Monday, September 12, 2011

नाजिम हिकमत : आप सभी को हलो

नाजिम हिकमत की कविता 'हलो'











हलो : नाजिम हिकमत 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

कैसी खुशकिस्मती है नाजिम,
कि सरेआम और बेधड़क,
तुम "हलो" कह सकते हो
तहे दिल से !

साल है 1940.
महीना जुलाई का.
दिन, महीने का पहला बृहस्पतिवार. 
समय : 9 बजे.

इतनी ही तफसील से तारीख दर्ज करो अपनी चिट्ठियों में.
हम ऎसी दुनिया में रहते हैं 
                    कि दिन, महीने और घंटे 
                    बहुत कुछ कहते हैं.

हलो, हर किसी को.

एक बड़ा, भरा-पूरा और सम्पूर्ण 
"हलो" कहना  
और फिर बिना अपना वाक्य ख़त्म किए,
                    खुश और शरारतपूर्ण मुस्कराहट के साथ 
                    तुम्हें देखना
                    और आँख मारना...

हम इतने अच्छे दोस्त हैं 
                    कि समझ लेते हैं एक-दूसरे को 
                    बिना एक भी लफ्ज़ बोले या लिखे...

हलो, हर किसी को,
हलो आप सभी को...
                    :: :: :: 

2 comments:

  1. कैसा वातावरण होगा ,देश और समाज का जहाँ किसी से बेधड़क हेल्लो कहना भी एक ख़ास घटना है और ऐसा मौका एक ख़ास मौका , खुश होकर एक कविता लिखे जाने लायक ! जरा कल्पना कीजिये ,लोग कैसे आपसी संबंधों के साथ जी रहे होंगे ! आभार मनोज जी इस दर्दनाक कविता के चयन,अनुवाद और प्रस्तुतीकरण के लिए !

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  2. हम इतने अच्छे दोस्त हैं कि समझ लेते हैं एक दुसरे को बिना एक भी लफ्ज़ बोले या लिखे ..सच ही तो है..दोस्ती में ऐसा ही होना चाहिए या कह लो हरेक रिश्ता इतना खूबसूरत होना चाहिए कि एक दुसरे को पढ़ा जा सके

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