Monday, August 8, 2011

मरीचिका का पानी : फौज़िया अबू खालिद की कविताएँ

फौज़िया अबू खालिद, 1959 में रियाद में जन्म, बेरुत और अमेरिका में समाजशास्त्र की पढ़ाई, किंग साद यूनिवर्सिटी, रियाद से डाक्टरेट के बाद वहीं पर समाजशास्त्र में अध्यापन, पहला कविता संग्रह सिर्फ चौदह साल की उम्र में, अब तक कुल तीन कविता संग्रह, कई कविता महोत्सवों में हिस्सेदारी, बच्चों के लिए तीन किताबें, राजनीतिक एवं समाजशास्त्रीय विषयों पर तमाम लेख प्रकाशित, सऊदी अखबार 'अल-जजीरा' में एक साप्ताहिक स्तम्भ... 



फौज़िया अबू खालिद की कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)


पानी कविता 

उसने रेगिस्तान में अपनी उंगलियाँ डुबोकर 
एक कविता लिखी मरीचिका के पानी से... जो टपक रही है 
                                                                                   टिप  
                                                                                   टिप 
                                                                                   टिप 
                                          एक लय, इन्द्रियों के बोध से परे. 
                    :: :: ::
                                             
नाभि नाल 

मेरी माँ ने 
रेगिस्तान से एक डोर खींची रेत की 
और उसे नत्थी कर दिया मेरी नाभि से. 
चाहे जितनी दूर चली जाऊं मैं 
उस बाल्टी की तरह होती हूँ 
जो बेमतलब ही कोशिश किए जा रही है 
कुँए के गहरे पानी में झलकते 
चाँद को उठाने की. 
                    :: :: :: 

सिंड्रेला 

चप्पलों की फुसफुसाहट सुनती हूँ खुली हवा में 
एक चप्पल तुम्हारे नन्हे से पैरों में 
दूसरी मेरे दिल के भीतर 
सलोने राजकुमार के सैनिक ढूंढ़ रहे हैं दो चप्पलें, 
एक तो तुमने पहन रखी है, और दूसरी,
दूसरी कहाँ ? 
                    :: :: :: 

कब्र 

बहुत तंग महसूस करती हूँ अपनी देंह के भीतर... 
अगर सांस ले लूं थोड़ा गहरी 
फट जाएगी मेरी त्वचा. 
                    :: :: ::  

4 comments:

  1. tip tip ek lay indriy bodh se pare. . prem ko paribhashit karti ek suhani kavita

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  2. "बहुत तंग महसूस करती हूँ अपनी देह के भीतर
    अगर सांस ले लूं थोडा गहरी
    फट जाएगी मेरी त्वचा"

    very very nice.....

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  3. उसने रेगिस्तान में अपनी उंगलियाँ डुबोकर
    एक कविता लिखी मरीचिका के पानी से
    जो टपक रही है
    टिप टिप टिप
    एक लय इन्द्रियों के बोध से परे...!!!

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  4. खूबसूरत और अद्भुत कवितायेँ ! शानदार अनुवाद ,मनोज जी !

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