Saturday, August 27, 2011

निज़ार कब्बानी की कविताएँ

निज़ार कब्बानी की कविताएँ...



निज़ार कब्बानी की कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

क्या कभी सोचा तुमने
कि आखिर जा कहाँ रहे हैं हम 
जहाज़ों को पता होती है अपनी दिशा,
मछलियाँ जानती हैं कि उन्हें तैरना है किस तरफ,
पंछी जानते हैं अपनी मंजिल 
मगर हम छटपटाते हैं समुन्दर में
और डूबते नहीं 
पहने होते हैं सैलानियों की पोशाक 
और निकलते नहीं बाहर 
लिखते हैं चिट्ठियाँ 
मगर भेजते नहीं उन्हें 
जाते हुए हर हवाई जहाज का 
खरीदते हैं टिकट 
मगर बैठे रहते हैं हवाई अड्डे पर 
तुम और मैं प्रिय  
सबसे बुजदिल मुसाफिर हैं इतिहास के.
                    :: :: :: 

बंद कर दो सारी किताबें 
और पढ़ो मेरे चेहरे की लकीरों को 
निहार रहा हूँ मैं तुम्हें
क्रिसमस के पेड़ के सामने खड़े 
एक बच्चे की उत्सुक निगाहों से. 
                    :: :: :: 

कल मैनें सोचा 
तुम्हारी खातिर अपने प्यार के बारे में.
मुझे याद आईं 
तुम्हारे होंठो पर शहद की वे बूँदें, 
और अपने होंठों पर जुबां फिराकर 
पोंछ दी मैनें वह मिठास 
स्मृति के गलियारे से.
                    :: :: :: 

10 comments:

  1. भई वाह। शानदार। कहां-कहां से ढूंढ़ लाते हो ऐसी कविताएं।

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  2. सुन्दर अनुवाद इन शानदार कविताओं का ! बधाई मनोज जी !

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  3. काश हमें पता होता कि हम कहाँ जा रहे हैं.. बहुत सुंदर कवितायें !

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  4. kavitao ke sath sath unka prastutikaran, aisa mano continental dis saji ho chandi ki tashtari par

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  5. बहुत सुंदर कविताये ...बधाई

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  6. ''कल मैंने सोचा
    तुम्हारी खातिर आपने प्यार के बारे में
    मुझे याद आई
    तुम्हारे होंठों पर शहद की वे बूँदें !!!''

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