अन्ना आन्दोलन पर अरुंधती राय का एक लेख आप इस ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं. सी एन एन - आई बी एन की पत्रकार सागरिका घोष के साथ एक बातचीत में अरुंधती राय ने एक बार फिर जन लोकपाल बिल पर गंभीर चिंताएं जाहिर की हैं. पेश हैं इस बातचीत में अरुंधती राय की बातों के कुछ ख़ास अंश...
जन लोकपाल बिल बहुत प्रतिगामी है : अरुंधती राय
(अनुवाद/सम्पादन : मनोज पटेल)
मुझे खुशी है कि जन लोकपाल बिल अपने मौजूदा स्वरुप में संसद में नहीं जा पाया. सिविल सोसायटी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों के गुस्से का इस्तेमाल अपने जन लोकपाल विधेयक को आगे बढाने के लिए किया, जो कि बहुत प्रतिगामी बिल है.
अन्ना हजारे को भले ही जनसाधारण के संत के रूप में पेश किया गया हो किन्तु वे इस आन्दोलन को संचालित नहीं कर रहे थे. इस आन्दोलन के पीछे के दिमाग वे नहीं थे. दरअसल यह एन जी ओ द्वारा चलाया गया एक आन्दोलन था. किरण बेदी, अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया एन जी ओ चलाते हैं. तीन प्रमुख सदस्य मैग्सेसे पुरस्कार विजेता हैं जिन्हें फोर्ड फाउंडेशन और फेलर से आर्थिक सहायता मिलती है. मैं इस बिंदु पर ध्यान दिलाना चाहती थी कि विश्व बैंक और फोर्ड फाउंडेशन से सहायता पाने वाले ये एन जी ओ आखिर सार्वजनिक नीतियों को तय करने वाले मसले पर क्यों हिस्सेदारी कर रहे हैं. दरअसल हाल ही में मैं विश्व बैंक की साईट पर गई थी और मैनें पाया कि विश्व बैंक अफ्रीका जैसे देशों में 600 भ्रष्टाचार-विरोधी कार्यक्रम चलाता है. विश्व बैंक की भ्रष्टाचार निवारण में क्या रूचि है ? उन्होंने पांच मुख्य बिंदु बताए हैं जिन्हें जानना जरूरी है :
1) राजनैतिक जवाबदेही को बढ़ाना
2) सिविल सोसायटी की हिस्सेदारी को मजबूत करना
3) प्रतियोगी निजी क्षेत्र का निर्माण करना
4) सत्ता पर नियंत्रण लगाना
5) सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबंधन को बेहतर करना
इससे मुझे स्पष्ट हो गया कि विश्व बैंक, फोर्ड फाउंडेशन और ये लोग अंतर्राष्ट्रीय पूंजी की पैठ बढ़ाने में लगे हैं और यह 'कापी बुक विश्व बैंक एजेंडा' है. भ्रष्टाचार से हम भी पीड़ित हैं किन्तु जबकि सरकार के परम्परागत कार्य एन जी ओ और बड़े-बड़े निगम हथियाते जा रहे हैं तो इन सभी को क्यों छोड़ दिया जा रहा है.
यह सही है कि इस आन्दोलन में बहुत से लोगों ने हिस्सेदारी की और वे सभी भाजपा या मध्य-वर्ग ही नहीं थे. उनमें से बहुत से लोग दरअसल मीडिया द्वारा निर्देशित किए जा रहे एक तरह के रियल्टी शो में चले आए थे.
निचली नौकरशाही को लोकपाल के दायरे में लाने का मसला भी बहुत पेचीदा है. मुझे नहीं लगता कि हमारे देश की ऎसी समस्याएँ सिर्फ पुलिसिंग या शिकायती बूथों से हल होने वाली हैं. कोई ऎसी चीज लानी होगी जहां आप लोगों को यह भरोसा दिला सकें कि आप अफसरशाही का कोई ऐसा ताम झाम नहीं खड़ा करने जा रहे जो कि उतना ही भ्रष्ट होगा. यदि आपका एक भाई भाजपा में हो, एक कांग्रेस में, एक पुलिस में और एक लोकपाल में तो ऎसी चीजों को कैसे संभाला जाएगा.
समस्या यह है कि ढांचागत असमानता पर सवाल नहीं खड़े किए जा रहे हैं बल्कि आप सिर्फ एक ऐसे क़ानून के लिए लड़ रहे हैं जो कि इस असमानता को आधिकारिक बना देगा. हाल ही मैं आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर आपरेशन ग्रीन हंट के शरणार्थियों से मिली थी. उनके लिए मसला यह नहीं है कि टाटा ने इस खनन के लिए घूस दिया या वेदांता ने उस खनन के लिए घूस नहीं दिया. बड़ी समस्या यह है कि भारत की खनिज, जल एवं वन संपदा का निजीकरण किया जा रहा है, उन्हें लूटा जा रहा है. भले ही यह सब गैर-भ्रष्ट तरीके से किया जा रहा हो, यह समस्या है. कुछ बहुत महत्वपूर्ण एवं गंभीर चीजें घटित हो रही हैं जिन्हें नहीं उठाया जा रहा है.
मुझे याद नहीं पड़ता कि इसके पहले मीडिया ने ऐसा अभियान कब चलाया था जब कि दस दिनों तक बाक़ी हर तरह की ख़बरें किनारे कर दी गयी हों. एक अरब लोगों के इस देश में मीडिया के पास दिखाने के लिए और कुछ नहीं था और वह यह अभियान चला रहा था. कुछ बड़े टेलीविजन चैनलों ने यह अभियान चलाया और कहा भी कि वे अभियान चला रहे थे. मेरे लिए यह प्रथमतया एक तरह का भ्रष्टाचार ही है. एक समाचार चैनल के रूप में आपको प्रसारण करने का लाइसेंस ख़बरें प्रसारित करने के लिए दिया जाता है न कि अभियान चलाने के लिए.
इस आन्दोलन के प्रतीकों पर बात करना मजेदार होगा. वन्दे मातरम का लंबा साम्प्रदायिक इतिहास रहा है. आपने पहले भारत माता की तस्वीर लगाई और फिर गांधी की. वहां मनुवादी क्रांतिकारी आन्दोलन के लोग थे. ज़रा अनशन के बाद गांधी जी के किसी निजी अस्पताल में जाने की कल्पना करें. एक ऐसा निजी अस्पताल जो ग़रीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र से राज्य के पीछे हटने का प्रतीक है. जहां डाक्टर हर बार सांस खींचने और छोड़ने के लाख-लाख रूपए शुल्क लेते हैं. ये सभी प्रतीक बहुत खतरनाक थे और यह आन्दोलन यदि इस तरह समाप्त न हो गया होता तो यह बहुत खतरनाक रूप ले सकता था.
मैं भीड़ के आकार से प्रभावित नहीं थी. मैनें कश्मीर और यहीं दिल्ली (के आन्दोलनों) में इससे ज्यादा भीड़ देखी है. उनकी खबर किसी ने नहीं लिखी. सिर्फ यह कहा गया कि 'ट्रैफिक जाम बना दिया इन्होनें'. बाबरी मस्जिद ढहाए जाते समय इससे ज्यादा भीड़ नारे लगा रही थी. क्या हमारे लिए वह ठीक था.
भविष्य के प्रतिरोध आन्दोलनों को इससे क्या सबक मिल सकता है. ताकतवर लोगों का प्रतिरोध आन्दोलन जहां मीडिया आपके पक्ष में हो, सरकार आपसे डरी हुई हो जहां पुलिस ने खुद को निशस्त्र कर लिया हो, ऐसे कितने आन्दोलन भविष्य में होने जा रहे हैं ? मुझे नहीं पता. जब हम यह बात कर रहे हैं मध्य भारत में भारतीय सेना इस देश के सबसे गरीब लोगों से युद्ध करने की तैयारी कर रही है, और मैं आपसे बता सकती हूँ कि वह निशस्त्र नहीं होगी. तो मुझे नहीं पता कि आप ऐसे प्रतिरोध आन्दोलन से क्या सबक ले सकते हैं जिसे इतने विशेषाधिकार प्राप्त हों.
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(आई बी एन लाइव.इन.काम से साभार)
यही बातें हम लगातार कह रहे थे...लेकिन मीडिया ने जो उन्माद क्रियेट किया उसके चलते लोगों के सुनने और समझने की ताक़त खत्म हो गयी थी...अब शायद कुछ लोगों का ध्यान इधर जाए.
ReplyDeleteOh Arundhati! I have enough grey matter to see your darker sides too!
ReplyDeleteye baat aur bhi log kah rahe hain.... lekin bhai jamanaa selibrity kaa hai... har kisi kee baat nahin suni jaati hai...bhagat sing kee bhee aasanee se nahin suni jaa rahee thee... tabhi to usane sunaane ke lie kuchh alag pryog kiyaa thaa...
ReplyDeleteधारा के विपरीत बहना अच्छा होता होगा लेकिन ---हमेशा??
ReplyDeletearundhati's mind is only for "small things",she should avoid addressing bigger things.
यह एक अंतर्राष्ट्रीय खेल का एक छोटा सा हिस्सा था जो , पूंजीवाद को अपने चरम पर पहुँचाने के लिए निरंकुशता की हद तक उसे स्वतन्त्र और अधिकार संपन्न करने के लिए था ! अन्ना एंड कम्पनी को क्या कहा जायेगा ,देशभक्त ? या देश को बेंच कर खा जाने वालों का दलाल ? फैसला आपका !
ReplyDeleteArundhati Roy, Will you give suggestions for removing corruption? Peoples are very upset to see the corruption in their daily need events. Could you share your bill on this issue? I want to see your Bill for prevention of corruption.
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने राजीव जी आपने http://bhadas4corruption.blogspot.com/
ReplyDeleteThe proposed Jan Lok Pal bill reads like an extremely ordinary piece of legislation. The proposed Jan Lok Pal commission looks very bureaucratic and the manner of its selection is the least desirable way to constitute a body, if you are hoping to advance democratic principles. A brief glance at their method of selection itself is enough to prove that. I don't believe that anyone who comes into power automatically becomes corrupted. I feel extreme anti-establishment feelings are unhealthy. Also the entire movement is too close to the religious right which is extremely un-desirable.
ReplyDeleteसार्थक बातचीत...
ReplyDeleteसार्थक बातचीत...
ReplyDeleteIf World Bank has these five motives:
ReplyDelete1) राजनैतिक जवाबदेही को बढ़ाना
2) सिविल सोसायटी की हिस्सेदारी को मजबूत करना
3) प्रतियोगी निजी क्षेत्र का निर्माण करना
4) सत्ता पर नियंत्रण लगाना
5) सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबंधन को बेहतर करना
i think not anyone of these is wrong and opposes the Democracy. Arundhati Roy can be good writer but it means not that she is good thinker too.....even his opinion has not any face value....
Second if all those peoples are running NGO's and taking money from foreign funders it does not reduce their value as good worker...even arundhati herself accepted a prize on his novel from same countries....then how we can believe she is good for peoples she is talking about....
I feel peoples like Arundhati always want themself in Press Notes by talking in oppose if they are not with flow...
अन्ना के आन्दोलन की वैचारिकी और उसकी दिशा अप्रैल में ही साफ हो गई थी। यह आंदोलन ‘अराजनीति की राजनीति’ पर शुरू से ही आधारित रहा है। इसके संचालन की सारी जिम्मेदारी तथा इसके कर्ता धर्ता एन जी ओ वाले थे। राजीतिक दलों व संगठनों यहाँ तक कि रैडिकल संगठनों को आन्दोलन से दूर रखा गया था। मंच के पास फटकने तक नहीं दिया गया था। इसलिए जो लोग इस आंदोलन के पीछे एन जी ओ की बात ला रहे हैं, वे कोई नई बात नहीं ला रहे हैं। इस आन्दोलन के आरम्भ से ही यह बात साफ थी। संभव है यह बात उस वक्त उन्हें नहीं दिख रही हो।
ReplyDeleteजरूरी सवाल यह है कि जो समाज के का्रन्तिकारी रूपान्तरण की ताकते हैं, वे इस आन्दोलन के प्रति क्या रुख रखें, उनका नजरिया क्या हो ? किसी भी क्रान्तिकारी के लिए यह जरूरी होता है कि वह समाज में घटने वाली घटनाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करे, उससे सीखे और इसी आधार पर अपने व्यवहार की दिशा तय करे। इस आन्दोलन के बारे में सिर्फ यह कह देना कि सारा मीडिया व एनजीओ प्रायोजित था, यह अधूरी सच्चाई होगी। द्वन्द्ववाद यही कहता है कि किसी भी ऐसे आन्दोलन के कारण भारतीय समाज में मौजूद है जिससे इस आंदोलन ने जन्म लिया। यह भी विचार का विषय है कि क्यों वामपंथी संगठन जिनके ये स्वाभाविक मुद्दे हैं, उन पर वे कोई बड़ी पहलकदमी न ले पाये और उनकी भी हालत बहुत कुछ अन्य सŸााधारी दलों जैसी बनी रही। क्या वजह है कि प्रकाश करात से लेकर अरुंधती राय तक मात्र आलोचना से आगे नहीं बढ़ पाते ? क्या इससे यह नहीं लगता कि आज आत्मालोचन इनके राजनीतिक व्यवहार की वस्तु नहीं रह गया है ? यही कारण है कि आलोचना करते हुए ये कोई विकल्प नहीं पेश कर पा रहे हैं। इसीलिए यह मात्र ‘आलोचना के लिए आलोचना’ है। अरुंधती राय को लेकर भी यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि वे भी अपने को एक्टिविस्ट के रूप में पेश करती हैं।
लेनिन ने कहा था कि जब शासक वर्ग के लिए अपने पुराने ढाँचे को बनाये रख पाना तथा पुराने तरीके से शासन कर पाना दिन दिन कठिन होता जाय तथा जनता के लिए भी इस ढ़ाँचे में रह पाना संभव न रह जाये, यह हालत व्यवस्था परिवर्तन की माँग करती है। आज हालत कमोबेश ऐसी ही हैं। शासक वर्ग के लिए पुराने तरीके से काम करना दिन दिन मुश्किल होता जा रहा है। वह बचे.खुचे लोकतंत्र को खत्म कर देने पर तुला है। उसकी सेना व अर्द्धसैनिक बलों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। देश को वह इमरजेन्सी जैसी हालतों की तरफ ढकेल रहा है। दूसरी तरफ अन्ना जैसे आन्दोलन सुधारात्मक कदम के द्वारा लोकतंत्र व शासक वर्ग को संजीवनी देने वाले हैं जिसका उद्देश्य ‘व्यवस्था परिवर्तन’ के नाम पर वास्तविक परिवर्तन के संघर्ष को रोक देना है। ‘अराजनीति की रजनीति’ शासक वर्ग का ही वैचारिक हथियार है। एन जी ओ इस सुधारवाद के हाथ पांव हैं। ‘दमन की राजनीति’ और ‘अराजनीति की राजनीति’ एक ही सिक्के के दो पहलु हैं।
इसलिए आज मुख्य संघर्ष सुधारवाद और क्रान्तिवाद के बीच का है। यह सरल न होकर जटिल संघर्ष है। और इस संघर्ष की द्वन्द्वात्मकता तथा गति विज्ञान को न समझ पाने की वजह से ही इस सम्बन्ध में अरुंधती राय कहीं न कही ‘ग्रासरुटवाद’ का शिकार हो गई हैं। अरुंधती राय अपनी प्रखरता के लिए मशहूर हैं और हमे उनसे अपेक्षा है कि वे और गहरे में जायेंगी तथा एक विकल्प के साथ आयेंगी। जनता के वास्तविक संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए यह जरूरी हैं।
अरूंधती का यह बयान कि लोग रियल्टी शो में हिस्सा लेने आये थे बिलकुल अतार्किक है..शायद अरूंधती वहां गई हों! दूसरा मीडिया द्वारा रचित 'उन्माद' में लोग हिस्सा लेने आते तो भीड़ हटते देर नहीं लगती...और फिर उस जनता के बारे में क्या विचार है जो दिल्ली रामलीला मैदान से बाहर दिल्ली और अन्य शहरों में थी... दिल्ली में ही लगभग हर मोहल्ले में मिनी रैलियां निकली, बिना किसी कवरेज के वह निकल रहा था लगातार...और फिर यह कैसी 'उन्मादी' भीड़ थी जिसने अपने 'उन्माद' का प्रदर्शन नहीं किया...और क्या ये अच्छा होता कि पुलिस उन पर लाठियां बरसाती...लाठी पुलिस उसी भीड़ पर चलाती है जिनका प्रदर्शन उग्र था...विनायक सेन के समर्थन में निकल धरने पर भी लाठियां नहीं चलीं थी...वह धरना भी विशुद्ध अभिजात्य था जिसमें अरूंधती बैठी थी...और हम जैसे लोग भी शामिल थे..अरूंधती का पुरा यह तर्क साबित करता है कि भारतीय समाज की समझ अभी अधुरी है.
ReplyDeleteमनोज पटेल, आपको बहुत-बहुत धन्यवाद, हिंदी में ये सामग्री पढ़ने के लिए उपलब्ध कराने के लिए। मैं आपके कुछेक लेखों को फेसबुक पर पहले ही शेयर कर चुकी हूं। मैं भी भ्रष्टाचार के मु्द्दे पर हुए इस जमावड़े से प्रभावित नहीं हूं। इसकी दिशा भी मुझे सही नहीं लगती।
ReplyDeleteSATYA DUBEY ( SATYA MITRA DUBEY) cmmented again
ReplyDeleteI am sorry to note that I submitted my views in the form of comments on the above blog of arundhati roy. at first,my comment was shown and now i find that it has been deleted- why, how, by whom. it was an academic observation and there was nothing objectionable in it. there is a growing impression among a good number of facebook users that there are some people in the facebook system who are encouraging in a subtle manner such individuals/ forces who are interested in disintegrating indian plural system, weakening peaceful gandhian movements leading to mass jan-andolan( indirectly supporying irrational armed struggle)and sabotaging democratic- constitutional system. we have to be careful and assess facebook objectively in the days,weeks and months properly.
SATYA DUBEY
ReplyDeletewhat about my original comment?
सत्या जी, आपके यही दो कमेन्ट यहाँ प्राप्त हुए थे, जिन्हें प्रकाशित कर दिया है. मैं किसी कमेन्ट को डिलीट नहीं करता. आप खुद ही देख सकते हैं कि यहाँ पक्ष-विपक्ष हर तरह की टिप्पड़ियां मौजूद हैं. मुझे अच्छा लगेगा यदि आप उस टिप्पड़ी को एक बार फिर से ब्लॉग पर पोस्ट कर दें ताकि मैं उसे प्रकाशित कर सकूं. असुविधा के लिए क्षमा चाहता हूँ.
ReplyDeletesatya dubey said
ReplyDeleteमनोज अप के बारे में मेरे मन में कितना सम्मान है, यह कहने की बात नहीं है . भारत एक समावेशी,बहुलवादी देश है.अरुंधती रॉय का हर कदम इसे तोड़ने वाला है,अतः उसका वैचरिक विरोध , हीनता की ग्रंथि से मुक्त होकर,करने की जरूरत है. उनके लेखन का क्या हल है, यह इससे साबित होता है की अब उसकी कहीं चर्चा तक नहीं होती है. देश और समाज को तोड़ने वाले जीवाणुओं से लड़ने की जरूरत है.
मैं इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ की यादे लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को लाया जायेगा तो प्रधानमंत्री कभी भी आजादी से केवल इस वजह से काम नहीं कर पायेगा की कहीं कोई शिकायत न कर दे और फिर तो प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों का होना या न होना बिलकुल बराबर हो जायेगा. ऐसी स्थिति में तो केवल लोकपाल ही सबकुछ हो जायेगा जो की लोकतंत्र के लिए बिलकुल खतरनाक स्थिति होगी. इसलिए एक प्रधानमंत्री को तो काम करने के लिए आज़ादी चाहिए ही. इसके अतिरिक्त यदि किसी व्यक्ति विशेष की बात से यदि लाख दो लाख आदमी सहमत हों तो क्या वह संसद को अपनी तरह से चलने लगेंगे, इस बात को भी ध्यान देना होगा. संसद तथा सांसदों की गरिमा को ध्यान में रख कर ही बात करनी होगी आखिर चुनाव में हम ही तो वोट देकर उन्हें चुनते हैं. हाँ यदि हमें किसी बात को लेकर कुछ सांसदों से शिकायत भी है तो फिर हमें उन्हें लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के माध्यम से हटाने का तरीका अपनाना चाहिए नहीं तो फिर हम लोकतंत्र को खो देंगे. मैं यह मानता हूँ की यदि जितने लोगों ने श्री अन्ना हजारे जी का समर्थन किया है यदि केवल उतने लोग ही भ्रस्ताचार से मुक्त हो जाएँ तो देश की स्थिति बदलने में देर नहीं लगेगी. साथ में हमें यह भी जानना होगा की भ्रस्ताचार से लड़ने के लिए कानून तो आज भी हैं परन्तु उन्हें लागू करने का कम तो हमारे बीच के ही लोग करते हैं तो फिर यदि उपलब्ध कानूनों को कायदे से लागु ही नहीं किया जा रहा है तो सरकार क्या कर सकती है.
ReplyDeleteअरुंधती के ये विचार पूर्वाग्रहों से दूषित नज़र आते है. अरुंधती जी आप भ्रष्टाचार नहीं मिट सकता या तरीका जो श्री अन्ना हजारे द्बारा अपना जा रहा है गलत के पझ मैं १०० विचार या सलाह के अपेक्षा कोई १ सुझाब ऐसा दे जिससे भ्रष्टाचार मैं १० % भी कमी आ सकती हो. अन्यथा देश वासियों के भ्रष्टाचार के विरूद्ध कदम के प्रयास को हतोत्साहित न करें
ReplyDeletemadhur swarnkar
very good arundhati ji. mai apki bato se sahmat hu.
ReplyDeletearundhati g aap jis salah kar parisad ki sadasya hai us ka adhyakh upa ki chair parsan hai.
ReplyDeleteaap upa ke ajenda ko hi aage bhadharhi hai keya?
ye jo janta hai sab janti hai.
aap janta ko dhig bharamit na kare.
chor chor mousere bhai..................
ReplyDeleteमैं अरुंधती जी के विचार से सहमत नहीं, आलोचना और खोट निकालना हमेशा से आसान रहे हैं.
ReplyDeleteखुशी होती अगर वो अन्ना के साथ खड़ी होतीं, वैसे उनके अपने प्रयास इस दिशा (भ्रास्तचार मिटाने) मे कहा तक हैं और कितने लोगों का समर्थन है इनके साथ?? लेखिका रूप में बहुत आदर है आपके प्रति. धन्यवाद.
अरुंधती से सहमत हुआ जा सकता है ज़रूरी नही की वे अन्ना के साथ खड़ी हों
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