नाजिम हिकमत की कविता. तस्वीर तहरीर चौक की
बेयाजित चौराहे पर : नाजिम हिकमत
(अनुवाद : मनोज पटेल)
एक लाश पड़ी हुई है,
उन्नीस साल के नौजवान की लाश,
दिन दहाड़े सूरज की रोशनी में,
और रात में सितारों के नीचे,
इस्ताम्बुल के बेयाजित चौराहे पर.
एक लाश पड़ी हुई है,
एक हाथ में कापी,
और दूसरे हाथ में वह ख्वाब थामे
जो शुरू होने के पहले ही टूट गया, 1960 की अप्रैल में,
इस्ताम्बुल के बेयाजित चौराहे पर.
एक लाश पड़ी हुई है,
बन्दूक से दागी गई,
गोली का एक जख्म
जैसे कोई लाल कारनेशन उसके माथे पर,
इस्ताम्बुल के बेयाजित चौराहे पर.
एक लाश पड़ी रहेगी,
बहता रहेगा उसका खून धरती पर,
जब तक उठ नहीं खड़ा होता मेरा वतन
और जबरन कब्जा नहीं कर लेता चौराहे पर
हथियारों और आजादी के तरानों के साथ.
मई 1960
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लोमहर्षक दृश्य्... शिराओं के तेज होते लाल जल में तड़तड़ाती हुई आग मिला देने वाली रचना... गजब... प्रस्तुति के लिए आभार...
ReplyDeleteआभार।
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कम्प्यूटर से तेज़...!
सुज्ञ कहे सुविचार के....
jab tak uthh nhi khada hota mera vatan.. vicharottejak aur zaroori kavita.
ReplyDeleteमनोज जी आपको बहुत बधाई. आपका ब्लाग अनमोल खजानों से भरा हुआ है. मैं आपके ब्लॉग का नियमित पाठक और प्रचारक भी हूँ. इसे जारी रखिये.....धन्यवाद
ReplyDeleteOutstanding blog. Badhai ho. Shailendra DIG UP
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