Saturday, November 6, 2010

फिर भी होना अमेरिका : माइआ अंजालो

( माइआ अंजालो की एक कविता आप पहले ही नई बात पर पढ़ चुके हैं. आज अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत आगमन के मौके पर उनकी एक और कविता आप सबसे साझा करने का मन हुआ. - Padhte Padhte )  



तुम्हारे संजाल के हल्के ही झटके से 
बिला जाती हैं बादशाहतें. 
गुस्से से बनता है तुम्हारा मुंह तो 
दहशत में सिजदा करते हैं मुल्क तमाम. 

मौसम बदल सकते हैं तुम्हारे बम, 
 मिटा सकते हैं बसंत का नामो निशान. 
और क्या चाहते हो तुम ? 
आखिर क्यों हो तकलीफ में ? 

काबू में रखते हो तुम इंसानी जिंदगियां 
रोम और टिम्बकटू में. 
आवारगी करते एकाकी बंजारे 
एहसानमंद तुम्हारे उपग्रहों के लिए. 

समुन्दर सरकते हैं तुम्हारे फरमान पर, 
आसमान ढँक उठता है तुम्हारे परीक्षणों की गर्द से. 
फिर नाखुश क्यों हो तुम ? 
आखिर रोते क्यों हैं बच्चे तुम्हारे ? 

घुटने टेक देते हैं वे दहशत में अकेले 
हर निगाह में दिखता डर. 
एक मनहूस विरासत से 
रोज धमकायी जाती उनकी रातें. 

बसते हो तुम सफ़ेद किले में 
गहरी जहरबुझी खाई से घिरे 
तुम्हारे कानों तक नहीं पहुंचती बददुआएं 
भरे रहते जिनसे तुम्हारे बच्चों के गले. 

(अनुवाद : Manoj Patel)

7 comments:

  1. ओबामा की आने की तैयारी जिस तरह से हुई है और हो रही है इससे तो लगता है कि इस कविता के अलावा दूसरी कोई सच्चाई है ही नहीं... सही समय पर सही चोट दिया है आपने...

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  2. behad sateek abhivyakti, shukriya manoj hume jagaye rakho.

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  3. bahut khoobsurat anuwad hai .. theek samay par sateek kavita di hai aapne.

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  4. अमेरिका की दादागिरी और बाकि तमाम दुनिया की काहिली का दर्दनाक मंजर है यहाँ।
    कोई कभी खुद से नहीं पूछता कि आखिर क्यों आवारा पूंजी की हवस में हम अमेरिका के पिट्ठू हुए जाते हैं!
    कहीं तो ठहरो भाई, कब तक...............

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  5. बहुत सुंदर कविता ऐसी सच्चाई जिसे महसूस करते में भी दुनिया की सरकारें डरती हैं

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  6. बहुत धारदार कविता और धारदार अनुवाद। आभार मनोज जी।

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