सलमा अल-नीमी की एक कविता...
लालच : सलमा अल-नीमी (अनुवाद : मनोज पटेल)
शादीशुदा ज़िंदगी की चखचख शायराना नहीं होती न ही बच्चों की हाय-तौबा,
बसों के धक्के और
अखबारों की ख़बरें भी नहीं होतीं शायराना.बर्तन माजते वक़्त
मेरे हाथों में
टोंटी से टपक पड़ती है कविता
किसी मछली की तरह.
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कम शब्दों में बड़ं विस्तार को समेटे हुए है कविता.
ReplyDeleteBest Hindi Blog.
ReplyDeleteWAQAE KHUB LIKHAHAI HAI ......
ReplyDeleteTONTI SE TAPAK PADTA KAVITA BADI HI MARMIK HAI DIL KO CHOOOO LENE WALI .......
ReplyDeleteजिंदगी के सच से रूबरू कराती कविता
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