Thursday, September 22, 2011

एथलबर्ट मिलर : मेरे पिता का हैट

एथलबर्ट मिलर की कुछ कविताएँ आप इस ब्लॉग पर पहले पढ़ चुके हैं. आज उनकी एक और कविता...












अश्वेत व्यक्ति की आलमारी : एथलबर्ट मिलर 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

आलमारी के 
सबसे ऊपरी खाने में 
हैट रहता है मेरे पिता का 
जिसे वे पहनते हैं ख़ास मौकों पर 
यह उस बड़े से जार के बगल में रखा रहता है 
जिसमें वे रेजगारी इकट्ठा करते हैं 

नंगा ही रहता है उनका सर 
जब भी मैनें उन्हें देखा है 
सड़कों पर चलते हुए 

एकबार उनके बेडरूम में बैठा 
मैं देख रहा था उन्हें 
स्वेटरों और सूटों को उलटते-पुलटते 
वे कुछ ढूंढ़ रहे थे 
शायद कोई टाई

अचानक वे रुक गए 
और धीरे-धीरे गए आलमारी की तरफ 
उसमें से हैट निकाला अपना 

मैं बैठा रहा बिस्तर पर 
उनकी पीठ निहारता 
उनके मुड़ने का इंतज़ार करता हुआ
और यह बताने का कि किसकी मौत हो गई है 
                    :: :: :: 
Manoj Patel Translations

2 comments:

  1. यानि‍ कि‍ वो हैट कि‍सी के जनाजे पर जाने के लि‍ये ही पहना जाता था,...ओह।
    जुर्म क्या? ये सजा क्यों है?

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