Monday, September 19, 2011

दून्या मिखाइल : उसने कहा था



'उसने कहा था' के क्रम में आज दून्या मिखाइल के कुछ कोट्स... 



उसने कहा था : दून्या मिखाइल 
(अनुवाद एवं प्रस्तुति : मनोज पटेल)


1. 
सिर्फ पत्थर ही हैं जिनके ख्वाब नहीं चिटकते 
सिर्फ पत्थर के ही दिल टिकते हैं. 

2. 
क्या मृतकों को खुदकशी करने और 
इस तरह पृथ्वी पर वापस आने का हक़ है ? 

3. 
हम दोनों को  (पृथ्वी और मुझे)
भरोसा है कि एक ने दफना रखा है दूसरे को अपने भीतर.
मैं सोचती हूँ कि कौन दफनाया गया होगा पहले ?

4. 
-- जीत क्या है ?
-- वे हमारे नसीब में हार लिखती हैं.

5. 
कल, चाँद गिर पड़ा तंदूर में 
और सिंक गया रोटी के साथ. 

6. 
हम सोते हैं कतार में खड़े-खड़े 
और विशेषज्ञ उपाय सोचते हैं सीधी खड़ी कब्रों के लिए 
क्योंकि खड़े-खड़े ही मर जाना है हमें. 

7. 
-- पुल क्या होता है ?
-- पुल एक माँ है अपने बच्चे पर झुकी हुई 
जो गिर पड़ा है मुरझाई पत्तियों के साथ.

8. 
दुनिया मानती है लोकतंत्र को,
इसलिए यह मृतकों को देती है 
शहर में भटकने की आजादी.

9. 
मुझे पता है कि तुम्हारे हाथ खाली हैं.
जानती हूँ कि अभी कुछ नहीं है करने के लिए तुम्हारे हाथों के पास.
मगर इससे ठीक नहीं साबित हो जाता उन्हें ताली बजाना सिखाना.

10. 
तुम रात की तरह तो नहीं हो, फिर अन्धेरा तुम्हें क्यों चाहता है ?

11. 
जब भाषा मर जाती है,
धरती के लोग इसे शब्दकोषों में दफना देते हैं. 

12. 
मगर यह पल है कहाँ ?
यह गायब हो जाता है हमारे बोलते ही.
अपनी जगह दूसरे पल को दे देता है 
और अतीत हो जाता है.
दुनिया हमेशा ही भूतकाल में रहती है.

13. 
जब जंग शुरू हुई मैनें शतरंज खेलना छोड़ दिया :
कोई मतलब नहीं था इतने सारे प्यादों को कुर्बान करने का 
सिर्फ एक बादशाह को बचाने के लिए. 

14.
जब बरस रही हो खुदा की बारिश 
मेरे दोस्त 
खामोश रहो थोड़ी देर 
कि कहीं भीग न जाएं बातें !

15.
वक़्त ठहर गया बारह बजे
और इसने चकरा दिया घड़ीसाज को.
कोई गड़बड़ी नहीं थी घड़ी में.
बस बात इतनी सी थी की सूइयां
भूल गईं दुनिया को, हमआगोश होकर. 


16.  
- मैं पृथ्वी की तस्वीर बनाना चाहता हूँ
- बनाओ, मेरे बच्चे. 
- मैनें बना लिया.
- और यह कौन है ?
- वह मेरी दोस्त है.
- और पृथ्वी कहाँ है ?
- उसके हैण्डबैग में. 


17.
किसी मोची के हाथों 
मुट्ठी भर कील ही तो है ज़िंदगी.


18.
किसी हाईकू कविता की तरह
मेरे सूटकेस ने समेट दी मेरी दुनिया 
तस्वीरों और चिट्ठियों 
एक कापी और एक पेन्सिल में. 
                    :: :: :: 

6 comments:

  1. एक -एक बात सच्चे मोती की तरह ! दूना आभार मनोज जी ! साहित्य के साथ -साथ मानव आत्मा को भी समृद्ध करता है ऐसी रचनाओं का रसास्वादन !

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  2. कुछ कोट्स वाकई में बहुत अच्छे लगे - प्रदीप जिलवाने

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  3. बहुत सुंदर पार्टनर

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  4. इनकी रचनाए कमाल है.. कृपया अनुवाद प्रस्तुत करते रहें..धन्यवाद.

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  5. बहुत सुंदर रचना, बहुत सुंदर अनुवाद.....आप कमाल का काम कर रहे हो....

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