की यह आवाज़? आश्चर्यजनक रूप से हमने उन्हें जरूरी मुद्दों पर कुछ भी बोलते हुए नहीं सुना है. अपने पड़ोस में किसानों की आत्महत्याओं के मामले पर या थोड़ा दूर आपरेशन ग्रीन हंट पर, सिंगूर, नंदीग्राम, लालगढ़ पर, पास्को, किसानों के आन्दोलन या सेज के अभिशाप पर, इनमें से किसी भी मुद्दे पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है. शायद मध्य भारत के वनों में सेना उतारने की सरकार की योजना पर भी वे कोई राय नहीं रखते.
हालांकि वे राज ठाकरे के मराठी माणूस गैर-प्रान्तवासी द्वेष का समर्थन करते हैं और वे गुजरात के मुख्यमंत्री के विकास माडल की तारीफ़ भी कर चुके हैं जिन्होनें 2002 में मुस्लिमों की सामूहिक हत्याओं का इंतजाम किया था. (अन्ना ने लोगों के कड़े विरोध के बाद अपना वह बयान वापस ले लिया था मगर संभवतः अपनी वह सराहना नहीं.)
इतने हंगामे के बावजूद गंभीर पत्रकारों ने वह काम किया है जो पत्रकार किया करते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ अन्ना के पुराने रिश्तों की स्याह कहानी के बारे में अब हम जानते हैं. अन्ना के ग्राम समाज रालेगान सिद्धि का अध्ययन करने वाले मुकुल शर्मा से हमने सुना है कि पिछले 25 सालों से वहां ग्राम पंचायत या सहकारी समिति के चुनाव नहीं हुए हैं. 'हरिजनों' के प्रति अन्ना के रुख को हम जानते हैं : "महात्मा गांधी का विचार था कि हर गाँव में एक चमार, एक सुनार, एक लुहार होने चाहिए और इसी तरह से और लोग भी. उन सभी को अपना काम अपनी भूमिका और अपने पेशे के हिसाब से करना चाहिए, इस तरह से हर गाँव आत्म-निर्भर हो जाएगा. रालेगान सिद्धि में हम यही तरीका आजमा रहे हैं." क्या यह आश्चर्यजनक है कि टीम अन्ना के सदस्य आरक्षण विरोधी (और योग्यता समर्थक) आन्दोलन यूथ फार इक्वेलिटी से भी जुड़े रहे हैं? इस अभियान की बागडोर उनलोगों के हाथ में है जो ऐसे भारी आर्थिक अनुदान पाने वाले गैर सरकारी संगठनों को चलाते हैं जिनके दानदाताओं में कोका कोला और लेहमन ब्रदर्स भी शामिल हैं. टीम अन्ना के मुख्य सदस्यों में से अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया द्वारा चलाए जाने वाले कबीर को पिछले तीन सालों में फोर्ड फाउंडेशन से 400000 डालर मिल चुके हैं. इंडिया अगेंस्ट करप्शन अभियान के अंशदाताओं में ऎसी भारतीय कम्पनियां और संस्थान शामिल हैं जिनके पास अल्युमिनियम कारखाने हैं, जो बंदरगाह और सेज बनाते हैं, जिनके पास भू-संपदा के कारोबार हैं और जो करोड़ों करोड़ रूपए के वित्तीय साम्राज्य वाले राजनीतिकों से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध हैं. उनमें से कुछ के खिलाफ भ्रष्टाचार एवं अन्य अपराधों की जांच भी चल रही है. आखिर वे इतने उत्साह में क्यों हैं?
याद रखिए कि विकीलीक्स द्वारा किए गए शर्मनाक खुलासों और एक के बाद दूसरे घोटालों के उजागर होने के समय ही जन लोकपाल बिल के अभियान ने भी जोर पकड़ा. इन घोटालों में 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला भी था जिसमें बड़े कारपोरेशनों, वरिष्ठ पत्रकारों, सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस तथा भाजपा के नेताओं ने तमाम तरीके से साठ-गाँठ करके सरकारी खजाने का हजारों करोड़ रूपया चूस लिया. सालों में पहली बार पत्रकार और लाबीइंग करने वाले कलंकित हुए और ऐसा लगा कि कारपोरेट इंडिया के कुछ प्रमुख नायक जेल के सींखचों के पीछे होंगे. जनता के भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन के लिए बिल्कुल सटीक समय. मगर क्या सचमुच?
ऐसे समय में जब राज्य अपने परम्परागत कर्तव्यों से पीछे हटता जा रहा है और निगम और गैर सरकारी संगठन सरकार के क्रिया कलापों को अपने हाथ में ले रहे हैं (जल एवं विद्युत् आपूर्ति, परिवहन, दूरसंचार, खनन, स्वास्थ्य, शिक्षा); ऐसे समय में जब कारपोरेट के स्वामित्व वाली मीडिया की डरावनी ताकत और पहुँच लोगों की कल्पना शक्ति को नियंत्रित करने की कोशिश में लगी है; किसी को सोचना चाहिए कि ये संस्थान भी -- निगम, मीडिया और गैर सरकारी संगठन -- लोकपाल के अधिकार-क्षेत्र में शामिल किए जाने चाहिए. इसकी बजाए प्रस्तावित विधेयक उन्हें पूरी तरह से छोड़ देता है.
अब औरों से ज्यादा तेज चिल्लाने से, ऐसे अभियान को चलाने से जिसके निशाने पर सिर्फ दुष्ट नेता और सरकारी भ्रष्टाचार ही हो, बड़ी चालाकी से उन्होंने खुद को फंदे से निकाल लिया है. इससे भी बदतर यह कि केवल सरकार को राक्षस बताकर उन्होंने अपने लिए एक सिंहासन का निर्माण कर लिया है, जिसपर बैठकर वे सार्वजनिक क्षेत्र से राज्य के और पीछे हटने और दूसरे दौर के सुधारों को लागू करने की मांग कर सकते हैं -- और अधिक निजीकरण, आधारभूत संरचना और भारत के प्राकृतिक संसाधनों तक और अधिक पहुँच. ज्यादा समय नहीं लगेगा जब कारपोरेट भ्रष्टाचार को कानूनी दर्जा देकर उसका नाम लाबीइंग शुल्क कर दिया जाएगा.
क्या ऎसी नीतियों को मजबूत करने से जो उन्हें गरीब बनाती जा रही है और इस देश को गृह युद्ध की तरफ धकेल रही है, 20 रूपए प्रतिदिन पर गुजर कर रहे तिरासी करोड़ लोगों का वाकई कोई भला होगा?
यह डरावना संकट भारत के प्रतिनिधिक लोकतंत्र के पूरी तरह से असफल होने की वजह से पैदा हुआ है. इसमें विधायिका का गठन अपराधियों और धनाढ्य राजनीतिकों से हो रहा है जो जनता की नुमाइन्द्गी करना बंद कर चुके हैं. इसमें एक भी ऐसा लोकतांत्रिक संस्थान नहीं है जो आम जनता के लिए सुगम हो. झंडे लहराए जाने से बेवकूफ मत बनिए. हम भारत को आधिपत्य के लिए एक ऐसे युद्ध में बंटते देख रहे हैं जो उतना ही घातक है जितना अफगानिस्तान के युद्ध नेताओं में छिड़ने वाली कोई जंग. बस यहाँ दांव पर बहुत कुछ है, बहुत कुछ.
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एक जरूरी प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार...
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ReplyDeleteशुक्रिया ,बेहतर अनुवाद ,बेहतर प्रस्तुति !
ReplyDeleteअरुंधती हमेशा की तरह इस बार तर्कों का नहीं कुतर्कों का सहारा ले रही हैं. उन्हें एक बात पता होनी चाहिए की जिस कबीर को अरविन्द और मनीष का संगठन बता रही हैं उससे अरविन्द का लेना देना नहीं है, वह संगठन मनीष का है जो सुचना के अधिकार के जनजागरण और डॉक्युमेंटेशन का काम करता है यानि उसकी सफलता की कहानियों पर फिल्में और डॉक्यूमेंट्रीयां बनना जिसके लिए पैसे की ज़रूरत हुन्हे पड़ती होगी. अरविन्द के संगठन का नाम परिवर्तन है और मैग्सेसे पुरस्कार की राशि से उन्होंने जो ट्रस्ट बनाया है उसका नाम पब्लिक काज रिसर्च फाउन्डेशन है जो जन लोकपाल से पहले स्वराज अभियान पर काम कर रहा था. अन्ना हजारे का तरीका गलत हो सकता है लेकिन जन लोकपाल की मांग और अरविन्द वगैरह लोगों ने जो ड्राफ्ट बनाया है उसका पास होना भ्रष्टाचार पर अंकुश ज़रूर लगायेगा, ऐसा ड्राफ्ट पढ़ने के तुरंत बाद कहा जा सकता है.
ReplyDeleteमै पूरी तरह से अरुंधती जी की बात से सहमत नहीं ! मुझे समझ नहीं आता की संसद बड़ा है या सांसद , यह कैसी लोकतंत्र की गरिमा है की हम प्रतिकार करे तो उसे नाटक या दिखावा ! मओवादियो की कार्य प्रणाली और जनलोकपाल बील में पता नहीं कहा से समानता दिख पड़ती है अरुंधती जी से की जन्लोक्पाल उन्हें भारतीय राज्य को उखाड़ फेकना चाहते है ! कितने दुःख की तो बात है की हमारे द्वारा चुने लोग हमारी बात नहीं सुनते ! खैर बड़ी साफ़ बात ही जो जिन परिस्थितियों से गुजरता है उसका सुख अथवा दुःख वही समझ पाता है ! मै तो कही से नहीं देख रही की इस आन्दोलन में किसी एक वर्ग के लोग जुड़े हो ! कौन नहीं चाहेगा इस शोषण से मुक्ति ? सिविल सोसाइटी नाम से बाजार में क्या बिकता है मैंने नहीं देखा और शायद आपने भी न देखा हो इस लक्शानात्मक उक्ति के प्रयोग का अभिप्राय क्या है ? यह दिखाना की मै खुली मानसिकता की हू, या सबसे बड़ी सुधारवादी मै ही हू ! खैर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो सबको है ! कोई ग्लास को आधा भरा हुआ पाता है तो कोई खाली ! मुझे तो लगता है जितना महत्व किसी प्रधान मंत्री का है उससे कमतर महत्व एक मजदूर के जीवन को नहीं आँका जा सकता , अन्ना के आन्दोलन को आरक्षण से जोड़ कर देखना तो बिलकुल गलत है ! यह लेख पढवाने हेतु धन्यवाद !
ReplyDeleteमै पूरी तरह से अरुंधती जी की बात से सहमत नहीं ! मुझे समझ नहीं आता की संसद बड़ा है या सांसद , यह कैसी लोकतंत्र की गरिमा है की हम प्रतिकार करे तो उसे नाटक या दिखावा ! मओवादियो की कार्य प्रणाली और जनलोकपाल बील में पता नहीं कहा से समानता दिख पड़ती है अरुंधती जी से की जन्लोक्पाल उन्हें भारतीय राज्य को उखाड़ फेकना चाहते है ! कितने दुःख की तो बात है की हमारे द्वारा चुने लोग हमारी बात नहीं सुनते ! खैर बड़ी साफ़ बात ही जो जिन परिस्थितियों से गुजरता है उसका सुख अथवा दुःख वही समझ पाता है ! मै तो कही से नहीं देख रही की इस आन्दोलन में किसी एक वर्ग के लोग जुड़े हो ! कौन नहीं चाहेगा इस शोषण से मुक्ति ? सिविल सोसाइटी नाम से बाजार में क्या बिकता है मैंने नहीं देखा और शायद आपने भी न देखा हो इस लक्शानात्मक उक्ति के प्रयोग का अभिप्राय क्या है ? यह दिखाना की मै खुली मानसिकता की हू, या सबसे बड़ी सुधारवादी मै ही हू ! खैर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो सबको है ! कोई ग्लास को आधा भरा हुआ पाता है तो कोई खाली ! मुझे तो लगता है जितना महत्व किसी प्रधान मंत्री का है उससे कमतर महत्व एक मजदूर के जीवन को नहीं आँका जा सकता , अन्ना के आन्दोलन को आरक्षण से जोड़ कर देखना तो बिलकुल गलत है ! यह लेख पढवाने हेतु धन्यवाद !
ReplyDeleteएक बार फिर अरुंधती ने उतनी ही मजबूती और तार्किकता से अपना पक्ष रखा है. सत्ता के विकेन्द्रीकरण की जगह एक अनियंत्रित तानाशाह के हाथों में अपरिमित अधिकार दे देना लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है. सहज अनुवाद से इसे हिन्दी वालों तक पहुंचाने का आभार. संभव हो तो इसे समयांतर को ज़रूर भेज दें.
ReplyDeleteचाहे कितनी ही असहमतियां हो फ़िर भी यह आलेख बहुत कुछ सोचने और समझने पर तो मजबूर करता ही है..साझा करने के लिए आभार!
ReplyDeleteचाहे कितनी ही असहमतियां हो फ़िर भी यह आलेख बहुत कुछ सोचने और समझने पर तो मजबूर करता ही है..साझा करने के लिए आभार!
ReplyDeleteसंसदीय लोकतंत्र पर बढ़ते हुए खतरे को देखते हुए हर नागरिक को सजग रहना है ! इसी सन्दर्भ में अरुंधती राय का यह लेख एक अच्छा प्रयास है ! मनोज जी को प्रस्तुति केलिए धन्यवाद !
ReplyDeleteहालांकि आलेख विचारणीय है कितु हमे यह सोचने पर मजबूर होना पडता है सरकार की रचना करने वाली यह लोकतांत्रिक सरकार क्या अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रही है। जैसे महंगाई पर केवल यह कथन कई सालों से कि हमारे पास कोई जादू की छडी नहीं है। तो फिर नियंत्रण करेगा कौन।
ReplyDeleteदूसरी बात अलग है कि अन्ना के आन्दोलन के लिये अलग से कहा ही जा रहा है कि पर्दे के पीछे कॉर्पोरेट है, आर एस एस इत्यादि है। किंतु क्या भ्रष्टाचार तो एक अहम मुद्दा नही है?
तीसरी बात यह कि सरकार के बेल में खामियाँ तो क्या टीम अन्ना का बिल फुल प्रूफ है? यहाँ एक ही व्यक्ति के हाथों शक्ति देने की बात है जो कालांतर में तानाशाह नहीं हो सकता क्या?
कई सवाल है?
और सही बात यह है कि हमारे पूरे तंत्र मे जब तक पारदर्शिता नही आयेगी क्या भ्रष्टाचार को लेकर कोई भी बिल कारगर होगा।
बहुत ज़रूरी काम था इसका अनुवाद करना. आभार आपका.
ReplyDeleteअरुंधती का एजेंडा भी अब छिपा तो नहीं रह गया है. सभी जानते हैं कि वे किसके द्वारा पोषित हैं और उनकी प्रतिक्रियाओं का अनुमान लगाना भी अब सहज है.
अनुवाद के लिए शुक्रिया दोस्त। इस लेख को पढ़ कर अपनी राय दूंगा।
ReplyDeleteइतनी शीघ्रता से अनुवाद की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteइतनी शीघ्रता से अनुवाद की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteArundhati has raised some valid points, but I am happy with the fact that people chose to come together and they are on street...
ReplyDeleteAlso, any preplaned things often do not work in any mass moment, but policies and politics itself attains shape.
मैं अन्ना नहीं होना चाहूंगी'- अरुंधती राय। अरुंधती राय ने हिंदू में जो यह लेख लिखा है वह सही है कि वह जीवन में न कभी अन्ना हो सकती है और न ही अन्ना के ऊंचे आदर्शों को छू सकती है। वह अन्ना के पैर के धूल के बराबर भी नहीं हो सकती। अन्ना के अंदर देश के लिए मर मिटने का जज्बा है, लेकिन इस लेख के अनुसार, अरुंधती को तो वेंदे मातरम, भारत माता की जय, इंडिया इन अन्ना और जय हिंद शब्दों से ही चिढ़ है। अन्ना के विरोध में वह इतनी अंधी हो चुकी है कि जिन माओवादियों के पक्ष में वह खड़ी रहती है आज उन्हीं के समक्ष अन्ना के लोकपाल आंदोलन को खड़ा कर दिया और उसे भारतीय राज्य को उखाड़ फेंकने वाला करार दिया। कश्मीरी अलगाववादियों के पक्ष में खड़ी होकर वह जता चुकी है कि वह 'भारतीय राज्य' की अवधारणा के ही खिलाफ है, लेकिन आज अन्ना को नीचा दिखाने के लिए वह उसी 'भारतीय राज्य' को ढाल बनाने की कोशिश कर रही है।
ReplyDeleteयह साबित हो चुका है कि आईएसआई एजेंट पई अरुंधती और इस जैसी तथाकथित बुद्धिजीवियों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करती रही है। अब यदि अन्ना देश को जोड़ने का काम कर रहे हैं तो देश को तोड़ने की अरुंधती जैसी तथाकथित बुद्धिजीवियों की योजनाएं सफल कैसे होंगी ? यही इनकी समस्या है इसलिए यह अन्ना के विरोध में उतर आई है।
LEKHIKA KA VICHAR PURNATAYA DUSHIT VICHARDHARA SE PRERIT LAGATA HAI...... MAI LEKHIKA KE KUTARKON SE KATAI SAHAMAT NAHI HO SAKATA...
ReplyDeletenice
ReplyDeleteसिर्फ एक पुरस्कार के बदले अरुंधती अपने आप को ज्यादा हुषार समझाती है और कोई अच्छा कर रहा तो विरोध करती है. इस औरत ने देश के लिये क्या योगदान दिया? आण्णा के खिलाफ बात करने का इसको अधिकार नही. अगर आन्ना का गलत है तो सही क्या है? आपने ज्यो अन्याय के उदहारण दिये उस के खिलाफ आपने खुद क्या कीया? ये इसने लिखना टाल दीया. सिर्फ अन्याय की लम्बी सूचि देकर कम चलता नही. और भ्रष्ट्र कारभार चालू रहे इसलिए आप खुद अनशन पर बैठे. आन्ना कमसे कम कार्य तो क़र रहे है. आपकी तरह सिर्फ पीले पत्रिकावाले थ्री पेज पर चमकाने का काम नही करते . देश को पाकिस्थान से धोका नही अलबता आप जैसे इंडियन ( भारतीय नही) बुद्धिवादी लोगोंसे ज्यादा धोका है.
ReplyDeleteएक बार अरुंधती ने बता दिया की उनकी सोच कहा तक जा सकती है इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकता हु
ReplyDeleteमै पूरी तरह से अरुंधती जी की बात से सहमत नहीं !
ReplyDeleteदेख तो दिल के जां से उठता है..
ReplyDeleteये धुआं सा कहाँ से उठता है.......?
शुक्रिया मनोज पटेल। आपने महत्वपूर्ण काम किया है। हिंदी पब्लिक स्फियर में इस आलेख को लाना जरूरी था।
ReplyDeleteमैं, वैसे तो अरुंधती रॉय का मुखर विरोधी हूँ, अन्य मुद्दों को लेकर .. लेकिन इस लेख को लेकर मैं उनसे शत-प्रतिशत सहमत हूँ ..मनोज जी बधाई के पात्र हैं ..
ReplyDeletemai puri tarah tarah aapse sahmat hu anna ki kucfh maange savidhan virodhi hai
ReplyDeletemai aap se puri tarah sahmat hu anna ki kuch maange galat hai
ReplyDeleteanuvadak isee tarah ke bade kaam karta hai. badhai. lekh vicharaneey hai. kuchh athyon par matbhed ho sakte hain, magar kuchh hamen sochane par bhi badhy karte hai,
ReplyDeleteअरुन्धती राय भी पुरी तरह सही नही हैं। आज बुद्धिजिवी वही है जो भारत विरोधी बात करता है। उनकी मान ले तो कश्मीर पाकिस्तान को गिफ़्त मे दे दिया जाय। बेबुनियाद हैं उनके तर्क। अनुवाद अचछा है
ReplyDeleteमनोज जी का।
iam agree with points of arndhatu roy. she raised notable point.
ReplyDeleteजैसे की कुछ टिप्पणियों में साफ है की उनकी जानकारी ही गलत है अन्ना टीम के बारे में गलत जानकारी दे रही है कश्मीर को लेकर वो जिस राज्य के खिलाफ जाती है आज वही इस मुद्दे पोर उन्हें ठीक लगा रहा है और फिर नक्सलियों से इस आन्दोलन की तुलना करना | उनके बारे में तो सभी को पता है हम क्या कहे सारे नियम कानून तोड़ कर अतिक्रमण कर जंगल में अपना शानदार बागला बनने वाली आदिवासियों के हको की बात करती है दूसरो को सुधारने की बात करने वाली अपने बारे में बताये की वो कितनी ईमानदार है |
ReplyDeletei think you are getting old and go and sit down at home ... you ppls are just thinking how everything is going well..
ReplyDeleteYou just live for Awards and not at all.. you just think whatever did in your life ... for peoples i think you did 100% but ppl did nt get benefit of 50 % ?? this is What anna want to say Dimag lagayo kuch
Desh me savidhan k nam pe jo khal 64 salo se chal raha hai wo kya kam bura hai jo ap log anna ko gandhi wadi hai ya nahi hai bahas me uljha rahe hai. unka tarika gandhi wadi hai aur vichar bhagat sing ki tarah us se kya fark padta hai . sawal ye hai ki un ki niyat desh k liye saf hai. un k kuch vichar galat ho sak te hai lakin soch sahi hai waise bhi 1200000000 ki abadi me logo k vichar to alag honge hi.
ReplyDeleteanna ne ye bata diya hai ki paisa hi sab kuch nahi . wo bhuke pet hai aur wo khus hai desh ki janta unke sath hai . wahi black money wolo ko rat me neend nahi aarahi hogi.kuch to mony is desh se us desh me transfer kar rahe hai.
Bhrastchariyo ko ye sochna chahiye ki uper wala to jindgi diya hai wo simit hai aur ye paisa property yahi rah jaygi kisi kam nahi aygi. bade bade raja maharaja nahi rahe to ye kya chij hai.
sharmnak pahlu ye hai ki kasab k piche itna paisa barbad kiya gaya. aur wo jail me aish kar raha hai. idher anna ko protest ka liye jail.
ब्रिटिश log paisa landan le gaye ab ye neta swizerland me paisa le ja rahe hai.aur sarkar name ta nahi bata rahi haui. sarkar ne ya kaha hai ki september me swiss me jama paise k maliko ka name aa jayga . wo is liye ky ki tab tak unka paisa kahi aur chala jayga. aur fesange chote mote log.
Mere vichar se jab hum car ka registration karat hai to 1 lake k piche 3000/ rs lagta hai.is tarah 5 lakh ki gadi me 15000/ rs lage ga.aur jab koi 500 ki chori karta hai to bhi wahi saja koi 5000 rs ki chori karta hai tobhi wahi saja.
aur koi 1 lakh carod ka ghota la karta hai to us ki bhio wahi saja. saja % me honi chahiye.
Jimmedar padme baithe logo ko jyada saja honi chahiye....tab shayad lok pal ki bhi jarurat na pade asebhi is desh me itne neta mantri aur burocrats kam hai kya.
अन्ना banne k liye desh prem chahiye . ap अरुंधति राय
hi bane rahiye. mai hu अन्ना
मैं अन्ना के जन आन्दोलन की मांग को लेकर आश्वस्त नहीं हूँ....
ReplyDeleteऔर मैं ये भी नहीं समझता कि यह लोकपाल विधेयक भ्रष्टाचार को कम करने में कुछ सहायक सिद्ध होगा....
उलटे यह जरूर हो सकता है कि भ्रष्टाचार का एक और ऐसा दौर शुरू हो, जिसकी जड़ें और भी गहरी हों....
और जिसका पता लगाया जा पाना ही नामुमकिन हो.....
हमारे देश में यह अंधी पत्रकारिता और मुखौटेनुमा लोकतंत्र का युग है....
यह भ्रम ही है कि जनता द्वार चुनी सरकार शासन कर रही है...
आज के दौर में हम पूंजीवादी ताकतों और उसके अमेरिका जैसे वैश्विक आकाओं से शासित और संचालित हो रहे हैं....यह हमारा दुर्भाग्य है, लेकिन सच यही है, कि इस देश में गरीबों, मजदूरों और किसानों क़ी सुननेवाला कोई नहीं रह गया है...हाँ, उन लोगों की तादाद बहुत बढ़ गई है जो उनका सर्वस्व छीन कर बाँट लेना चाहते है....
जहां तक अरुंधती के लेख की बात है...उसका विरोध करने वालों ने कोई ठोस तर्क पेश नहीं किये....यदि लोग अरुंधती को देश विरोधी मानते भी हैं तो मैं देश के पक्ष में खड़ा होने से ज्यादा जरूरी समझता हूँ मनुष्यता और मानवाधिकारों के पक्ष में खड़ा होना...
पहला - टीवी पर आप देख रहीं है। लोग रामलीला मैदान में हैं। अन्य जवाब भी हैं आपने अपनी सुविधा से चार चुन लिए हैं। क्या अपने जनता से पूछा या टीवी पर कैमरों के सामने दिये जवाबों को ही उठा लिया। कैमरे के सामने थोड़ा नाटकीय सभी हो जाते हैं।
ReplyDeleteमैं लोकपाल के बारे में जवाब दे सकता हूँ पर कैमरा आयेगा तो वंदे मातरम ही कहूँगा। में संघी नहीं हू पर तुष्टीकरणवादी ध्र्म्निरपेक्ष भी नहीं हूँ। आप देश के प्रति निष्ठा और विचारों को किसी एक ठप्पे में नहीं समेट सकते। फिर ऐसे हर आंदोलन से लोकतन्त्र न केवल मजबूत होगा बल्कि जनता के अंदर भी एक भावना पैदा होती है जो अंततः उस कर्तव्य भावना को जागती है जो लोगों को सामान्य दायित्व पूरे करने के लिए प्रेरित करती है।
अरुंधती जी एक बात नहीं समझ आयी। वैसे तो आप माओवाद के प्रति सहानुभूति दिखातीं (रखना अलग बात है) हैं। वह आंदोलन जनांदोलन है। लेकिन फिर अन्ना के आंदोलन को राज्य विरोधी बताकर इसे भी माओवाद के बराबर खड़ा कर दिया॰ जब माओवाद राज्य को नहीं मानता और आप राज्य को शोषण की मशीन मानतीं हैं तो यहाँ राज्य के विरोध की इतनी चिंता क्यूँ?
आपने अनशन और जनता की परिभाषा दी बड़ी कृपा की पर देखिये तो ज़रा आपने केवल उन्हीं आंदोलनों को जनांदोलन माना है जिन्हें आपने समर्थन दिया है। और जनता भी आप उन्हें ही मानतीं हैं जो आपङ्के आंदोलनों में शामिल हुये थे। यह सुविधाजनक तरीका है अपनी बात कहने का। क्या जनांदोलन नाम का कॉपीराइट वामपंथ के ही पास है? जनता केवल सर्वहारा वर्ग ही है? जनांदोलन करने का अधिकार क्या केवल सर्वहारा का ही है, मध्य वर्ग की कोई समस्याएँ ही नहीं हैं, और उन समस्याओं पर क्या वह सड़कों पर नहीं उतार सकता? और अगर वह उतार आए तो वह क्यूँ गलत है।
लोकपाल बिल पर जवाब तो और भी हैं पर आपने टीवी देख कर अपनी सुविधा से खुद के द्वारा लेबल लगा कर बदनाम किए नारे ही चुन लिए हैं। मैं तो 21 अगस्त को वहाँ था और खूब जवाब सुने लेकिन आपको वंदे मातरम ही सुनाई दिया तो क्या करें। कैमरे पर आते ही लोग नारेबाजी करते थे। और वंदे मातरम, भारत माता की जय और जय हिन्द में आपको समप्रदयिकता दिखती होगी मुझे नहीं। मुझे इसमें देश प्रेम दिखता है।
जहां तक टीम अन्ना को वीडियो संदेशों की सुविधा की बात है तो यह सुविधा तो आपको भी मिली हुयी है वरना कौन सा कश्मीरी अलगाववादी यह कल्पना कर सकता है की उसकी विचारधारा को भारतीय मीडिया में इतनी कवरेज मिलेगी विशेष कर उन्हें 24 घंटों वाले खबरिया चैनलों पर? आपको तो गिरफ्तारी से मुक्ति की भी सुविधा है। कोई और होता जो कश्मीर पर ऐसा बयान देता तो जेल होता।
बेशक अन्न ने जिन समस्याओं को आपने गिनाया है उनकी जड़ पर प्रहार किया है। पोसको, नदीग्राम आदि सभी भ्रष्टाचार की उपज हैं। निगमों और नेताओं ने मिल कर ऐसी नीतियाँ बना ली हैं जिनसे यह समस्याएँ पैदा हो रहीं हैं - भूमि अधिग्रहण, खनन आदि। नेता नीति बनाते हैं पर उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं, अफसर की भी नहीं। तो आखिर लोकपाल ही तो इन सांसदों की जवाब देही तैयार करेगा?
और आखिर में आपने बिलकुल सही बातें कहीं है की भारत का लोकतन्त्र सुधार चाहता है और यह सुधार लोकपाल से नहीं आयेगा बल्कि ऐसे ही जनांदोलनों से आयेगा। टीम अन्ना का अगर कोई छुपा अजेंडा है तो जनता उन्हें भी सबक सीखा देगी। अरुंधती में जनता के साथ हूँ और आप भी जनता की भूमिका ही देखिये।
इस लेख को हिन्दी में उपलब्ध कराकर आपने सराहनीय कार्य किया है मनोज जी. मौजूदा घटनाक्रम में एक जरूरी हस्तक्षेप है यह लेख. बधाई
ReplyDeleteमनोज जी आपका आभार इस महत्वपूर्ण आलेख के अनुवाद का । अरुंधति राय ने मानवीयता के वैश्विक फ़लक पर बात रखी है जो बेहद जरूरी है ।
ReplyDeleteमैं अरुंधती रॉय के साथ सहमत हूँ जो उसने कहा.अन्ना टीम के रास्ते पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है और स्वागत नहीं किया जा सकता है
ReplyDeleteHar aadmi ko apne tark sahi lagte hai or dusro ko sak se hi dekha jata hai.
ReplyDeleteएक निराश करने वाला लेख. अरुंधति से इससे बेहतर और इंगेजिंग बहसों की उम्मीद रहती है और उन्होंने शायद पहली बार निराश किया. इतना कन्फ्यूजन और कौन किसके साथ मिलकर षड्यंत्र कर रहा है, अरुंधति को स्पष्ट नहीं हो पाया. अन्ना आंदोलन की सीमाओं और वर्ग चरित्र के बारे में उनका दृष्टिकोण अत्यंत स्टेटिक है. षड्यंत्रवादी सिद्धांत बात करने का सबसे कमजोर तरीका होता है. जाहिर है, अरुंधति तक ये बातें पहुंचाने के लिए अंग्रेजी में लिखना पड़ेगा.
ReplyDeletegood first than bad also (for this article)
ReplyDeleteanna is on the way ,it is right or wrong do not think,
koi to hay jo badalnay kay liya aaya hay
ARUNDHATI JI KO ITNE COMMENT MILNE KE BAAD SHAYAD SAMAH AA GAYA HOGA KI EK VYAKTI BINA GUN BINA DANDE KE HI YEH SARI MUHIM SHUDH AUR DESH BHAKT LOGO KE SATH EK AAM ADMI KE LIYE ANSHAN KAR RAHA HAI JO EK BHARASHT SARKAR KE BHARASHT MANTRION JO DESH KA SARA DHAN LOOT RAHE HAIN DESH KO KHOKLA KAR RAHE HAIN AISE LOGO KO SABAK SIKHANE KE LIYE JANLOKPAL KO LANA JARURI HO GAYA HAI AGAR SARKAR KI NIYAT THIK HAI TO USE KHUD IS BILL KO LANA CHAHIYE THA TAB KISI ANNA KI JARURAT LOGON KO NAHI PADTI.
ReplyDeleteअनुवाद बहुत अछ्छा है . लेख की तुलना में तो और भी बहुत अछ्छा .
ReplyDeleteअरुंधती के इस लेख की बिन्दुवार और तार्किक तरीके से चीर-फ़ाड़ इस लेख में कर दी गई है… इसे अवश्य पढ़ें… इस “मानसिक बीमार” महिला को सटीक जवाब दिए गए हैं उधर…
ReplyDeletehttp://clearvisor.wordpress.com/2011/08/23/why-i%E2%80%99d-rather-be-anna-than-arundhati/
लोकतंत्र में हो रही उठापटक के चलते
ReplyDeleteजागरूक रहना भी हमारा दायित्व
अतः इस पोस्ट को देने के लिए आभार
मनोज भाई हार्दिक आभार . आपने इस ज़रूरी लेख का सही समय पर अनुवाद किया है.
ReplyDeleteja ki rahi bhavna jaisi, prabhu murat dekhain jin tesi....
ReplyDeleteमनोज जी सही समय पर यह अनुवाद आप ने प्रस्तुत किया है. इस मुद्दे पर अरुंधती की आवाज़ को गौर से सुना जाना चाहिए. भ्रष्टाचार इस देश की बड़ी समस्या है.. इसके निदान के लिए और गम्भीरता की जरूरत है.
ReplyDeletetranslation is good but arundhati is .....not i think so . she loves to express but this is not right time and right person to be targeted.
ReplyDeletedekhiye arundhati ji bat aaj yeh nahi ki imandar koun hai ya jo log is andolan ka samarthan kar rahe hai ve bhi doodh ke dhule hai bat hai system ki agar sudhar ki sambhavna hai to iska virodh kyon fir bat yeh bhi hai ki isase power batega aur kuchh log jyada powerful ho jayenge yeh bat bhi sahi hai ngo ka power badhne ke dar hai par in sab bato ko door rakhkar yeh socha jay ki yeh ek bada andolan khada hua aur desh ke sabhi nagriko ko yeh sochane pe majboor kiya ki corruption ke against ladai ki jaye.
ReplyDeleteEk baar ek aadmi ek chitra banakar bahut bare kalakaar ke paas le gaya aur puchh ki" bataiye chitra achha bana hai? agar isme kuchh galtiyan hai to please hume bataiye". chitrkaar ne kaha " bete is chitr ko shahar ke chowk par tang do aur uspar ye likh do 'aaplogon ko jaha bhi galat lagta ho pls tick kar dijiye'". Us aadmi ne wahi kiya aur jab dusre din chitr lene gaya to paya ki aisa koi bhi jagah nahi bacha tha jaha par 'tick' nahi laga ho. wo aadmi ghor nirasha me dub gaya aur fir chitrkaar ke paas gaya isbaar chitrkaar ne bola "ise fir chowk pe tang do aur isbaar likho ki'is chitr me jaha galti hai use pls sudhaar de'". wo aadmi wahi kiya aur jab chitr lene dusre din gaya to paya ki kisi ne bhi koi sudhar nahi bataya hua tha...
ReplyDeleteTo mera kahne ka matlab ye hai ki kisi aadmi ke kiye gaye kary ko galat kahna aasan hai galat kahnewala ye to bata de ki sahi kya hai.
KAHIN AISA TO NAHI KI ARUNDHATI ROY IS AANDOLAN PAR BHI KUCHH LIKHKAR KOI PRIZE LENA CHAH RAHI HAI.
MERE KHYAL SE TO ISE MENTAL HOSPITAL BHEJNA CHAHIYE.
BAAT YE NAHI KI CORRUPTION MITAANE KA TARIKA GALAT HAI YA SAHI, BAAT YE HAI KI JO AAMLOGON KO AADAT SI HO GAYI THI HAREK GHOTALE NEWS KE SAATH JINE KI USKE VIRODH ME KUCHH TO AA RAHI HAI.
अन्ना या किसी और पर टिप्पणी करने से पहले अरुंधती अपने गिरेबान में तो झांके कि वो कितनी देशभक्त है???
ReplyDeletearun dhati ray ji aap jis samaaj ko aina dikha rahi hai un ki aankh pahle se band kr di gai hai un ko aap kuch bhi nahi dikha sakti ya koi bhi sachchai bata nahisakti .yah kaiwal 1 bhir hai jo mainde(bhair) ki tarah hai jis ka sardar jaha ja ta hai baki k sab bhi wahi jate hai chahe woh gaddha(well) hi kio na ho
ReplyDeleteArun Dhuti Roy Aap galat ho Anna is right, aaj nahi to kabhi nahi.
ReplyDeletesahi kaha , desh ki satta kuch logo ke pass chali jayengi, lokpal janta ke prati jawabdehi bhi nahi honga, isame na NGO hai , na MEDIA yah kaisa lokpal hai. desh ke kanun me sabhi ek hona chahiye, wah koi bhi ho.
ReplyDelete"jee ko lgti hai teri bat,khri hai shayad."
ReplyDeleteऐसे मौके पर जब जनता अपने दिमाग से सोंचना बंद कर दे . . . लोग ढोरों की तरह एक पाखंडी के सिद्धांतों का अनुसरण करना ही अपना धर्म समझने लगे . . . देश का भविष्य डूबने की कगार पर हो , तो शायद एक महान विचारक ही होता है जो इस भीड़ के शोर से परे कहीं सच्चाई को समझने और कहने की क्षमता रखता है //
ReplyDeleteManoj ji, itane praasangik aur zaroori lekh ke itane acche aur tvarit anuvaad ke liye jitani bhi badhaai dee jaye..kam hai...! phir se badhaaee..
ReplyDeleteArundhati roy anna nahi hona chahti.. kya ye bhi ek ego nahi. unko apna naam alag to dikhana hi chahiye. ye ho sakta hai ki anna shat-pratishat sahi na ho. par jo bhrashtachaar samasya hai kya wo ek real samasya nahi hai. kya isko khatam karne ka arundhatiji ke paas hai koi upaay. ya un sab sammanit naagriko ke paas jo anna se ya unki vichaardhaara se sehmat nahi hain. kya unhone koi aisa kadam bhi sujhaaya hai jo is baat ko aashwast kare ki ek aam aadmi ko is samasya se nizaat dilwa sake. maaf kijyega, ye arundhatiji ki sirf niji rai se zyaada na liya jaaye to zyada uchit hai. aap anna vichardhaara ko kis roop me dekhte hain ye sawal is waqt eham nahi hai.. eham hai is bhrashtaachaar se mukti paana.
ReplyDeleteArundhati Roy ka lekh parh kar mere bhitar ke cofusion ko clar disha mili hai. Itni tej andhi jisme sab koi anjane hi bah raha ho,Aise samay me Itna viveksheel lekh Arundhati hi likh sakti hain. Lekh pahuchane ke liye dhanyavad.
ReplyDeleteअरुंधति का यह लेख हिन्दी में पढ़वाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। जो तर्क वे दे रही हैं वे सोचने के लिए बाध्य तो करते ही हैं। इस आंदोलन की सफलता के लिए ऐसे तर्कों पर विचार करना भी जरूरी है। केवल एक ही चश्मे से काम नहीं चलेगा। अगर चलता तो आज हमारी यह हालत नहीं होती।
ReplyDeletesochne ko badhy karta lekh.
ReplyDeletebehad pravahpoorn transcreation.
ReplyDeletei am agree with Arundhati Roy
ReplyDeleteअरुंधती रॉय आपके मुहं से तो इस देश के लिए कुछ अच्छे के उम्मीद करना भी फ़िज़ूल है. तो कृपा कर जो अच्छा कर रहा है उसे परेशां ना करें...ये कश्मीर के अलगाववादियों या माओवादियों का मसला नहीं है, की आप बिन बुलाए कूद पड़ीं.
ReplyDeletea thought-provoking article. thanks for the translation Manoj...
ReplyDeletesirf do took bat kahoonga jab arundhati ko itna hi bura lag raha hai to aaj tak wah kya kar rahin thin.aur yadi unke dimag main koi bat hai samaj ko bhrashtachar mukta karne ki to khulkar batayen.anna ka manch sabke liye khula hai.jab koi janta ke liye awaz uthata hai to aise khaliharr log chale aate hain time pass karne.arundhati ek angreji rachana likhkar ek nobel kya pa gayin jo bhi kahengi woh sach hoga kya.the hindu main lekh likhana asan hai par ek garib ko roti khane ke kabil banana behad mushkil.arundhati apna ye show bazi chhodo aur yathartha se khud ko jodo.jai hind
ReplyDeletei m agree with Roy
ReplyDeleteIs aandolan ko maovaidyo se comapare karna bewkoofi wala kaam h....kuch b likhne se pahle sochna chahiye.....Do not agree with Roy...
ReplyDeleteयह आलेख पढने से पहले अरुन्धती जी के बारे में जो विचार थे धूमिल होते लग रहे हैं । कुतर्क केवल निष्क्रियता व भटकाव लाते हैं । उनसे कभी किसी का भला नही होता ।
ReplyDeleteawdhesh bajpai,arudhanti ji ne samagrata ke sath bat ki hai, hamesa es bat ki awasyakata hoti hai,dhanyawad...
ReplyDeleteज़रूरी दस्तावेज़.
ReplyDeleteयह तथाकथित बुद्धजीवी वर्ग जनता से अलग विचार रखते ही इसीलिए हैं की वोह बिलकुल अलग दिखाई दें ,तभी वोह मीडिया में निरंतर बने रहते हैं ,और यह कला उनको भली भांति आती है ,वैसे भी अरुंधती रॉय आजकल खाली हैं
ReplyDeletefrom wikipedia****************
ReplyDeleteSupport for Kashmiri separatism
In an interview with Times of India published in August 2008, Arundhati Roy expressed her support for the independence of Kashmir from India after massive demonstrations in favor of independence took place—some 500,000 separatists rallied in Srinagar in the Kashmir part of Jammu and Kashmir state of India for independence on 18 August 2008, following the Amarnath land transfer controversy.[18] According to her, the rallies were a sign that Kashmiris desire secession from India, and not union with India.[19] She was criticized by Indian National Congress (INC) and Bharatiya Janata Party (BJP) for her remarks.[20]
that is the thinking of arundhati roy she always want to be a controversial personality
aise samay mein jab desh ki janata aur khaaskar ke yuva varg...andhi daud mein duniya ke bazaar ki har aakarshak cheez ko apnane ko taiyyar hain....unke sochne samjhne ki shakti to waise bhee har mall mein bik rahi ho....ab anshan ke mall taiyyar ho rahe hain.....aur is samay mein Manoj ji aapne is lekh ko hum sab tak pahuncha kar bahut zimmedari ka kaam kiya hai.....bahut bahut dhanyavaad.....
ReplyDeleteprasidh vakti ka lekh hindi me uplabdh karane ke lie dhanyvad, Anna per itna sansay Arundhati ji hi kar sakti hai, kyoki unki vichardhara aur kalpna nakam hoti dikh rahi hai. Anna ji jo kar rahe hai wah nahi dikh raha hai, jo nahi kar pa rahe hai use aap aur dusare log bhi kar sakte hai.Gandhiji ke sahare Anna ki alochana karna thik nahi hai, Anna naye yug ke gandhi hai, vaise ye accha hai ki Gandhiji ki alochana jin binduo per thakathit budhijivi log karte hai, autr apni roti sekte hai, aaj ve hi ANNA KE RASTE KO GALAT BATANE KE LIE gANDHIJI ko hi yad kar rahe hain.apne apne dar apni apni abhivakti. JANT KO ANNA NE JAGAYA HAI, KRIPYA AAP LOG ISE SAHI RASTA DENE ME SAHYOG KARE.
ReplyDeletegis gandhi ko aap log gali dete ho , usi ka sahara lekar kutark dwara Anna ko badnam kar rahe hai......apki soch per kya kahe same same ya ........
ReplyDeleteभाई, सहमति-असहमति पर बातें होनी चाहिए और हो भी रही हैं। लेकिन यहां कमेंट करने वाले लोगों के प्रोफाइल देखने का प्रयास करें, कई प्रोफाइल अगस्त 2011 में बने हैं, कुछेक शायद इसी मौके के लिए 2008 में बनाए गए हैं।
ReplyDeleteखैर, मुद्दा यह नहीं है कि अभिव्यक्ति करने वाला सही पहचान जाहिर करे या नहीं। बस इस ओर ध्यान चला गया।
देश में युवाओं , किसानों , मजदूरों , छोटे कारोबारियों , संक्षेप में कहें तो आम आदमियों में भरी निराशा और क्रोध है . यह स्तिथि ज्यादा दिनों तक बनी नहीं रह सकती है . अन्ना की जगह कोई दूसरा भी पहल करता तो असर यह हो सकता था . जनता भरी बैठी है , उसने ६४ साल तक खूब तमाशा देख लिया . यह कहना की अन्ना एक अनाम संत हैं , अपनी कमजोरी उजागर करना है . अन्ना ने लोगो के सपनों को जीवित कर दिया है . जिस राष्ट्र के सपने मर जाएँ , जहाँ लोग निराशा से भर जाएँ , वहां पराधीनता आने में देर नहीं लगती है . लोकपाल बिल का सत्यानाश करने की कोशिश तो हमारे नेता करने ही वाले हैं , लेकिन ये आसान नहीं होगा क्योंकि अन्ना ने देश को एक जिन्दा कौम में बदल दिया है . और यह कोई छोटा कम नहीं है . सरकार और उसके बदतमीजी की भाषा बोलने वाले नेताओ को पहली बार आइना देखने को मिला है .
ReplyDeleteअरुंधती जी विदुषी हैं , लेकिन इससे उनके भ्रमित होने का अधिकार तो ख़त्म नहीं हो जाता ! उन्होंने अपनी समझ से भारी तर्क दिए हैं , यह भी सोचने का एक तरीका हो सकता है . स्वागत किया जाना चाहिए .
मनोज जी , आपने बहुत जल्द , बहुत अच्छा अनुवाद किया . आपका आभार .
अरुंधती जी, आप कभी अन्ना हो भी नहीं सकती, मुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि आपके एक फूहड़ और बकवास उपन्यास को बुकर अवार्ड किस तरह मिला, इसका राज क्या है।
ReplyDeleteबकवास करना बंद करें अरुंधती जी और देश के विकास के लिए कुछ काम करे तो जयादा अच्चा होगा, अन्ना तो तुम चाह कर भी नहीं हो सकती हो1 "मैं अन्ना नहीं होना चाहूंगी : अरुंधती राय " ये विचार पुष्टि करता है की इससे पहले जो विचार आपके मन मैं आया वो ये था की " काश मुझे अन्ना जैसे लोकप्रियता मिलती " परंतू अन्ना जो भी कर रहे हैं लोकप्रियता या किसी और ब्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं अपितु देश के लिए कर रहे हैं . आप जैसे संकुचित विचारधारा के लोग समझते सब हैं पैर अपने व्यक्तिगत लाभों के लिए अनर्गल व्यक्तव्य देते रहतें है. "मैं अन्ना नहीं होना चाहूंगी : अरुंधती राय " = खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे
ReplyDeleteप्रमुख विचारक (???) माओवाद समर्थक तथा आन्दोलनकारी (पेज-3) अरुन्धति राय को हजारों आम आदिवासियों और निरीह सिपाहियों के हत्यारों - माओव्आदियों के आन्दोलन (????) में सेक्युलरिज्म-सोशलिजम और एंवायरन्मेंतलिजम जाने क्या क्या नजर आता है। आप सर्व-ज्ञाता तथा दुग्ध-नहाता हैं आपकी बात तो ब्रम्हज्ञान है न। हे अरुन्धति!!!! अन्ना का आन्दोलन गलत हो सकता है, अपनी बात मनवाने का तरीका भी गलत हो सकता है लेकिन वे आईना ले कर खडे हैं। जन-जन आन्दोलन-आन्दोलन चिल्लाने वाले हत्यारे समर्थको को अन्ना नें यह तो बता दिया है कि आन्दोलन जंगलों-और बिलों में छिप कर कायरता पूर्ण बारूदी विस्फोट करना नही है। आपकी बात में गूदा हो तो हर हाँथ मुट्ठिया बाँधे पीछे हो लेता है। (और हाँ बिना गिलानियों को साथ लिये....) हाँ आपको आपत्ति हो सकती है तो होती रहे मैं भी तिरंगा हाँथो मे लिये लाखों स्वरों में स्वर मिलाता अन्ना के साथ खडा चीख रहा हूँ - वंदेवातरम! भारत माता की जय, इंकलाब जिन्दाबाद....।
ReplyDeleteBhrashtachar jaise mudde par aise logo ki rai koi mayne nahi rakhti jinko roz isse joojhna nahi padta. ye to aam insan hai jo anna ke samarthan me sadak par utar aaya hai kyoki use fark padta hai...
ReplyDeleteI think she is protesting because her nature is like that.
ReplyDeletearundhati ko agar yah pata nahin hai ki annaa kaun hain? to mujhe unke g k par taras aata hai. maine kabhi arundhati ke ek lekh ka auvaad kiya tha - bush aur osama juduwa hain . magar aaj yah lekh padhkar 2 panktiyan swatah janm le baitheen-
ReplyDeletetareef kya kar dee uska to sir fir gaya
vah aadmi itna gira insaniyat se gir gaya.
krishna bihari
manniya Arundhati ji ke blog par Comment karne wale vichrko Apko ye sochna hi padega ki Kitne thinker unke sath hai aur Kitne andh bhakt unki har bat ka virodh kar rahe hai Ek bar andh bhakti soch ke in andolno ka bhavishya soch lijiye tab boliye
ReplyDeleteAroondhati ke lekh se nirasha hui, laffaji ko dekhte huye adhik tippni karna uchit nahin jan padata.
ReplyDeleteArundhati Roy is the voice of all downtrodden and underprevilaged people of India.
ReplyDeletepeople are trying to weaken the jan lokpal andolan ...seems to be part of same...such comments does not help nation any way ...only used to misguide the people
ReplyDeleteअरुंधती जी के बयान, सदैव कि तरह आधे सच और आधे तथ्य विहीन रहे...
ReplyDeleteशायद कुछ लोग मीडिया में बने रहने के लिए कुछ न कुछ ऐसा बोलते रहते हैं....उन्होंने अन्ना के अपने ही राज्य में मराठा मानुष , गुजरात के कार्य कलापों पर चर्चा, और देश क जन आन्दोलनों के बारे में अन्ना टीम के असंवेदन शीलता के बारे में सही विचार व्यक्त किये हैं...
मैं भी अन्ना के आन्दोलन का समर्थक नहीं हूँ , पर उन्होंने जो मूल बातें उठायीं हैं वह तो सही है, आज देश कि प्रबुद्ध जनता, उन बातों को ही आलोचना या विवेचना का केंद्र विन्दु क्यूँ नहीं बनाती है..
अन्ना जी के आन्दोलन के बारे में आलोचना करने वाले शायद , इस बात से भी मन ही मन नाराज होंगे कि इतने दिनों से मेहनत करने के बाद भी वे इस प्लेटफार्म का हिस्सा क्यूँ नहीं बने ?
अन्ना क्या हैं, अरविन्द हैं, इस विवेचना में तो कुछ कुछ प्रतिस्पर्धा कि बू आने लगती है....क्या देश में कुछ अच्छा करने और मीडिया आने का अधिकार केवल कुछ लोगों तक ही सिमित है? अगर अन्ना, और अरविन्द या किरण बेदी भी आने लगे तो यह एक द्वेष का विषय होगा ?
एक बार कांटेक्ट करके जाने मे भ्रस्टाचार व आतंकबाद मिटाने का हल बतलाना
ReplyDeleteचाहता हूँ | जिसमे जन लोकपाल बिल की जरुरत नहीं रहेगी | देश की करेसी को
बंद करके बैंक द्वारा लेनदेन होना चाहिये मेरे पास हर रूकावट का समाधान
है | मेरा न .09300858200 madan