ईमान मर्सल की कविता...
देखती हूँ अपने आस-पास : ईमान मर्सल
(अनुवाद : मनोज पटेल)
अक्सर देखा करती हूँ अपने आस-पास
उस इंसान की सतर्कता के साथ
जिसे भान हो अपनी मृत्यु का.
शायद इसीलिए मेरी गर्दन की ताकत
मेल नहीं खाती मेरे शरीर की ताकत से,
और आश्चर्य की बात तो यह है
कि मुझे सुनसान गलियों से
गोलियां चलने का आभास नहीं होता
या क़त्ल के खामोश तरीके के तौर पर
चाकुओं के चलने का,
बल्कि आभास होता है मुझे उठती निगाहों का
उन आँखों से जिनकी झलक मुझे बमुश्किल ही मिल पाती है
मगर वे कर सकती हैं वो काम
जिसे किया ही जाना है.
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