येहूदा आमिखाई की किताब 'वक़्त' से एक और कविता...
येहूदा आमिखाई की कविता
(अनुवाद : मनोज पटेल)
जमींदोज हो गया वह मकान
जिसमें बहुत कुछ विचार किया करता था मैं
अपने बचपन में.
इस तरह मेरे विचार छुट्टा घूम रहे हैं दुनिया में
और खतरे का सबब हैं मेरे लिए.
यही वजह है कि मैं भटकता फिरता हूँ इधर-उधर
और बदलता रहता हूँ मकान
ताकि वे ढूंढ़ न पाएं मुझे.
क्या वह आ गया? और, क्या अब भी वह यहीं रहता है?
इन दो सवालों के बीच से
मैं हमेशा बच निकलता हूँ, नयी जगहों के लिए.
मेरा भी अंजाम होना है सारी गोश्त वाली चीजों की तरह : खोजा जाना,
पकड़ा जाना, मारा जाना, मारने के पहले ही बेचा जाना,
नमक मिर्च लगाकर रखा जाना,
काटे जाना और यातना पाना,
अजीब सी ज़िंदगी रही है मेरी
और अजीब सी मौत भी
और एक अजीब सी कब्र
सिरहाने के पत्थर पर
लिखाई की गल्तियों के साथ.
:: :: ::
Hindi ka sabse achcha blog.
ReplyDeleteविश्व साहित्य में झाँकने की खिड़की नहीं ,दरवाजा है आपका ये ब्लाग !
ReplyDeleteHindi me anudit sahitya ke liye Anbar jagdish
ReplyDeletevidesi anuvadit samagri ke lite angst jagdish
ReplyDelete